नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार ने होम बायर्स को बड़ी राहत देते हुए इन्सॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड में बदलाव को मंजूरी दे दी है। बुधवार सुबह हुई कैबिनेट मीटिंग में कोड में बदलाव की सिफारिशों को मंजूरी दे दी। अब किसी रियल्टी कंपनी के डूबने पर उसमें होम बायर्स का भी हिस्सा होगा। रियलटी सेक्टर की कंपनियों के डूबने की स्थिति में अब तक संपत्ति की नीलामी में बैंक का ही हिस्सा होने की बात थी, लेकिन अब नीलामी में होम बायर्स का भी हिस्सा होगा। बता दें कि ग्रेटर नोएडा समेत तमाम शहरों में निर्माण कंपनियों के डूबने के मामलों में हजारों होम बायर्स का पैसा फंसा है। ऐसे में सरकार का यह फैसला उनके लिए बड़ी राहत का सबब लेकर आया है।
यह फैसला देश में उन हजारों परिवारों के लिए राहत सबब है, जिनके पैसे अंडर-कंस्ट्रक्शन रियल्टी प्रॉजेक्ट में फंसे हुए हैं।बैंकरप्ट्सी कोड में बदलाव के लिए गठित कमिटी ने सिफारिश की थी कि दिवालिया बिल्डर की संपत्ति बेचने पर उन घर खरीदारों को भी हिस्सा दिया जाए, जिन्हें पजेशन नहीं मिला है। उनको कितना हिस्सा दिया जाए, यह उस बिल्डर द्वारा लोन पर आधारित होगा। वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि कमिटी की सोच है कि बिल्डर के दिवालिया होने पर उन घर खरीददारों को अकेला नहीं छोड़ा जा सकता, जिन्हें पजेशन नहीं मिला है। इससे तो उनके सारे पैसे डूब जाएंगे और उन्हें घर भी नहीं मिलेगा।
कितना मिलेगा हिस्सा?
कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि दिवालिया होने पर बिल्डर या बिल्डर कंपनी की सम्पत्ति बेचने पर जितना धन मिलेगा, उसमें कितना फीसदी घर खरीददारों को दिया जाए, इस बात का फैसला कई पैमानों पर तय किया जा सकता है। सबसे पहले यह देखा जाए कि बिल्डर पर कितना पैसा बकाया है। कितने घर खरीददारों को पजेशन नहीं मिला है और उनकी कितनी देनदारी है। यह देखा जाए कि कितने का लोन बिल्डर पर बकाया है। इसके बाद यह तय किया जाए कि सम्पत्ति बेचने के बाद उससे प्राप्त धन में कितनी हिस्सा घर खरीददारों को दिया जा सकता है। इसके लिए बैंकों और अन्य एक्सपर्ट से बात करके अंतिम फैसला लिया जा सकता है।
किसलिए जरूरी है?
वित्त मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी का कहना है कि ऐसे मामले सामने आए हैं कि कई बिल्डर कंपनियों ने आवासीय परियोजना के लिए प्राप्त धन को अपनी किसी अन्य कंपनी में लगा दिया। इससे प्रॉजेक्ट में देरी हुई और उसके पास धन की कमी हो गई। ऐसे में घर खरीददारों को घर पाने के लिए लंबे समय से इंतजार करना पड़ रहा है। सरकार ने इन्सॉल्वंसी ऐंड बैंकरप्ट्सी कोड के तहत ऐसे में मामलों को सुलझाने के लिए तीन मापदंड तय किए हैं। पहले कंपनी से बात किया जाए और उसे इस समस्या को निपटाने के लिए तय समय दिया जाए। अगर कंपनी बात न करे तो तय समय के बाद उसकी सम्पत्ति अटैच किया जाए। अगर कंपनी खुद को दिवालिया घोषित करती है तो उसकी पूरी सम्पत्ति को अटैच कर उसे तुंरत बेचा जाए।
साभार- टाईम्स ऑफ इंडिया से