Thursday, November 28, 2024
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कोरोना वायरस याद दिला रहा है भारतीय रीति-रिवाजों और परंपराओं की

*Coronavirus के आतंक के चलते एक शब्द बहुत प्रचलन में दिख रहा है ‘ ‘quarantine’.*Isolation*

*इसका अर्थ है किसी संक्रामक बीमारी के मरीज को कुछ दिनों के लिए स्वस्थ लोगों से अलग थलग कर देना.* *इसका अर्थ है उद्देश्य यह है कि यदि मरीज को संक्रामक बीमारी है तो वह अकेला उससे संघर्ष करे अन्य लोगों को संक्रमित न करे*. *कुछ दिनों में या तो वह स्वस्थ हो जाएगा या काल कलवित हो जाएगा किन्तु अन्य स्वस्थ लोग बचे रहेंगे. *वर्तमान Corona बीमारी के लिये quarantine isolation period 15 दिन के लगभग माना गया है.

अब इसे भारतीय (हिन्दू) रीति के ‘ सूतक’ से जोड़ कर देखें जो कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसके रक्त सम्बन्धियों पर लागू होता है*. अभी कुछ वर्ष पूर्व तक अधिकतर मौतें संक्रामक बीमारियों से होती थी. कुछ व्यक्ति पहले पीड़ित होते थे फिर यह बीमारी निकट सम्बन्धियों में फैलती है और फिर पूरे समाज में फैलती है।

इसी isolation quarantine को ध्यान में रखते हुए हिन्दू धर्म मे किसी की मृत्यु होने पर यह माना जाता है कि संभवतया मृत्यु संक्रामक रोग से हुई होगी, मृतक के सम्बन्धियों को 10 से 15 दिन के ‘सूतक’ में रखा जाता है. वे घर के बाहर यथा संभव नहीं निकलते हैं और उन्हें कोई छूता नहीं है।

10 दिन के पश्चात घर के लोग अपने उपयोग के सारे बर्तन, कपड़े, बिस्तर आदि धोते हैं और उसके पश्चात ही पुनः उपयोग में लाते हैं.
बारहवीं या तेरहवीं की रस्म में पूरे समाज के लोग एकत्र होते हैं, *मृतक के रक्त सम्बन्धियों को मंदिर ले जा कर शुद्धिकरण किया जाता है और उन्हें समाज मे शामिल कर लिया जाता है. तेरहवीं या पगड़ी की रस्म को छोटे मोटे उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।

*इस रीति के दो पहलू हैं. पहला, मृतक के निकट सम्बन्धियों की जाँच हो जाती है कि उन्हें कोई संक्रामक बीमारी नहीं है। दूसरा, मृतक के निकट संबंधियों के कुछ दिन साथ रहने से मृतक के परिवार के सदस्यों का दुख कम होता है एवं आपस मे प्रेम भाई चारा बढ़ता है. आवश्यकता पड़ने पर वे मृतक के परिवार की आर्थिक सहायता भी करते हैं।

विगत वर्षों में इस तरह की परम्पराएं विकृत हो चुकी हैं किंतु इन्हें नकाराने से पूर्व इनका वैज्ञानिक पहलू देखना आवश्यक है. क्या ‘ सूतक’ quarantine’ isolation का ही एक रूप नहीं है?*

*गौर करने योग्य बात यह है कि हमारे यहाँ ये परम्पराएँ ‘ वायरस’ और ‘ बैक्टीरिया’ की खोज के हजारों वर्ष पूर्व से लागू हैं !!*

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