नई दिल्ली : जिन ‘चंदा मामा’ ने देश की आजादी के बाद से ही लगातार लोगों को कहानियां सुनाकर बड़ा किया. जिन ‘चंदा मामा’ को पढ़ने के लिए बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक उत्सुक रहते थे, अब वहीं ‘चंदामामा’ बिकने की कगार पर हैं. जी हां, चौंकिए नहीं, ये सच है. हम बात कर रहे हैं 1947 में देश में लांच हुई चंदा मामा मैग्जीन की. मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से कहा जा रहा है कि इस मैगजीन के स्वामित्व वाली कंपनी के मालिकान इस समय जेल में हैं और जल्द ही इसके बिकने की भी खबरें आ रही हैं.
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बांबे हाईकोर्ट ने 11 जनवरी को चंदामामा मैग्जीन के इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स (ट्रेडिंग, कॉपीराइट और पेटेंट, ट्रेडमार्क) को बेचने का आदेश दिया है. चंदामामा के स्वामित्व वाली कंपनी जियोडेसिक लिमिटेड है. जालसाजी और बेईमानी के आरोपों के कारण यह दिवालियापन से जूझ रही है.
इस कंपनी के तीन डायरेक्टर किरण प्रकाश कुलकर्णी, प्रशांत मुलेकर और पंकज श्रीवास्तव के साथ ही कंपनी के चार्टर्ड अकाउंटेंट दिनेश जजोडिया भी मौजूदा समय इस केस में गिरफ्तार हैं. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि इसकी बिक्री की प्रक्रिया प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत गठित विशेष कोर्ट के साथ कानून के मुताबिक करेगी.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चंदामामा मैग्जीन की बाजार पूंजी 25 करोड़ रुपये है. प्रवर्तन निदेशालय ने चंदामामा की संपित्तयों के साथ ही जियोडेसिक लिमिटेड के डायरेक्टरों की 16 करोड़ रुपये की संपत्तियां भी पीएमएलए के तहत जब्त कर चुकी है.
बता दें कि चंदामामा मैग्जीन की पहली प्रति जुलाई, 1947 में तेलुगू और तमिल में प्रकाशित हुई थी. इसकी स्थापना बी नागी रेड्डी और चक्रपाणी ने की थी. मार्च 2007 में चंदामामा को वित्तीय घाटे और लगातार घटते सर्कुलेशन के कारण जियोडेसिक लिमिटेड ने इसकी 94 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली थी.