कश्मीर घाटी में आतंकी हमलों की आशंका के चलते एक बार फिर अमरनाथ यात्रा बंद कर दी गयी है। घाटी के इतिहास को जानें तो ये फैसला सही भी लगता है, क्योंकि अमरनाथ यात्रा हमेशा आतंकियों के निशाने पर रही है। आज से ठीक 21 साल पहले 1 और 2 अगस्त, 2000 में आतंकियों ने जम्मू कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों में कई हमले कर 24 घंटों के अंदर 100 से ज्यादा बेगुनाह हिंदूओं का नरसंहार कर दिया था। इसमें पहले हमला 1 अगस्त की शाम को पहलगाम अमरनाथ बेस कैंप पर हुआ था, दूसरा हमला अनंतनाग में एक बिहारी मज़दूरों की बस्ती पर हुआ और फिर 2 अगस्त को डोडा में हिंदूओं के 2 गावों पर हमला हुआ था।
1 अगस्त, 2000 की शाम, पहलगाम अमरनाथ कैंप नरसंहार
1 जुलाई से शुरु हुई अमरनाथ यात्रा को 1 महीना पूरा हो चुका था। 1 अगस्त कि वो शाम पहलगाम कैंप में रुके सैंकड़ो श्रद्धालुओं और स्थानीय कश्मीरियों के लिए किसी खौफनाक शाम से कम नहीं थी। शाम के करीब 6 बजे थे पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण चारों तरफ अंधेरा हो गया था। सैंकड़ों यात्री श्रद्धालु कैंप में भगवान शिव के जयकारे लगा रहे थे, तो कुछ लोग खाने पीने के इंतजाम में लगे हुए थे। कई श्रद्धालु संगठनों की तरफ से लगे भंडारे में भोजन लेने के लिए लाइन लगाकर खड़े थे। कैंप में उस वक्त तक सब कुछ ठीक था, तभी करीब 6 बजकर 45 मिनट पर दो आंतकवादियों ने कैंप में घुस करकर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरु कर दी। जब तक कुछ समझ में आता तब तक देखते ही देखते पूरे कैंप में अफरा-तफरी मच गयी। लोग अपनी जान बचने के लिए इधर उधर भागने लगे। आतंकी करीब 15 मिनट तक लगातार गोलीबारी करते रहे।
उस घटना में 32 बेगुनाह लोगों की जान गई और करीब 60 से ज्यादा लोग उसमें घायल हुए थे। जिसमें श्रद्धालुओं के साथ 7 कश्मीरी भी शामिल थे। जो कैंप में छोटी-मोटी दुकान लगाने या फिर पोर्टर का काम करते थे। पाकिस्तान परस्त आतंकियों के इस हमले में एक बार फिर कश्मीरी भी निशाना बनें।
1 अगस्त 2000 की रात, अनंतनाग में प्रवासी मजूदरों का नरसंहार
पहलगाम अमरनाथ कैंप पर हमला करने के कुछ ही घंटों बाद इस्लामिक आतंकियों ने अनंतनाग के काज़ीगुंड इलाके में हमला किया। यहां यूमो गांव में उत्तर प्रदेश , बिहार और छत्तीसगढ़ से काम करने आये मजूदर खाना खाकर सोने की तैयारी में थे। रात के लगभग 10 बजे थे, तभी 3 इस्लामिक आतंकी उनके अस्थायी कैंप के बाहर आये और मजदूरों से कहा उनका ट्रक खराब हो गया कुछ मदद चाहिए। वो हमदर्द मजदूर उनको मना नहीं कर पाएं और मदद करने के लिए बाहर सड़क पर आ गये। वो मजदूर जैसे ही सड़क पर आए उन आतंकियों ने उनके ऊपर गोलियां बरसानी शुरु कर दी। उस घटना में मौके पर ही 9 मजदूरों की जान चली गई।
गोलियों की आवाज सुनने के बाद कोई मजदूर अपने घर से बाहर नहीं आ रहे थे। वो आतंकवादी घटना को अंजाम देने के बाद आराम से गाड़ी में बैठकर वहां से निकल गये। आतंकियों को 9 मासूमों का कत्ल करके बाद भी शायद सुकून नहीं मिला था। इसी लिए वो यूमो गांव से 1 घंटे की दूरी पर काजीगुंड के पास की मजदूर बस्ती में पहुचें। जहां पर भी 19 मजदूर भी खाना खाकर सोने की तैयारी में थे। उन आतंकवादी ने उन लोगों से भी ये बात कही की ट्रक खराब हो गया। उन मजदूरों के मदद करने के लिए बाहर आने पर उनके ऊपर भी धोखे से गोलियां चला दी। उस पूरे घटना में बिलासपुर, यूपी, बिहार के करीब 28 बेगुनाह मजदूरों की जान चली गई थी। इन दोनों हमले के पीछे आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हाथ था।
पहलगाम और अनंतनाग में कुछ ही घंटों के दौरान ये आतंकी वारदात हुई थी। संभव था दोनों हमले एक ही आतंकी ग्रुप ने किये हों।
डोडा नरसंहार 2 अगस्त 2000
1 अगस्त को पहलगाम कैंप और अनंतनाग में आतंकी हमलों के बाद देशभर में रोष था। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला पर सख्त इंतजाम न होने के चलते आरोप लगाये जा रहे थे। वहीं केंद्र में वायपेयी सरकार पर भी इन हमलों के बाद कार्रवाई का दबाव था। फारूख अब्दुल्ला केंद्र में वाजपेयी सरकार में शामिल भी थे। केंद्र सरकार ने तुरंत राज्य में आतंकियों पर कार्रवाई करने का आदेश दे दिया था।
लेकिन आतंकियों का दुस्साहस देखिए 2 अगस्त की रात करीब 9.30 बजे आतंकियों का एक समूह डोडा जिले एक छोटे से गांव कुंडा पोगल में घुसा। आतंकियों ने उस गांव के एक परिवार के 9 लोगों को अंधाधुंध गोलियां बरसाकर मार के मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद ये आतंकी ने डोडा के कयार गांव की तरफ बढ़े। यहां सेल्फ डिफेंस कमेटी (ये कमेटी सरकार की तरफ से बनाई गई थी, जिसमें गांव के युवाओं को आत्मरक्षा और गांव की रक्षा करने के लिए बंदूके दी गई थी) के 8 लोग गश्त पर थे, उनकों भी आतंकियों ने संभलने का मौका नहीं दिया और गोलियां बरसाकर आठों की नृशंस हत्या कर दी।
उसी रात आंतकियों ने करीब 1 घंटे पहले उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में सुरक्षा एजेंसिय़ों का साथ देने वाले मुश्ताक अहमद के परिवार पर हमला किया और उनके परिवार के 7 लोगों को मार डाला था। यानि साफ था कि आतंकियों को सरकार की कार्रवाई का खौफ नहीं था।
3 अगस्त को देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अमरनाथ कैंप पर हमले के पीड़ितों से मिलने के लिए पहलगाम पहुंचे थे। यहां वायपेयी ने फिर से आतंकियों पर कार्रवाई का आश्वासन दिया।
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