यह राय हिंदू मानस में आज आम है और वजह खुद हिंदू का ‘असाधारण’ बनना है। मध्यवर्गीय ही नहीं बल्कि बेहद, सामान्य गरीब हिंदू भी बदला है। उसकी सर्वोपरी चिंता वह फील है जो मुसलमान ने पैदा की है और जिसका फैलाव कई मायनों में वैश्विक है। इसका बीज वाक्य मैंने 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में सुना था। तब भडूच के एक हिंदू ने मुझे समझाया था कि नरेंद्र मोदी का मतलब क्या है! आज बंगाल के एक सुधी आला अफसर से उसकी प्रतिध्वनि सुनी। मैं गुजरात विधानसभा चुनाव कवर करने भडूच गया था। भाजपा बनाम कांग्रेस के दफ्तर के माहौल को समझने की कोशिश में मैंने भाजपा के एक कार्यकर्ता से बात की। उससे भाजपा के पुराने नेताओं में असंतोष, नरेंद्र मोदी की ऐकला चलो की कार्यशैली आदि के हवाले जाना कि बावजूद इस सबके गुजरात के हिंदुओं में मोदी को ले कर दिवानगी क्यों है? उसका जवाब था –हमें कांग्रेस के वक्त के वे दिन याद हैं जब रोडवेज की बस में खड़े हो कर सफर करना होता था। इसलिए कि मुसलमान की तब यह दादागिरी थी कि बस ज्योंहि लगती तो मुसलमान आता और सीट पर रूमाल रख उसे रिर्जब बना देता। किसी हिंदू की हिम्मत नहीं होती थी कि उस रूमाल को हटा कर वह खाली सीट पर बैठे। मुसलमान खटके से बैठे सफर करते और हम हिंदूओं को खड़े या बस की छत पर चढ़ सफर करना होता था। उस दादागिरी, आंखे दिखा डराने वाला वह अपमान तब खत्म हुआ जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री बने। अब उनकी न वैसी दादागिरी है और न हम डर या असुरक्षा में जीते हैं।
वह बात याद हो आई 11 मार्च के नतीजों के बाद बंगाल के सुधी अफसर के फोन से। उनका कहना था – नोट करके रखिएगा, बंगाल का हिंदू 2019 का इंतजार कर रहा है। गांव, दूरदराज का गरीब हिंदू मन ही मन कुनबुना रहा है कि कब 2019 आए और मुसलमानों को सिर पर बैठा कर राज करने वाली तृणमूल, कांग्रेस, लेफ्ट पार्टियों से छुटकारा मिले। हिंदू तंग आ चुका है। अब यह नहीं चलेगा कि टोपी पहना मुसलमान रेड लाइट क्रास करे तो ट्रैफिक कांस्टेबल में उसे रोकने, चालान काटने की हिम्मत नहीं हो जबकि यदि कोई हिंदू रेड लाइट क्रास करे तो उसे फटाक रोक, उसका चालान काट दे।। दुर्गा पूजा इसलिए नहीं हो क्योंकि मोहरम का जुलूस निकलना है। मुसलमान की बीस रु की टोपी कानून से ऊपर, छूट का लाइसेंस बन गई है जबकि हिंदू के लिए कानून का डंडा है। इस सबको हिंदू चुपचाप समझते हुए मोदी में सुरक्षा मानने लगा है। वह 2019 का इंतजार कर रहा है कि कब लोकसभा चुनाव आए और कमल पर मोहर लगाएं।
इन दो बातों के साथ बनारस में उस व्यापारी की बात को भी आप याद करें जो मैंने बनारस की आह, वाह सीरिज में लिखा था। वह सामान्य दुकानदार नोटबंदी से घायल था। बावजूद इसके यह कहते हुए उसने अपने को मोदी-शाह का भक्त बताया कि मुसलमान करोड़ों की कमाई करे तब भी टैक्स नहीं देगा। बैंक में खाते नहीं खोलेगा। लेन-देन, पैसे को दो नंबर में बनाए रखेगा। इसलिए जो हुआ है अच्छा है और कोई फर्क नहीं पड़ता कामधंधे का। मैं मोदी को इसलिए वोट दूंगा क्योंकि उन्हें (मुसलमान) वे कानून में ला दे रहे हैं। बता दे रहे हैे कि ऐसे नहीं चलेगा।
फिर पश्चिम उत्तरप्रदेश का अकल्पनीय पहलू। जाट गुस्सा थे। जाट नेताओं ने भाजपा से नाता तोड़ने का निश्चय बताया। बावजूद इसके पश्चिम उत्तर प्रदेश में भाजपा को 43.7 प्रतिशत वोट मिले। बाकि पार्टियों का सफाया। जाहिर है जैसे बनारस के व्यापारी ने नुकसान के बावजूद मुस्लिम पर फोकस बना मोदी को वोट दिया तो संभव है वैसे ही जाट मानस भी चुपचाप रोमिया बिग्रेड के इस वायदे से प्रभावित हुआ होगा कि हिंदू लड़कियों से मुस्लिम लड़के छेड़खानी करते हैं और अब उन पर भाजपा कानून लागू कराएगी। सो बस की खाली सीट पर रूमाल रखने की दादागिरी या लड़कियों को छेड़ने या मुस्लिम टोपी पहने होने से रैड लाईट क्रास करने की मनोवृति की ये बाते यों बहुत छोटी, प्रतीकात्मक है पर उस आम हिंदू जन में इसका बहुत मतलब है जो मुस्लिम आबादी के बीच जीता है। इस हिंदू के लिए यही बड़ी बात है कि मोदी राजा ऐसा है जिससे मुसलमान का व्यवहार अपने आप बदल जाता है। यूपी में उनका राज बना तो फिर प्रशासन, डीएम, एसपी इस दुविधा में नहीं रहेंगे कि किसी मुसलमान गुंडे के खिलाफ शिकायत हुई तो उस पर कार्रवाई की जाए या नहीं?
सोचिए, कितनी बारीक मगर गहरी बात है यह। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी या बसपा या सेकुलर राजनीति में यह चिंता नहीं हुई है कि प्रशासन, कानून पर अमल में मुस्लिम टोपी को विशेष तरजीह की आम हिंदू में कैसी मौन प्रतिक्रिया है। अखिलेश यादव का यह तर्क अपनी जगह है कि लोगों ने विकास नहीं देखा। जनता बहकावे में बहती है मगर जनता की हिंदू बहुसंख्या में ऐसी चिंता, असुरक्षा के भाव का क्या होगा? कानून सबके लिए बराबर है लेकिन राजनैतिक कारणों से, मुसलमान के थोक वोट की चिंता में प्रदेश सरकार की तासीर यदि भेदभावपूर्ण फील हो रही है तो यह उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल से ले कर केरल, जम्मू-कश्मीर आदि में हिंदुओं में कैसा मिजाज बनवा दे रही है,इसका बारीकि से क्या कभी विश्लेषण हुआ है? तभी अब जहां-जहां हिंदू को मौका मिलेगा वह नरेंद्र मोदी-अमित शाह पर इस मामले में भरोसा किए रहेगा। अपने आपमें यही मौन अंर्तधारा भारत की राजनीति में बुनियादी परिवर्तन ले आ रही है।
अमित शाह का उत्तरप्रदेश में सबसे बड़ा दांव यह था कि 403 सीटों में एक भी मुसलमान उम्मीदवार खड़ा नहीं किया। एक भी नाम नहीं। ऐसा उन्होंने यह सोचते हुए किया कि इससे आम हिंदू को मैसेज बनेगा कि भाजपा अकेली पार्टी है जो मुसलमान वोटों की चिंता नहीं करती है। बिना मुसलमान वोट के भी वह चुनाव जीतने का भरोसा रखती है। उसे परवाह नहीं है कि मुसलमान क्या सोचेगा या देश की सेकुलर राजनीति में क्या आलोचना होगी? तय माने की इसकी जितनी आलोचना हुई होगी उससे कई गुना अधिक आम हिंदू वोटों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की मौन वाह बनी होगी।
नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने 2014 का लोकसभा चुनाव यूपी में हिंदू मनोभाव को समझते हुए लड़ा था। इस विधानसभा चुनाव को भी श्मशान बनाम कब्रिस्तान के जुमले पर लड़ा। मुसलमान उम्मीदवार खड़ा नहीं करना या श्मशान बनाम कब्रिस्तान या वाराणसी के आश्रम में रूद्राक्ष मालाएं पहनना छोटी-छोटी बाते है। मगर राजा जब ऐसा रूप धारण करता है, ऐसे जुमले बोलता है तो वह चुपचाप लोगों के जहन में प्रतीकात्मक धमक पाता जाता है। नरेंद्र मोदी या अमित शाह का इन बातों में संकोची नहीं होना ही उन्हें जहां जनमानस में असाधारण बना चुका है वहीं मुस्लिम मानस में इसका कैसा गहरा मौन असर हुआ है, यह गुजरात के अनुभव में झलका है। आगे यूपी के शासन अनुभव में भी झलकेगा। इससे फिर अपने आप बंगाल, बिहार, केरल आदि गैर-भाजपाई राज्यों में बात अनिवार्यत फैलेगी। और सोचे, अकेली यही बात मोदी-शाह की कितनी लंबी पारी की नींव बनवा दे सकती है?
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