किसी कवि की इच्छा शक्ति के सहारे उसकी सर्वोत्तम कविता का किसी अख़बार या पत्रिका में छप जाना, उसके लिए मानदेय मिल जाना, किसी पुरस्कार के लिए चयनित हो जाना या किसी प्रकाशक की मेज़ पर पहुँच कर किताब की शक़्ल में पाठक दरबार की हाज़िरी लगा जाना भर ही उस कविता का सर्वश्रेष्ठ भर हो जाना माना जाता रहा है।
इसके आगे न तो ज़्यादा रचनाकारों की कोई सोच पहुँच पाई न वे ख़ुद। कुछेक बिरले नक्षत्रों ने मुम्बई की चकाचौंध भरी फ़िल्मी दुनिया में बतौर गीतकार कदम भी रखा और सफल भी हुए, किन्तु वे थोड़े ही रहे। नीरज बन दुनिया में इठलाना और हिंदी कविता को गौरवान्वित करना बहुत कम लोगों के नसीब में लिखा हुआ मिला।
वर्तमान समय में अच्छे संबंध और मुम्बई तक पहुँचने के मार्ग में कहीं कोई ज़्यादा रुकावट नहीं है।
आज के दौर में चाहे फ़िल्म का कहें, या टेलीविज़न धारावाहिकों का या फिर वेब सीरीज़ या विज्ञापन का कहें सभी जगह हिंदी कहानियों और कविताओं का सम्मान होना शुरू हो चुका है।
फ़िल्म उद्योग की बात करें तो लगभग 40000 करोड़ रुपये का उद्योग है, वहीं टीवी धारावाहिक भी 30000 करोड़ से अधिक का उद्योग बन चुका है। इसी की अगली कड़ी है ‘वेब सीरीज़’ उद्योग जो भविष्य में हज़ारों करोड़ रुपयों का उद्योग बनने की तैयारी कर रहा है।
भारत में विज्ञापन उद्योग भी कहीं कमतर नहीं है। कुछ दशकों पूर्व विज्ञापन में किसी उत्पाद या संस्थान को स्थापित करने, बार-बार दिखाने का चलन था, किन्तु वर्तमान में विज्ञापन उद्योग में भी बदलाव आने लगे हैं, जिसमें भावनात्मक विज्ञापन बनाने के लिए छोटी कहानियाँ, लघुकथाओं से निकलने वाली भावनात्मक तरंगों को विज्ञापन की शक़्ल देकर उसमें कविता का पुट डालकर उसे सम्पूर्ण बनाकर किसी उत्पाद या संस्था को बाज़ार में स्थापित किया जा रहा है।
जैसे कुछ समय पहले एक चाय का विज्ञापन आया था, जिसमें पति की व्यस्तताओं के चलते उसकी पत्नी मायके चली जाती है, किन्तु हैंडीकैम की कैसेट में पूरी कहानी बताती है कि पहले वो शख़्स कैसे थे, उन्हें चाय की आदत कैसी थी, जिसे याद करके पति पुनः अपनी पत्नी को लेने उनके घर पहुँचता है, और चाय का आग्रह करता है, फिर इस दौरान एक कविता उस विज्ञापन का हिस्सा बनती है *वक़्त की बर्फ़ में जमे पड़े हैं रिश्ते….* ।
यही से हिंदी कविताएँ और कथाएँ अपना भविष्य बुनने लगती हैं। और यदि पैसे और आमदनी की बात करेंगे तो यहाँ अमूमन अधिक पैसा और नाम मिलता है रचनाकार को।
सच भी तो है कि हिंदी फ़िल्म, धारावाहिक, विज्ञापन, वेब सीरीज़ उद्योग की नींव हिंदी के रचनाकार ही तो हैं, किन्तु वे अपनी इस ताक़त से अनजान हैं।
आजकल के दौर में बनने वाले विज्ञापन, वेब सीरीज़ का मुख्य उद्देश्य ही आम जनमानस के साथ भावनात्मक जुड़ाव पैदा कर अपने उत्पाद और कंपनी को स्थापित करना है।
इसी तारतम्य में देश में हिंदी के प्रचार और प्रसार हेतु प्रतिबद्ध वेबसाइट मातृभाषा.कॉम भी सक्रियता से कार्य करना आरंभ कर रही है। उनके पास रचनाकारों की श्रेष्ठ रचनाओं की भरमार है। वे अपने उच्च स्तरीय संबंधों के चलते हिंदी के रचनाकारों को मुम्बई की प्रतिभा से जोड़ कर हिंदी के सर्वोच्च स्थान के लिए प्रतिबद्धता से कार्य करना शुरू कर रही है।
किसी भी रचनाकार की सर्वश्रेष्ठ कृति यदि किसी विज्ञापन, वेब सीरीज़, धारावाहिक आदि का हिस्सा बनती है तो यह रचनाकार के उन सम्मान से लाख गुना बेहतर है जो वो पैसों से ख़रीदता है, साथ ही, इस कार्य के लिए उसे पर्याप्त राशि भी प्राप्त होती है।
चूँकि मुम्बई हमारे देश का सिने दिल है, जहाँ सिनेमा उद्योग ने प्रतिभाओं को तलाशा और तराशा भी है।
वर्तमान में वेब सीरीज़ उद्योग में कदम रखने वाले महारथियों में एकता कपूर, शाहरुख़ ख़ान, सैफ़ अली ख़ान, अक्षय कुमार, आमीर ख़ान, यशराज आदि कई दिग्गज शामिल हो चुके हैं।
नेटफ्लिक्स, हेशफ्लिक्स, अल्ट बालाजी, उल्लू आदि जैसी कई मोबाइल एप्लीकेशन ओटीटी के माध्यम से अपने कदम इस दिशा में बड़ा चुकी हैं।
और ज़माना भी इसी का है, क्योंकि आज इंटरनेट लगभग हर भारतीय की पहुँच में आ चुका है।
इसी के प्रभाव के चलते लोग इंटरनेट के माध्यम से मनोरंजन खोज रहे हैं, आसानी से उपलब्ध होते वीडियो, ऑडियो, फ़ोटो उस उपभोक्ता को सहज रूप से आकर्षित करते हैं। यही कारण है कि वेब सीरीज़ उद्योग तेज़ी से फल-फूल रहा है, और इसके आगे बढ़ने से भारतीय विज्ञापन उद्योग में भी परिवर्तन आएगा। इन दोनों उद्योगों के आगे बढ़ने से शत-प्रतिशत हिंदी के रचनाकारों और कवियों की पूछ-परख बढ़ेगी, उन्हें अच्छा मानदेय भी मिलेगा और इससे हिंदी के रोज़गारमूलक भाषा बनने की दिशा में निर्णायक मील का पत्थर स्थापित हो सकेगा।
मुम्बई में बनने वाली छोटी-छोटी फ़िल्में, वेब सीरीज़, विज्ञापन, के साथ-साथ कंपनी के बारे में बताने वाली शॉर्ट फ़िल्में, आदि भी हिंदी के रचनाकारों को समृद्ध मंच देने के लिए सक्षम है, और हिंदी की उत्तरोत्तर उन्नति का कारक भी है।
*डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’*
हिन्दीग्राम, इंदौर