Sunday, November 24, 2024
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जिसे मंत्रालय ने योग्य माना, उसे कैबिनेेट सचिव ने अनुभवहीन, क्या मोदीजी की आँखें अब भी नहीं खुलेगी

अपने लंबे पत्रकारी अनुभव में ऐसा पहले कभी नहीं सुना कि भारत का सूचना-प्रसारण मंत्री चाहे और एक समाचार एजेंसी भी उसकी परवाह नहीं करे और न ही कैबिनेट सचिव! दोनों खबरों से दिमाग चकरा गया। ताजा खबर मीडिया की ट्रेनिंग देने वाली भारत सरकार की सरकारी संस्था आईआईएमसी की है। इसके महानिदेशक का पद खाली है। इस पद के लिए मंत्रालय ने केजी सुरेश का नाम नियुक्ति के लिए तय किया लेकिन कैबिनेट सचिव ने यह कहते हुए फाईल लौटा दी कि सुरेश को प्रशासकीय अनुभव नहीं है। केजी सुरेश ने बतौर पत्रकार उस विवेकानंद फाउंडेशन में काम किया जिसमें अजीत डोभाल, नृपेंद्र मिश्र, सूर्यप्रकाश और वीके सारस्वत थे। यह फाउंडेशन संघ-भाजपा और हिंदू राष्ट्रवादी विचार का पोषक रहा है। वाजपेयी सरकार के वक्त इसका गठन हुआ था। कांग्रेस और लेफ्ट इसे संघी संगठन मानते हैं। इस संगठन के चार आला मतलब अजीत डोभाल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, नृपेंद्र मिश्र प्रमुख सचिव, सूर्यप्रकाश प्रसार भारती प्रमुख और सारस्वत नीति आयोग सदस्य हैं। उस नाते आईआईएमसी के लिए यहां रहे केजी सुरेश का नाम गया होगा तो सरकार-भाजपा-संघ सबकी राय से ही तय हुआ होगा। मगर कैबिनेट सचिव ने सुरेश को फिट नहीं माना। इंटरव्यू हो गया सब हो गया लेकिन कैबिनेट सचिव ने उसे अपात्र समझा। यह गजब बात है। अब तय मानें कि कोई सरकारी कर्मचारी ही नियुक्त होगा। पिछली सरकारों में सत्तावान की राजनैतिक इच्छा से फैसला होता था। आखिर मीडिया के पत्रकार पैदा करने का संस्थान है।

दूसरी खबर लेफ्ट-सेकुलर पुरोधा वरदराजन ने 28 फरवरी को इस शीर्षक से वेबसाइट पर दी कि–जेटली को धक्का, पीटीआई बोर्ड ने एडिटर पद के लिए राजनैतिक पैरवी को नहीं माना। खबर अनुसार तीन नामों की पैरवी हुई थी। एक अशोक मलिक, दूसरा केए बद्रीनाथ और तीसरा शरद गुप्ता। खबर अनुसार एक की पैरवी (अशोक मलिक) खुद अरुण जेटली ने की। दो को जेटली ने ही आवेदन करने के लिए कहा था। फिर बोर्ड बैठक में जागरण अखबार के सदस्य मोहन गुप्ता के जरिए इन पर विचार करवाया गया। भावना जाहिर की गई लेकिन पीटीआई के बोर्ड ने इन तीनों नामों पर विचार कर इन्हें अनफिट माना। तय किया कि संपादक की पोस्ट के लिए ऐसे पोलिटिकल नॉमिनी नहीं माने जाने चाहिए। सो बोर्ड ने सर्च कमेटी बना स्वतंत्र पत्रकार और संपादक को चिन्हित करने का फैसला लिया है। ऐसी हिमाकत कांग्रेस राज में कभी नहीं हो सकती थी।

पीटीआई बोर्ड ने न केवल सरकार और सत्तारूढ़ जमात की भावनाओं की चिंता नहीं की बल्कि सेकुलर झंडाबरदार पत्रकार से यह डंका भी पिटवा दिया कि अरुण जेटली को अंगूठा दिखाया गया और तीन पत्रकारों को बोर्ड ने एक रंग में रंगा माना और राजनैतिक पैरवी से आए के बजाय वह स्वतंत्र संपादक नियुक्त करेगा?

सो एक तरफ प्रशासकीय अनुभव के आधार पर आज के सत्तावानों की पसंद रिजेक्ट हैं तो दूसरी और कथित ‘स्वतंत्र’ पत्रकार की कसौटी पर अशोक मलिक, बद्रीनाथ और शरद गुप्ता रिजेक्ट हैं।

यह है नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की धमक। इस धमक का तब भी अपने को अनुमान हुआ था जब चंडीगढ़ के ट्रिब्यून ट्र्स्ट में जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोरा के वर्चस्व वाले ट्रस्ट ने यह तय किया कि मोदी सरकार की हकीकत और भावना के अनुसार नया संपादक नहीं हो और स्वतंत्र मिजाज वाला संपादक बने। तभी उन हरीश खरे को प्रधान संपादक बनाया गया जो गुजरात के वक्त नरेंद्र मोदी और अमित शाह को नरसंहारकर्ता बताते–मानते रहे हैं।

मतलब आज की हकीकत यह है कि स्वतंत्र पत्रकार या संपादक वह है जो नरेंद्र मोदी, मोदी सरकार को देश का दुर्भाग्य बताए। ट्रिब्यून ट्रस्ट हो या पीटीआई बोर्ड या कैबिनेट सचिवालय, सभी में आज जुनून से यह काम और फैसले हैं कि ऐसे चेहरे मीडिया में न आएं, न छाएं जो नरेंद्र मोदी, हिंदू विचारधारा, भाजपा या अमित शाह का समर्थन करते हों या तटस्थ भाव से लिखते हों या विचार बताते हों।

एक और हकीकत जान लें। यह हकीकत इसलिए है क्योंकि नया इंडिया सभी समाचार एजेंसियों से समाचार लेता है, उसके अनुभव में यह पहली बार देखने को मिल रहा है कि न्यूज की कॉपी में भाजपा,मोदी सरकार के खिलाफ एंगल आने लगा है। जेएनयू और इशरत के हालिया विवाद के दौरान एजेंसियों की खबर के इंट्रो में ऐसे एंगल थे कि अपने आप सरकार विरोधी खबर बने। मतलब तमाम जनवादी, लेफ्ट पत्रकार न्यूज डेस्क पर मिशन भाव काम कर रहे हैं।

यह सब अरुण जेटली की ही बदौलत है। जेटली ने सत्ता में आने के बाद पहला काम यह किया कि जो निज तौर पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह के विरोधी थे उन्हें गले लगाया, उनकी किताब का विमोचन कर देश-दुनिया को मैसेज दिया कि इस सरकार में भी ये सेकुलर ब्रांड उतने ही मान्य हैं जितने कांग्रेस के वक्त था। ऐसे में स्वाभाविक है कि तब अशोक मलिक, शरद गुप्ता, बद्रीनाथ या केजी सुरेश पक्षपातपूर्ण संपादक माने जाएंगे। ब्रांड वेल्यू आज वरदराजन, राजदीप की है न कि स्वप्नदास या अशोक मलिक की। इनडिपेंडेंट मीडिया आज एनडीटीवी और हिंदुस्तान टाइम्स हैं न कि जीटीवी या पायनियर!

सो सरकार का मतलब क्या है?

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