जीएसटी परिषद की बैठक में काफी कुछ वैसा ही हुआ जिसकी उम्मीद की जा रही थी, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि 178 वस्तुओं को 28 फीसदी स्लैब से हटाने मात्र से जीएसटी के सरलीकरण का लक्ष्य पूरा होने वाला नहीं है। नि:संदेह एक झटके में 178 वस्तुओं को सबसे ऊंचे स्लैब से निकालने और कई अन्य वस्तुओं को कम दर वाले स्लैब में लाने या फिर टैक्स रहित करने के फैसले आम लोगों के साथ ही व्यापारियों को भी राहत देने वाले साबित होंगे, लेकिन उचित यह होगा कि सरकार यह महसूस करे कि ये सारे फैसले कहीं न कहीं यह इंगित करते हैं कि जीएसटी परिषद विभिन्न वस्तुओं पर टैक्स तय करते समय अपना काम सही तरह नहीं किया। यह अच्छा है कि समय रहते इस बात को समझा गया कि रोजमर्रा के इस्तेमाल की तमाम वस्तुओं को विलासिता वाली सामग्री माना जाना सही नहीं था ।
अब जब 28 प्रतिशत टैक्स वाले दायरे में केवल 50 वस्तुएं ही रह गई हैं तब फिर कुल स्लैब कम किए जाने पर भी विचार किया जाना चाहिए। यह सही है कि आमूल-चूल बदलाव वाली किसी भी नई व्यवस्था में संशोधन-परिवर्तन की गुंजाइश बनी ही रहती है, लेकिन इसकी भी एक सीमा होती है। ऐसा लगता है कि सरकार का सारा ध्यान जीएसटी पर राजनीतिक सहमति बनाने में ही खप गया। यह मानने के भी अच्छे-भले कारण हैं कि नौकरशाहों ने भी अपने हिस्से का काम करते समय कारोबार जगत का ध्यान नहीं रखा।
अशोक भाटिया
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