प्राचीन समय में भारत में प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार उपलब्ध था। विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में कृषि के साथ साथ हथकरघा उद्योग भी फल फूल रहा था। इसके कारण ग्रामीणों का गावों से शहरों की ओर पलायन नहीं के बराबर होता था। बल्कि, शहरों की तुलना में ग्राम ज्यादा खुशहाल थे। हथकरघा उद्योग के विकसित अवस्था में होने के कारण हथकरघा उद्योग द्वारा निर्मित वस्तुओं का निर्यात विदेशों में भी किया जाता था। उस समय पूरे विश्व में होने वाले निर्यात में भारत की 33 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी थी। परंतु, देश पर मुग्लों के आक्रमण एवं अंग्रेजों के शासन के बीच भारत का हथकरघा उद्योग भी विपरीत रूप से प्रभावित हुआ एवं कपड़ा उद्योग तो एक तरह से ब्रिटेन में स्थानांतरित कर दिया गया था।
अब केंद्र सरकार ने भारतीय हथकरघा उद्योग के गौरवशाली दिन वापिस लाने के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं और अभी हाल ही में, भारत में, 7 अगस्त 2021 को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया गया। हथकरघा उद्योग को पुनर्जीवित करने और बुनकरों को काम प्रदान करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने जुलाई 2015 में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की नींव रखी थी और प्रत्येक वर्ष 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था। दरअसल 7 अगस्त 1905 को कोलकता में एक महा जनसभा में स्वदेशी आंदोलन की औपचारिक रूप से शुरुआत हुई थी।
स्वदेशी आंदोलन की याद में ही वर्ष 2015 से प्रतिवर्ष 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में मनाया जाता है। हथकरघा उद्योग भारत की सांस्कृतिक विरासत के जरूरी भाग में से एक है। हथकरघा उद्योग प्राचीनकाल से ही हाथ के कारीगरों को आजीविका प्रदान करता आया है। भारत में हथकरघा उद्योग, क्षेत्र एवं समय के साथ, सबसे महत्वपूर्ण कुटीर उद्योग के रूप में उभरा है। राष्ट्रीय हथकरघा दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य हथकरघा उद्योग का देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में दिए जाने वाले महत्वपूर्ण योगदान के बारे में जागरूकता फैलाना तथा हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देना व बुनकरों की आय में वृद्धि करना है। हथकरघा उद्योग द्वारा निर्मित वस्तुओं का विदेशों में भी खूब निर्यात किया जाता है और यह बड़ी संख्या में नागरिकों की आजीविका का साधन बना हुआ है।
देश में आज हथकरघा उद्योग में 35 लाख से ज्यादा परिवारों को रोजगार प्रदान किया जा रहा है। अतः हथकरघा उद्योग के आर्थिक महत्व को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय ने एक हथकरघा कमिश्नर का पद निर्मित किया है, जो विशेष रूप से हथकरघा उद्योग में आने वाली समस्याओं का पूरी शक्ति के साथ निदान करने का प्रयास करता है।
इसके साथ ही पूरे देश में २८ केंद्रों पर बुनकर सेवा केंद्र भी काम कर रहे हैं। हमारे देश में बुनकरों के लिए मुख्य समस्या कच्चे माल अर्थात यार्न की उपलब्धता को लेकर है क्योंकि यार्न का उत्पादन किसी क्षेत्र में होता है और इसकी वीविंग (बुनना), प्रासेसिंग और गार्मेंटिंग किसी अन्य क्षेत्र में होती है। जैसे, आज सबसे अधिक बुनकर असम राज्य में हैं। देश के कुल ३५ लाख बुनकर परिवारों में से ८ लाख बुनकर परिवार उत्तर पूर्व (नोर्थ ईस्ट) राज्यों में हैं अतः इन राज्यों को कच्चा माल आसानी से उपलब्ध कराए जाने के उद्देश्य से भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय ने “यार्न सप्लाई योजना” बनाई है, जिसके अंतर्गत इन बुनकरों को अच्छी गुणवत्ता का यार्न उपलब्ध कराया जाता है। केंद्र सरकार द्वारा एक और योजना “हथकरघा विकास योजना” के अंतर्गत भी बहुत पुराने हथकरघों को नए हथकरघों से बदला जाता है ताकि इनकी उत्पादकता में वृद्धि हो सके।
हथकरघों का उचित तरीके से संचालन करने के उद्देश्य से शेड आदि की व्यवस्था भी की जाती है और इनमें बिजली, पानी आदि अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध करायी जाती है। तीसरे, बुनकरों को देश एवं विदेश में उत्पादों की मांग के अनुरूप उत्पाद विकसित करने के उद्देश्य से ब्लाक स्तर पर डिजाइनर भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। चौथे, हथकरघा उद्योग द्वारा निर्मित उत्पादों को ईकामर्स प्लेटफोर्म के साथ जोड़ा जा रहा है ताकि बुनकरों को इन उत्पादों की बाजार आधारित अच्छी कीमत मिल सके। अभी तक लगभग 150,000 बुनकरों को केंद्र सरकार के जेम्स पोर्टल से जोड़ दिया गया है। साथ ही अब हथकरघा उद्योग के लिए एक नया समर्पित पोर्टल भी विकसित किया जा रहा है, जो बुनकरों के लिए बहुत ही मददगार सिद्ध होगा।
हथकरघा उद्योग द्वारा निर्मित किए जा रहे उत्पादों को देश एवं विदेश में फैल रहे आजकल के फैशन के अनुसार भी ढालने के प्रयास किए जा रहे हैं। कई महाविद्यालयों में तो हथकरघा उद्योग में फैशन एवं डिजाइनिंग के पाठयक्रम पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। माननीय प्रधान मंत्री द्वारा दिए गए नारे “माई हैंडलूम माई प्राइड” का भी काफी प्रभाव युवा वर्ग पर पड़ा है। इन्हीं कारणों से आज के युवाओं की मानसिकता में भी बदलाव देखने में आ रहा है और वे अब हथकरघा उद्योग द्वारा निर्मित किए जा रहे उत्पादों की ओर आकर्षित होने लगे हैं। देश में आज के फैशन के अनुसार ही हथकरघा उद्योग में उत्पाद निर्मित किए जा रहे हैं।
हथकरघा उद्योग हमारे देश में बहुत पुराने समय से चला आ रहा है। इसके अंतर्गत केवल कपड़ा ही नहीं बल्कि कई अन्य तरह के उत्पाद भी निर्मित किए जाते हैं। देश के कई क्षेत्र तो विशेष उत्पाद के कारण ही प्रसिद्ध हो गए हैं जैसे कश्मीर की पश्मीना शाल, दक्षिण भारत की कांजीवरम साड़ी, मध्य प्रदेश की चन्देरी साड़ी, आदि। विशेष रूप से भारतीय गावों में महिलाओं द्वारा जो साड़ियां पहनी जाती हैं वे भी हथकरघा उद्योग द्वारा ही निर्मित होती हैं। देश में हथकरघा उद्योग द्वारा निर्मित वस्तुओं की मांग उत्पन्न करने के उद्देश्य से स्थानीय स्तर पर हाट, मार्केट एक्स्पो, प्रदर्शिनियों आदि का आयोजन भी समय समय पर किया जाता है। साथ ही अब तो वर्चूअल प्लेटफोर्म पर भी इन उत्पादों की बिक्री होने लगी है। इस प्लेटफोर्म के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा जा सकता है।
भारतीय बुनकरों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार द्वारा 125 से अधिक बुनकर सहकारी समितियों एवं बुनकर निर्माता कम्पनियों का गठन भी किया जा रहा है ताकि इस क्षेत्र की पहचान भारत की सीमाओं के बाहर भी हो सके। इस क्षेत्र में विक्रेता और क्रेता को मिलाया जा रहा है ताकि बुनकरों को सीधे भी पता चल सके कि बाजार में आज किस प्रकार के उत्पाद की मांग है और उसी प्रकार का उत्पाद बनाया जा सके। क्योंकि आज केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में हथकरघा उद्योग द्वारा निर्मित उत्पादों की मांग बढ़ती जा रही है। आज भारत में लगभग 60,000 करोड़ रुपए का उत्पादन हथकरघा उद्योग के क्षेत्र में हो रहा है। परंतु, केंद्र सरकार इसे अगले 3 वर्षों के अंदर 125,000 करोड़ रुपए तक पहुंचाये जाने का प्रयास कर रही है। हथकरघा उद्योग से लगभग 2,500 करोड़ रुपए के उत्पादों का निर्यात भी हो रहा है। देश से निर्यात भी बढ़ाए जाने के प्रयास केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे हैं।
आत्म निर्भर भारत में भी हथकरघा उद्योग का योगदान बहुत अधिक रहने की सम्भावना है। इस उद्योग में 70 प्रतिशत महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। इससे महिला सशक्तिकरण हो रहा है तथा इनका कौशल विकसित करने का कार्य भी किया जा रहा है। देश में अभी तक 11 ऐसे क्षेत्र चुने गए हैं जहां विदेशी पर्यटक अधिक संख्या में जाते हैं एवं इन स्थानों पर हथकरघा उद्योग की इकाईयां स्थापित की गईं हैं ताकि विदेशी पर्यटकों को इन इकाईयों में निर्मित होने वाले उत्पादों को दिखाया जा सके कि इन उत्पादों में कितनी बारीकी से काम होता है और कितना मेहनत लगता हैं ताकि इन उत्पादों के प्रति उनका रुझान भी बढ़ सके।
कोरोना महामारी का प्रभाव भारतीय हथकरघा उद्योग पर भी पड़ा है परंतु इस चुनौती को भी भारत के हथकरघा उद्योग ने एक तरह से अवसर में परिवर्तित कर दिया है। कोरोना महामारी के समय भारत में पीपीई किट्स एवं मास्क नहीं बनते थे परंतु देश में हथकरघा उद्योग में कुछ इस प्रकार से कार्य हुआ कि अब देश से पीपीई किट्स एवं मास्क का निर्यात किया जाने लगा है। केंद्र सरकार अब हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने का लगातार प्रयास कर रही है।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
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