इलाहाबाद । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश जनहित गारंटी अधिनियम 2011 लागू करने में अधिकारियों की हीलाहवाली व उलझाने वाली प्रक्रिया अपनाने पर गहरी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि, पिछले 70 सालों से ब्यूरोक्रेसी जनता को गुमराह कर रही है। भ्रष्टाचार पर नियंत्रण वाले कानूनों को इतना उलझा दिया जाता है जिससे भ्रष्ट अधिकारियों की जवाबदेही तय न हो सके।
19 वर्षों से संघर्ष कर रही दुलारी देवी की याचिका पर सुनवाई कर रहे जस्टिस एस.पी. केसरवानी ने कहा कि, यदि आय प्रमाण पत्र लेना हो तो अर्जी दो दिन में तय करने का नियम है। यदि अर्जी तय नहीं होती तो वह स्वयं निरस्त समझी जाएगी। इसके खिलाफ प्रथम अपील होगी। इससे संतुष्ट न होने पर दूसरी अपील होगी। इसके बाद लापरवाह अधिकारी पर पेनल्टी लगाई जा सकेगी। इसके लिए सभी विभागों में अपीलीय अधिकरण गठित होना है, लेकिन 6 साल बीत जाने के बाद भी अधिकरण गठित नहीं किया गया। इसके साथ ही अधिकारी की जवाबदेही तय करने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई में उलझाने के नियम बनाए जा रहे हैं।
माननीय न्यायालय ने कहा कि, लोग कानूनी प्रक्रिया में उलझने की बजाय सुविधा शुल्क देना मजबूरी समझेंगे। ऐसे में सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश कैसे लगाएगी, समझ से परे है। कोर्ट ने कहा कि, आरटीआई ऐक्ट के स्पष्ट नियम के कारण ही वह प्रभावी साबित हो रहा है। इस अधिनियम को लागू करने के नियम स्पष्ट व निश्चित होने चाहिए। जिससे भ्रष्ट व लापरवाह अधिकारियों पर कार्रवाई हो सके।
इससे पहले 1 दिसंबर को न्यायालय ने कहा था कि, अधिकारियों की मनमानी के चलते वादकारी को परेशान किया जा रहा है। न्यायालय ने शीर्ष अधिकारियों से जनहित गारंटी अधिनियम लागू करने पर व्यक्तिगत हलफनामा मांगा था और पूछा था कि, क्या सरकार ने अपने अधिकारियों को बचाने के लिए कानून बनाया है। क्या मनमाने अधिकारियों की जवाबदेही तय नहीं होगी। कोर्ट द्वारा लगाये जाने वाले हर्जाने की संबंधित अधिकारियों से कैसे वसूली की जाए। लोगों को परेशान करने वाले अधिकारियों के कारण राज्य सरकार से कोर्ट हर्जाना वसूल रही है। सरकारी खजाने पर अनावश्यक बोझ पड़ रहा है। सरकार अधिनियम के तहत अपीलीय, द्वितीय अपीलीय व निगरानी सुनने के लिए अधिकारियों की तैनाती क्यों नहीं कर रही है। नियमावली क्यों नहीं बनायी गयी है। जो अधिकारी शक्तियों का दुरूपयोग कर लोगों को परेशान कर रहे हैं उनकी जवाबदेही कब तय होगी। गुरुवार को सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से कोर्ट से समय मांगा गया। जिसके बाद कोर्ट ने चौबीस घंटे का समय देते हुए शुक्रवार को भी सुनवाई करने का आदेश दिया है।