वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से देश त्रस्त है। सभी लोग अपने घरों में कैद है। विश्वविद्यालय, कॉलेजों व स्कूल बंद है। एक तरफ जहां मार्च-अप्रैल के महीनों में सेमिनार, वर्कशॉप आदि का आयोजन विभिन्न शिक्षण संस्थानों में किया जाता था। परंतु कोरोना से उत्पन्न लॉकडाउन समस्या के कारण इस वर्ष बहुत कम जगहों पर ऐसा देखने को मिला।
हालांकि इस समय धीरे-धीरे ई-लर्निंग के माध्यम से शिक्षण संस्थानों में अध्ययन-अध्यापन का कार्य शुरू हो गये है। इसी बीच संस्कृत भाषा के कुछ युवा विद्वानों ने इंटरनेट की सहायता से प्रथम संस्कृत वेबिनार शृंखला का शुरुआत की है। भारत सरकार के पूर्व शिक्षाविद् सदस्य डॉ. सदानन्द झा के मुख्य सम्पादकत्व में सारस्वत निकेतनम् के अधीन प्रकाशित प्रथम संस्कृत ई जर्नल के सदस्यों की सहमति से प्रथम वेबिनार शृंखला का आयोजन किया गया। इसमें चार दर्जन से अधिक भारत सहित अन्य देशों के लोगों ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सम्मिलित हुए। कार्यक्रम के संयोजक डॉ.विपिन कुमार झा एवं डॉ.रामसेवक झा ने बताया कि संस्कृत में विद्यमान अकूत सम्पदा को विश्व शान्ति एवं सौहार्द्र हेतु इस वेबिनार में विमर्श किया गया। इसका उद्देश्य संस्कृत के निखिल ज्ञान को अंतर्जाल के माध्यम से सुव्यवस्थित कर सभी जनमानस तक आसानी से उपलब्ध कराना है। उन्होंने बताया कि ऑफलाइन सेमिनार की तरह इस वेबिनार में भी अध्यक्ष एवं विशिष्ट वक्ताओं को पूर्व से आमंत्रित किया गया था।
सभा की अध्यक्षता करते हुए कविकुलगुरु कालिदास विश्वविद्यालय रामटेक के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वडखेरी ने संस्कृत भाषा के द्वारा सामाजिक सहभागिता पर प्रकाश डाला। रविवार को प्रातः 9 बजे से शुरू संस्कृत वेबिनार के प्रथम वक्ता के रूप में ऑल इंडिया रेडियो के प्रवक्ता आचार्य बलदेवानंद सागर ने संस्कृत भाषा के सम सामयिक संदर्भ में विस्तार से वर्णन किये। गोरखपुर के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. मुरली मनोहर पाठक ने सामाजिक सहभागिता के संदर्भ में वेद प्रतिपादित चार विषयों का उपस्थापन किये। वहीं लोयला कॉलेज चेन्नई के डॉ.सुमन आचार्य ने वेदों में वर्णित सोशल डिस्टेंसिंग की बातों को उदाहरण देकर चरितार्थ किये। उन्होंने बताया कि आज कोरोना वायरस समस्या के कारण जिस सोशल डिस्टेंसिंग की बात की जा रही है उसका उल्लेख वर्षों पूर्व हमारे शास्त्रों में किया जा चुका है।
संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी, वाराणसी के नव्यव्याकरण विभागाध्यक्ष प्रो. ब्रजभूषण ओझा ने संस्कृत वांग्मय की समग्रता के लिए व्याकरण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। नई दिल्ली के डॉ. सुभद्रा देसाई ने वेद,संगीत पर चर्चा की। साथ ही दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रो. डॉ बलराम शुक्ला ने भाषा विज्ञान की दृष्टि से संस्कृत का सामाजिक संदर्भ पर विस्तार से चर्चा करते हुए समाज में भाषा की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। प्रो. डा.नीलाचल मिश्र ने संस्कृत में नैतिक मूल्यों की चर्चा की। वहीं शोधार्थी हाक छेंखी (कम्बोडिया) ने अपना शोधपत्र प्रस्तुत किये।
डा. बिपिन कुमार झा के संयोजकत्व में आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. श्वेता द्विवेदी के मंगलाचरण से हुआ। कार्यक्रम के आयोजन में डा. श्लेषसचिन्द्र, डा. राधावल्लभ शर्मा, अभिषेक त्रिपाठी, मनीष,डा.रामसेवक झा ,डा.नारायणदत्त मिश्र ने प्रमुख दायित्व का निर्वहण किया। कार्यक्रम का संचालन डा. मीनाक्षी तथा धन्यवाद ज्ञापन डा. धनंजय मिश्र ने किया।
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