धार (इंदौर). छात्रा कमला जमरा ने एआईपीएमटी में रिजर्व कोटे में एमपी में सातवीं रैंक हासिल की है। वह चार साल की थी, तब पिता की मौत हो गई थी। गांव में कुछ जमीन है और मां खेत में मजदूर है। बेटी का टैलेंट देख मां ने खेतों में मजदूरी कर कोचिंग फीस और होस्टल किराए के पैसे जुटाए। रिश्तेदारों और गांव के कई लोगों से कर्ज भी लिया। तीन प्रतिशत के ब्याज पर अब तक 80 हजार रु. कर्ज ले चुकी हैं। अब कॉलेज की फीस के लिए 48 हजार रु. जमां कर रही हैं।
तीन बेटियों की मां सेलकुबाई ने बड़ी बेटी कमला के टैलेंट को देखते हुए उसे शुरुआत से ही गांव के प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया। 9वीं में धार के उत्कृष्ट विद्यालय में सिलेक्शन हो गया। होस्टल में रहते हुए उसने पढ़ाई की। यहां कमला ने 12वीं में स्कूल में टॉप किया। इसके बाद जब डॉक्टर बनने की इच्छा से कमला इंदौर गई तो पीएमटी के पहले अटेंप्ट में पैटर्न समझ नहीं आने से सफल नहीं हो सकी।
निराशा छा गई, मां की स्थिति को देखते हुए एक बार तो वापस गांव आने का मन बना लिया लेकिन मां ने हौंसला बढ़ाया। ड्रॉप लेकर इंदौर में ही एक साल पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित किया। इंदौर में कोचिंग की फीस सालभर की 70 हजार रु. थी। कमला के पुराने रिजल्ट देख कोचिंग संचालक ने फीस घटाकर 30 हजार रु. कर दी। मां ने पैसे जुटाए और फीस भरी। इसके अलावा होस्टल का खर्च हर महीने 3500 रु. के आसपास आया।
सेलकुबाई ने बताया एक बीघा जमीन पर सिंचाई साधन नहीं होने से साल में मुश्किल से दो क्विंटल सोयाबीन होती है, जिससे 6 हजार रु. से ज्यादा नहीं आते। इसके चलते गांव में 100 रु. रोज पर मजदूरी करती हूं। कमला की कोचिंग फीस व होस्टल खर्च के लिए भाई समेत रिश्तेदारों ने पैसे दिए। कुछ रु. महाजन से तीन प्रतिशत ब्याज दर पर उठाया। अब तक 80 हजार रु. का कर्ज हो गया है।
साभार- दैनिक भास्कर से