Tuesday, November 19, 2024
spot_img
Homeभारत गौरव13 साल की उस लड़की ने मुँह नहीं खोला और अंग्रेजों ने...

13 साल की उस लड़की ने मुँह नहीं खोला और अंग्रेजों ने उसे जीवित ही जला दिया

3 सितम्बर 1857 बिठूर में एक पेड़ से बंधी 13 वर्ष की लड़की को, ब्रिटिश सेना ने जिंदा ही आग के हवाले किया, धूँ धूँ कर जलती वो लड़की, उफ़ तक न बोली और जिंदा लाश की तरह जलती हुई, राख में तब्दील हो गई।

ये लड़की थी नाना साहब पेशवा की दत्तक पुत्री मैना कुमारी। जिसे 160 वर्ष पूर्व, आज ही के दिन, आउटरम नामक ब्रिटिश अधिकारी ने जिंदा जला दिया था।

1857 के स्वाधीनता संग्राम में प्रारम्भ में तो भारतीय पक्ष की जीत हुई; पर फिर अंग्रेजों का पलड़ा भारी होने लगा। भारतीय सेनानियों का नेतृत्व नाना साहब पेशवा कर रहे थे। उन्होंने अपने सहयोगियों के आग्रह पर बिठूर का महल छोड़ने का निर्णय कर लिया। उनकी योजना थी कि किसी सुरक्षित स्थान पर जाकर फिर से सेना एकत्र करें और अंग्रेजों ने नये सिरे से मोर्चा लें।

मैना नानासाहब की दत्तक पुत्री थी। वह उस समय केवल 13 वर्ष की थी। नानासाहब बड़े असमंजस में थे कि उसका क्या करें ? नये स्थान पर पहुंचने में न जाने कितने दिन लगें और मार्ग में न जाने कैसी कठिनाइयां आयें। अतः उसे साथ रखना खतरे से खाली नहीं था; पर महल में छोड़ना भी कठिन था। ऐसे में मैना ने स्वयं महल में रुकने की इच्छा प्रकट की।

नानासाहब ने उसे समझाया कि अंग्रेज अपने बन्दियों से बहुत दुष्टता का व्यवहार करते हैं। फिर मैना तो एक कन्या थी। अतः उसके साथ दुराचार भी हो सकता था; पर मैना साहसी लड़की थी। उसने अस्त्र-शस्त्र चलाना भी सीखा था। उसने कहा कि मैं क्रांतिकारी की पुत्री होने के साथ ही एक हिन्दू ललना भी हूं। मुझे अपने शरीर और नारी धर्म की रक्षा करना आता है। अतः नानासाहब ने विवश होकर कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ उसे वहीं छोड़ दिया।

पर कुछ दिन बाद ही अंग्रेज सेनापति हे ने गुप्तचरों से सूचना पाकर महल को घेर लिया और तोपों से गोले दागने लगा। इस पर मैना बाहर आ गयी। सेनापति हे नाना साहब के दरबार में प्रायः आता था। अतः उसकी बेटी मेरी से मैना की अच्छी मित्रता हो गयी थी। मैना ने यह संदर्भ देकर उसे महल गिराने से रोका; पर जनरल आउटरम के आदेश के कारण सेनापति हे विवश था। अतः उसने मैना को गिरफ्तार करने का आदेश दिया।

पर मैना को महल के सब गुप्त रास्ते और तहखानों की जानकारी थी। जैसे ही सैनिक उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़े,वह वहां से गायब हो गयी। सेनापति के आदेश पर फिर से तोपें आग उगलने लगीं और कुछ ही घंटों में वह महल ध्वस्त हो गया। सेनापति ने सोचा कि मैना भी उस महल में दब कर मर गयी होगी। अतः वह वापस अपने निवास पर लौट आया।

पर मैना जीवित थी। रात में वह अपने गुप्त ठिकाने से बाहर आकर यह विचार करने लगी कि उसे अब क्या करना चाहिए ? उसे मालूम नहीं था कि महल ध्वस्त होने के बाद भी कुछ सैनिक वहां तैनात हैं। ऐसे दो सैनिकों ने उसे पकड़ कर जनरल आउटरम के सामने प्रस्तुत कर दिया।

नानासाहब पर एक लाख रु. का पुरस्कार घोषित था। जनरल आउटरम उन्हें पकड़ कर आंदोलन को पूरी तरह कुचलना तथा ब्रिटेन में बैठे शासकों से बड़ा पुरस्कार पाना चाहता था। उसने सोचा कि मैना छोटी सी बच्ची है। अतः पहले उसे प्यार से समझाया गया; पर मैना चुप रही। यह देखकर उसे जिन्दा जला देने की धमकी दी गयी; पर मैना इससे भी विचलित नहीं हुई।

अंततः आउटरम ने उसे पेड़ से बांधकर जलाने का आदेश दे दिया। निर्दयी सैनिकों ने ऐसा ही किया। तीन सितम्बर, 1857 की रात में 13 वर्षीय मैना चुपचाप आग में जल गयी। इस प्रकार उसने देश के लिए बलिदान होने वाले बच्चों की सूची में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवा लिया।

जिसने 1857 क्रांति के दोरान, अपने पिता के साथ जाने से इसलिए मना कर दिया, की कही उसकी सुरक्षा के चलते, उस के पिता को देश सेवा में कोई समस्या न आए। और बिठूर के महल में रहना उचित समझा। नाना साहब पर ब्रिटिश सरकार इनाम घोषित कर चुकी थी। और जैसे ही उन्हें पता चला नाना साहब महल से बाहर है, ब्रिटिश सरकार ने महल घेर लिया, जहाँ उन्हें कुछ सैनिको के साथ बस मैना कुमारी ही मिली।

मैना कुमारी, ब्रिटिश सैनिको को देख कर महल के गुप्त स्थानों में जा छुपी, ये देख ब्रिटिश अफसर आउटरम ने महल को तोप से उड़ने का आदेश दिया। और ऐसा कर वो वहां से चला गया पर अपने कुछ सिपाहियों को वही छोड़ गया। रात को मैना को जब लगा की सब लोग जा चुके है, और वो बहार निकली तो 2 सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और फिर आउटरम के सामने पेश किया।

आउटरम ने पहले मैना को एक पेड़ से बंधा, फिर मैना से नाना के बारे में और क्रांति की गुप्त जानकारी जाननी चाही। पर उस से मुँह नही खोला।

यहाँ तक की आउटरम ने मैना कुमारी को जिंदा जलने की धमकी भी दी, पर उसने कहा की वो एक क्रांतिकारी की बेटी है, मौत से नही डरती। ये देख आउटरम तिलमिला गया और उसने मैना कुमारी को जिंदा जलाने का आदेश दे दिया। इस पर भी मैना कुमारी, बिना कुछ बोले चुपचाप इसलिए आग में जल गई, ताकि क्रांति की मसाल कभी न बुझे।

ये वही वृक्ष है जिससे बांध कर जलाया गया था जिसे स्मृति के रूप में संरक्षित किया गया है ।

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार