किसी भी देश की आर्थिक विकास की गति जब रफ्तार पकड़ती है तो वित्त की आवश्यकता भी बढ़ती है। भारत में केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा आपस में मिलकर लगातार कई उपाय किए जा रहे हैं ताकि उद्योग एवं व्यापार को वित्त की कमी महसूस नहीं हो। देश में दरअसल अब लम्बे समय से राजकोषीय एवं मौद्रिक नीतियों में सामंजस्य स्थापित होता दिख रहा है। राजकोषीय नीति के अंतर्गत वित्त की जितनी भी आवश्यकता केंद्र सरकार द्वारा स्वयं के लिए एवं कृषि, उद्योग एवं सेवा क्षेत्रों के लिए प्रतिपादित की जाती है, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति के माध्यम से बढ़ी हुई वित्त की आवश्यकता की पूर्ति हेतु सफल प्रयास किए जा रहे हैं।
भारतीय बैंकों, भारतीय पूंजी बाजार एवं भारतीय निवेशकों (विदेशी निवेशकों सहित) को सक्रिय कर लिया गया है ताकि देश में बढ़ी हुई वित्त की आवश्यकता अनुसार वित्त की उपलब्धता भी लगातार बनी रहे। इस सम्बंध में भारतीय बैंकें भी अपनी भूमिका बहुत अच्छे तरीके से निभा रहे हैं। यहां केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई कुछ योजनाओं का जिक्र किया जा सकता है।
मुद्रा पोर्टल पर उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, माह अप्रेल 2015 में लागू की गई प्रधान मंत्री मुद्रा योजना के अंतर्गत दिनांक 26 नवम्बर 2021 तक विभिन बैकों ने 32.11 करोड़ हितग्राहियों को 17 लाख करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की गई है। इस स्वीकृत राशि में से 16.50 लाख करोड़ रुपए की राशि वितरित भी की जा चुकी है। उक्त योजना लागू किए जाने के तीन वर्षों के दौरान 1.12 करोड़ रोजगार के नए अवसर निर्मित किए गए थे। प्रधान मंत्री मुद्रा योजना के अंतर्गत दिनांक 26 नवम्बर 2021 तक स्वीकृत की गई ऋणराशि में से 21.73 करोड़ खाते (68 प्रतिशत) महिलाओं के नाम पर खोले गए हैं एवं कुल स्वीकृत ऋणराशि में से 44 प्रतिशत (7.42 लाख करोड़ रुपए) की स्वीकृति महिला हितग्राहियों को प्रदान की गई है।
इसी प्रकार, प्रधान मंत्री स्ट्रीट वेंडर आत्म निर्भर निधि (पीएम स्वनिधि) योजना के अंतर्गत दिनांक 13 दिसम्बर 2021 तक 30.75 लाख लाभार्थियों को 3,095 करोड़ रुपए की राशि विभिन्न बैकों द्वारा स्वीकृत की गई है। इस स्वीकृत राशि में से 27.06 लाख लाभार्थियों को 2,714 करोड़ रुपए की राशि वितरित भी की जा चुकी है। इन 27.06 लाख लाभार्थियों में 59 प्रतिशत पुरुष एवं 41 प्रतिशत महिलायें हैं।
सूक्ष्म वित्त संस्थानों द्वारा उपलब्ध कराई गई एक अन्य जानकारी के अनुसार सूक्ष्म वित्त संस्थानों का सकल ऋण पोर्टफोलिओ, जो 5.65 करोड़ हितग्राहियों को 10.52 करोड़ ऋण खातों के माध्यम से ऋण उपलब्ध करा रहा है, दिनांक 30 सितम्बर 2021 को 5.16 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर्ज करते हुए 2.4 लाख करोड़ रुपए का हो गया है। इसका आश्य यह है कि अब कोरोना महामारी के दूसरे दौर के बाद सूक्ष्म वित्त संस्थानों से वित्त की सुविधा ले रहे छोटे छोटे हितग्राहीयों की व्यापारिक गतिविधियां भी सामान्य होती जा रही हैं। हाल ही के समय में सूक्ष्म ऋण के वितरण में काफी सुधार देखने में आया है। 30 सितम्बर 2021 को समाप्त तिमाही में 154.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 64,899 करोड़ रुपए की राशि 185 लाख हितग्राहियों को सूक्ष्म ऋण के रूप में वितरित की गई है। जून 2021 तिमाही में 25,503 करोड़ रुपए के सूक्ष्म ऋण 71 लाख हितग्राहियों को वितरित किए गए थे। जबकि सितम्बर 2020 तिमाही में 31,261 करोड़ रुपए के सूक्ष्म ऋण 88 लाख हितग्राहियों को वितरित किए गए थे।
अब तो ग्रामीण क्षेत्रों में भी ऋण की मांग बढ़ रही है। जुलाई-सितम्बर 2021 तिमाही के दौरान महानगर, शहरी, अर्द्धशहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में गृह ऋण की मांग में भी भारी वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। अब चूंकि देश में आर्थिक गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं अतः लगभग समस्त भारतीय बैंकों में ऋणराशि के वितरण में सुधार दिखाई दे रहा है।
अब यदि पूंजी बाजार से विभिन्न कम्पनियों द्वारा वित्त उगाही की स्थिति पर ध्यान दिया जाय तो यहां भी हाल ही के समय में बहुत अच्छा दृश्य दिखाई दे रहा है। कैलेंडर वर्ष 2021 में 63 भारतीय कम्पनियों ने 1.18 लाख करोड़ रुपए की राशि पूंजी बाजार से आईपीओ के माध्यम से उगाही है जो कि अपने आप में अभी तक का एक रिकार्ड है। यह राशि कैलेंडर वर्ष 2020 में 15 भारतीय कम्पनियों द्वारा आईपीओ के माध्यम से उगाही गई राशि 26,613 करोड़ रुपए का 4.5 गुणा है एवं कैलेंडर वर्ष 2017 में अभी तक आईपीओ के माध्यम से उगाही गई सबसे अधिक 68,827 करोड़ रुपए की राशि का भी लगभग दुगना है।
पूंजी बाजार में निवेशकों के लिए धन सृजन के मामले में भी भारतीय कंपनिया बहुत आगे हैं। मोतीलाल ओसवाल वार्षिक धन सृजन अध्ययन 2021 के प्रतिवेदन के अनुसार देश की 100 अग्रणी कम्पनियों ने पूंजी बाजार में पिछले 5 वर्षों (2016 से 2021) के दौरान 71 लाख करोड़ रुपए का धन निवेशकों के लिए सृजित किया है। यह पिछले 26 पांच वर्षों के कार्यकाल के दौरान किसी भी 5 वर्ष के कार्यकाल में सबसे अधिक राशि का धन निवेशकों के लिए सृजित किया गया है। पिछली बार 5 वर्षों के दौरान (2014-2019) सबसे अधिक 49 लाख करोड़ रुपए का धन निवेशकों के लिए सृजित किया गया था।
उक्त कारण से खुदरा निवेशक भी अब पूंजी बाजार की ओर आकर्षित हो रहे हैं एवं इक्वटी आधारित म्यूचूअल फण्ड योजनाओं में निवेश कर रहे हैं एवं नवम्बर 2021 माह में 11,615 करोड़ रुपए का निवेश भारतीय निवेशकों द्वारा इन योजनाओं में किया गया है। साथ ही, मासिक एसआइपी योजना के अंतर्गत भी भारतीय निवेशकों ने नवम्बर 2021 माह में 11,005 करोड़ रुपए का अंशदान किया गया है जो अभी तक का सबसे अधिक मासिक अंशदान है।
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों (एमएनसी) में परिवर्तित करने का भी रहा है। भारत में इन कम्पनियों में निवेश तेज रफ्तार से बढ़ा है। कैलेंडर वर्ष 2021 में भारत ने 33 स्टार्ट-अप कम्पनियों को यूनीकॉर्न कम्पनियों में परिवर्तित कर वैश्विक स्तर पर इंग्लैंड को चौथे स्थान पर सरका कर अपने लिए तीसरा स्थान हासिल कर लिया है। यूनिकॉर्न कम्पनी उस स्टार्ट-अप कम्पनी को कहा जाता है जिसका बाजार मूल्यांकन 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक का हो गया हो। अमेरिका 487 यूनीकॉर्न कम्पनियों के साथ प्रथम स्थान एवं चीन 301 यूनीकॉर्न कम्पनियों के साथ दूसरे स्थान पर काबिज हैं। पिछले कैलेंडर वर्ष 2020 में भारत में केवल 11 स्टार्ट-अप कम्पनियां ही यूनीकॉर्न कम्पनियों में परिवर्तित हो सकी थीं। ये स्टार्ट-अप कम्पनियां अभी तक भारत के बाजार पर अधिक ध्यान देकर चल रही हैं परंतु इन्हें अब भारत के बाहर भी पैर फैलाने चाहिए और अपने आप को बहुराष्ट्रीय कम्पनी में परिवर्तित करना चाहिए। भारतीय कम्पनियां विदेशी बाजारों में अपना स्थान बनायें, इससे भारतीय ब्राण्ड विकसित होगा इसलिए इन कम्पनियों के लिए अपने उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का रखना अब बहुत जरूरी हो गया है। भारत में स्टार्ट-अप कम्पनियां अब केवल भारतीय बाजार के लिए नहीं बल्कि वैश्विक वैल्यू चैन को भी ध्यान में रखकर बनाई जानी चाहिए। अभी हाल ही के समय में भारतीय कम्पनियां विदेशों में भी कई कम्पनियों को खरीद रही हैं, विशेष रूप से दवा एवं सूचना प्रोदयोगिकी के क्षेत्र में।
केंद्र सरकार द्वारा ईज आफ डूइंग बिजनेस के संदर्भ में लिए गए कई निर्णयों के कारण देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी तेजी से बढ़ रहा है। प्रधान मंत्री गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर योजना, सिंगल विंडो क्लीअरेंस एवं जीआईएस मेपड लैंड बैंक योजनाओं को लागू किए जाने के बाद तो वर्ष 2022-23 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और भी आगे बढ़ेगा। वर्ष 2020-21 में 8,172 करोड़ अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भारत में हुआ है जो अपने आप में एक रिकार्ड है। अप्रेल-जुलाई 2021 की अवधि में 62 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 2,737 करोड़ अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भारत में हुआ है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का बढ़ना वैश्विक स्तर पर विदेशी निवेशकों का भारत की अर्थव्यवस्था में बढ़ते विश्वास की एक झलक के रूप में देखा जाना चाहिए।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
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