रायपुर। 25 नवंबर 1847 में छह- सात सौ की आबादी वाले एक गांव में यूरोप और एशिया का पहला सिविल इंजीनियरिंग कॉलेज खोला गया। यह कॉलेज अंग्रेज इंजीनियर थॉमसन ने ईस्ट इंडिया कंपनी को यह बोलकर खुलवाया कि इससे उसका एंपायर बढ़ेगा।
इस समय तक ब्रिटेन में भी सिविल इंजीनियरिंग कॉलेज नहीं था। संभवतः जर्मनी में कोई कॉलेज खुला था। यह कॉलेज गंगा नहर बनने के बाद खोला गया। जल संवाद में अपने व्याख्यान के दौरान गांधीवादी पर्यावरणविद, लेखक, संपादक अनुपम मिश्र ने बताया कि नहर बनाने वाले कोई और नहीं, रुढ़की गांव के अनपढ़ लोग थे, जिन्होंने करीब 200 किमी लंबी नहर बनाई, जो हिमालय से निकलकर मेरठ होते हुए यहां आती है।
मिस्टर थॉमसन ने यहां के लोगों की प्रतिभा को पहचाना। अनपढ़ लोगों से इंजीनियरिंग पढ़ाने उस समय इंग्लैंड से लोग यहां आए थे। 1854 में थॉमसन कॉलेज नाम दिया गया। 1959 में इसे यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला और फिर 2000 में आईआईटी का दर्जा मिला। पानी के संरक्षण के पारंपरिक, लेकिन पूरी तरह वैज्ञानिक तरीकों की जानकारी श्री मिश्र ने प्रेजन्टेशन के माध्यम से दी।
3 करोड़ लीटर पानी का टैंक
3 करोड़ लीटर पानी इकट्ठा करने वाली 400 साल पुरानी टंकी की जानकारी उन्होंने दी, जिसमें पास की पहाड़ियों का पानी बहकर एक जगह इकठ्ठा होता है। इससे साल भर आसपास की आबादी की प्यास बुझती है। उन्होंने इस सिस्टम की खासियत बताई कि सब जगह पानी छानकर लाने के बाद टंकी में पानी पहुंचाने से पहले थोड़ा से उलटा ढाल दिया गया, जिससे पानी में रेत का एक कण भी हो तो ऊपर से बहकर न निकल पाए।
वाटर हार्वेस्टिंग का नमूना 800 साल पुराना जैसलमेर शहर
जैसलमेर को 800 साल पहले बसाया गया। यह सिल्क रूट का टर्मिनल पॉइंट है। हर घर की छत पर बारिश के पानी को इकठ्ठा करने की व्यवस्था की गई। 52 तालाब बनाए गए। राजा प्रजा और समाज का हर हिस्से ने काम किया। कहीं भी तकनीकी रूप से गड़बड़ी नहीं मिलेगी। यहां पानी का अध्ययन करना बंद हो गया। यह वॉटर हार्वेस्टिंग का बहुत अच्छा नमूना है।
साल भर लबालब रहता है तालाब
जसेरी तालाब पिता ने अपने बेटे की याद में बनाया था। इस तालाब की खासियत है कि यह हमेशा भरा रहता है। चारों ओर हरियाली ने घेर रखा है। तालाब में जिप्सम का तल है, जो पानी को रिसने नहीं देता। पूरा इतिहास ताम्र पत्र में लिखकर 42 फीट नीचे दबा दिया गया है।
लोगों के डीएनए में इंजीनियरिंग
मिश्र ने अलग-अलग उदाहरणों के जरिए बताया कि राजस्थान के अनपढ़ लोगों में सिविल इंजीनियरिंग खून में डीएनए में घुला हुआ है। अब ऐसे लोगों के बीच हम अपना ज्ञान ले जा रहे हैं, जिनके निर्माण पांच से 10 साल भी नहीं टिकते जबकि इनके स्ट्रक्चर में 400 से अधिक साल बाद भी एक दरार तक नजर नहीं आती। इस दौरान पोखरण तालाब की उपेक्षा, 900 साल की बावड़ी, कुएं के साथ 200 लोगों के ठहरने की व्यवस्था, 10 हजार पशुओं को पानी पिलाने वाली व्यवस्था आदि के बारे में उन्होंने बताया।
हाफुुर पत्थर
एक गांव में पानी साफ करने वाला पत्थर, जो जमीन में दो से तीन फीट में निकल जाता है। हाफुर पत्थर पानी साफ करता है। पानी का हार्डनेस कम करता है। इस पत्थर से बना कुआं ऐसे गांव में है, जहां 7 एमएम पानी गिरता है।
साभार http://naidunia.jagran.com/ से