हर साल बड़ी संख्या में नई ट्रेनों की घोषणा कर रेल बजट को राजनीतिक पटरी पर दौड़ने की परंपरा बीते जमाने की बात होने जा रही है। इस कड़ी में रेल मंत्री सुरेश प्रभु के रेल बजट 2016-17 में जनता के लिए एक भी नई ट्रेन की सौगात नहीं होगी। यह दूसरा मौका होगा जब प्रभु रेल बजट में नई ट्रेनों की घोषणा नहीं करेंगे। मोदी सरकार के कदम को रेल बजट को राजनीतिक चक्रव्यूह से निकलाने के प्रयासों के तहत देखा जा रहा है।
रेल मंत्री सुरेश प्रभु के आगामी रेल बजट में नई ट्रेन नहीं चलाने के फैसले के पीछे कई तर्क दिए जा रहे हैं। इसमें सबसे बड़ा कारण यह है कि देश के सभी प्रमुख रेलमार्ग पर ट्रेनों के भारी दबाव है। आलम यह है कि रेल मंत्री सुरेश प्रभु को प्रीमियम राजधानी एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस और दुरंतो सहित मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों का समय पालन ठीक करने में पसीना बहाना पड़ रहा है।
मौजूदा रेल मार्ग नई ट्रेनों का बोझ सहने में पूरी तरह से अक्षम हैं। अधिकांश रेल मार्गों का क्षमता से 100 से 200 फीसदी से अधिक तक इस्तेमाल किया जा रहा है। यह रेल हादसों को खुला न्यौता है। यही कारण है कि प्रभु ने रेल बजट 2015-16 में एक भी नई ट्रेन नहीं चलाई। प्रभु ने समझधारी दिखाते हुए नई ट्रेनों को चलाने के बजाए मौजूदा ट्रेनों की लंबाई बढ़ाकर रेल यात्रियों को बर्थ देने का प्रयास किया है। इसमें प्रत्येक ट्रेन में दो जनरल कोच लगाए जा रहे हैं।
जहां जरूरत होगी नई ट्रेन
रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने एक अनौपचारिक मुलाकात में ‘हिन्दुस्तान’ को बताया कि अगले साल रेल बजट में नई ट्रेनें चलाने की घोषणा नहीं की जाएगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि रेल बजट वार्षिक योजना के लिए वित्तीय खाका पेश करने का जरिया है। लेकिन राजनीतिक स्वार्थ के कारण रेल बजट को लोकलुभावन पटरी पर दौड़ाया गया। रेल मार्गों पर कंजेशन होने के बावजूद नई ट्रेनों की संख्या बढ़ती गई।
उन्होंने कहा कि जहां जरूरत होगी नई ट्रेन चला दी जाएगी। इसके लिए रेल बजट का इंतजार नहीं करना पड़ता। हालांकि उन्होंने साफ किया कि अत्याधिक दबाव वाले रेल मार्गों पर नई ट्रेन चलाने से परहेज किया जाएगा। प्रभु का पूरा ध्यान प्रमुख रेल मार्गों पर तीसरी, चौथी लाइन बिछाने का है जिससे नई ट्रेनों को चलाने की जगह बने।