Tuesday, November 19, 2024
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अस्पतालों की लूट जारी है, कब जागेगी सरकार

राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने स्टेंट की अधिकतम कीमत तो तय कर दी, लेकिन इससे मरीजों की दिक्कतें पूरी तरह दूर नहीं हुई हैं। स्टेंट तो उन्हें सस्ता मिल रहा है, लेकिन दिल की बीमारी के इलाज में काम आने वाले कई दूसरे उपकरण अब भी बहुत ज्यादा महंगे हैं। इसकी वजह उन पर होने वाली मुनाफाखोरी है। महाराष्ट्र खाद्य एवं औषधि विभाग ने दिसंबर, 2016 से अप्रैल, 2017 के बीच एक अध्ययन कराया था, जिसमें पता चला कि एंजियोप्लास्टी के लिए जरूरी बैलून और गाइडिंग कैथेटर जैसे उपकरण अब भी बहुत महंगे मिल रहे हैं।

अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक इन उपकरणों में सबसे ज्यादा मुनाफा अस्पताल कमाते हैं। पता चला है कि बैलून कैथेटर अस्पतालों में मरीजों को 4 गुना से ज्यादा कीमत पर बेचा जा रहा है। इसी तरह गाइडिंग कैथेटर के लिए 5 गुना से ज्यादा कीमत वसूल की जा रही है। कुल मिलाकर अस्पताल बैलून कैथेटर में 462 फीसदी और गाइडिंग कैथेटर में 529 फीसदी मुनाफा कमा रहे हैं।

रिपोर्ट मुनाफे के इस धंधे का पूरा खुलासा करती है। उसमें बताया गया कि बैलून कैथेटर में वितरक 20 फीसदी से 211 फीसदी तक मुनाफा कमा लेते हैं। गाइडिंग कैथेटर में भी उन्हें 64 से 119 फीसदी तक मुनाफा हासिल हो जाता है। उपकरण बनाने वाली कंपनियां बैलून कैथेटर में 17 से 120 फीसदी और गाइडिंग कैथेटर में 3 से 154 फीसदी तक मुनाफा कमा रही हैं। बिज़नेस स्टैंडर्ड ने एनपीपीए को सौंपी गई इस रिपोर्ट को देखा है। रिपोर्ट महाराष्ट्र के 12 बड़े अस्पतालों के बिलों पर आधारित है। इनमें फोर्टिस (मुलुंड), वॉकहार्ड हॉस्पिटल (नागपुर) , हीरानंदानी हेल्थकेयर और एशियन हार्ट इंस्टीट्यूट (मुंबई) शामिल हैं। इसके मुताबिक कोई मरीज बैलून कैथेटर खरीदने के लिए जितनी रकम चुकाता है उसमें 70 फीसदी से ज्यादा तो मुनाफे की शक्ल में निर्माता कंपनी, वितरक और अस्पताल की जेब में चली जाती है। गाइडिंग कैथेटर की 47 फीसदी कीमत उनके पास जाती है।

रिपोर्ट में जर्मनी की कंपनी बायोट्रॉनिक द्वारा बनाए गए बैलून कैथेटर का उदाहरण दिया गया है। इसे 4,229 रुपये में देश में आयात कर लिया जाता है, लेकिन वितरक को यह 5,918 रुपये में बेचा जाता है। वितरक फोर्टिस अस्पताल से इसके लिए 7,950 रुपये वसूलता है। सबसे आखिर में अस्पताल मरीज को यही कैथेटर 22,000 रुपये में बेचता है। इसी तरह एबट का बैलून कैथेटर जब भारत पहुंचता है तो उसकी कीमत 4,534 रुपये होती है। इसे 7,532 रुपये में वितरक को बेचा जाता है जो इसे फोर्टिस अस्पताल को करीब 9,500 रुपये में बेचता है। मरीज को यह 22,000 रुपये में मिलता है। दोनों ही मामलों में अस्पताल तो मुनाफा कूट ही रहा है, मरीज को आयातित कीमत से 5 गुना कीमत भरनी पड़ रही है। अमूमन एक एंजियोप्लास्टी में दो बैलून कैथेटर इस्तेमाल किए जाते हैं।

जॉनसन ऐंड जॉनसन के गाइडिंग कैथेटर को ही ले लीजिए। इसे 1,425 रुपये में आयात किया गया। वितरक को अगर यह 3,627 रुपये में और अस्पताल को 5,325 रुपये में मिलता है तो भी मरीज को इसके लिए 7,550 रुपये चुकाने पड़ते हैं। इस तरह अस्पताल 150 फीसदी मुनाफा कमाता है और मरीज को आयात मूल्य का करीब 529 फीसदी चुकाना पड़ रहा है। स्टेंट लगाने की प्रक्रिया में एक या दो गाइडिंग कैथेटरों की जरूरत पड़ती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश अस्पताल सही बिल आदि के साथ बैलून कैथेटर नहीं खरीदते हैं जो औषधि एवं सौदर्य प्रसाधन कानून का उल्लंघन है। एबट के प्रवक्ता ने कहा कि अलग-अलग देश में स्वास्थ्य की व्यवस्था भी अलग-अलग है और किसी उत्पाद की कीमत उस देश की व्यवस्था पर निर्भर करती है। उत्पाद की कीमत में उत्पादन लागत के साथ अनुसंधान-विकास आदि के खर्च भी शामिल होते हैं। दूसरी कंपनियों और अस्पतालों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड के सवालों का जवाब नहीं दिया। ऑक्सीजन बैग और यूरिनरी बैग जैसे उपकरणों का भी यही हाल है। अस्पताल 3 गुनी कीमत पर ऑक्सीजन बैग बेचते हैं। वहीं यूरिनरी बैग के लिए 5 गुना कीमत वसूली जाती है। आंखों के लेंस की 200 से 300 फीसदी कीमत वसूलते हैं। एनपीपीए द्वारा कीमत नियंत्रित किए जाने से पहले स्टेंट पर भी 270 फीसदी से 1000 फीसदी मुनाफा कमाया जा रहा था।

साभार- http://hindi.business-standard.com/ से

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