यूक्रेन के राष्ट्रपति चुनाव ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है. बीते रविवार को हुए दूसरे और अंतिम दौर के राष्ट्रपति चुनाव में कॉमेडियन वोलोदिमीर जेलेंस्की की बड़ी जीत हुई है. 98 फीसदी मतों की गिनती होने तक वोलोदिमीर जेलेंस्की 73 फीसद वोट पा चुके थे, जबकि वर्तमान राष्ट्रपति पेत्रो पोरोशेंको महज 25 फीसद वोट ही हासिल कर सके थे.
यूक्रेन के राष्ट्रपति चुनाव के इन नतीजों के बाद सबसे बड़ा सवाल यही पूछा जा रहा है कि यूक्रेन के लोगों ने एक ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रपति क्यों चुना जिसका राजनीतिक अनुभव शून्य है और जो कुछ महीने पहले ही राजनीति में आया है? यूक्रेन की राजनीतिक परस्थितियों को समझने वाले कुछ जानकार इसकी कई वजहें बताते हैं.
गरीबी-बेरोजगारी से जनता त्रस्त
यूक्रेन की राजनीति पर नजर रखने वाले जानकार बताते हैं कि यहां की जनता द्वारा बड़े-बड़े राजनेताओं को दरकिनार करके एक अभिनेता को तरजीह देने के पीछे की बड़ी वजहें गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार हैं. साल 2016 में आयी संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की एक रिपोर्ट के अनुसार यूक्रेन यूरोप के सबसे गरीब देशों में से एक है. यहां के 60 प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं. स्थानीय मीडिया की ही मानें तो यूक्रेन में जहां गरीब और गरीब होते जा रहे हैं, वहीं यहां का कुलीन वर्ग यानी अरबपति और अमीर हुए हैं. 2017 में देश के 100 सबसे अमीर लोगों की संयुक्त संपत्ति केवल एक वर्ष में 43 प्रतिशत बढ़कर 37 अरब डॉलर तक पहुंच गई.
अगर रोजगार की स्थिति पर बात करें तो यूक्रेन में बेरोजगारी का आलम यह है कि पिछले पांच से ज्यादा सालों में करीब 32 लाख लोग नौकरी के लिए दूसरे देशों का रुख कर चुके हैं. यहां हर 10 में एक युवा स्थायी तौर पर किसी अन्य देश में नौकरी करना चाहता है.
जानकार कहते हैं कि इन वजहों के चलते यूक्रेन के नेताओं के ऊपर से जनता का भरोसा पूरी तरह उठ चुका है. एक हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक इस मामले में यूक्रेन लगातार दूसरे साल दुनिया में सबसे निचले पायदान पर रहा है. यहां केवल नौ फीसदी लोग ही अपनी सरकार पर भरोसा करते हैं.
वर्तमान राष्ट्रपति ने हालात और खराब कर दिए
यूक्रेन में सरकार के खिलाफ जनता का गुस्सा और सड़कों पर उतरना कोई नई बात नहीं है. साल 2013 में भी आर्थिक विकास, पारदर्शिता, भ्रष्टाचार और युद्ध की स्थिति खत्म करने के लिए तत्कालीन सरकार के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन हुआ था. उस समय विपक्षी नेता पेत्रो पोरोशेंको ने इस आंदोलन का फायदा उठाया और तमाम वादे करके सत्ता में आ गए. उन्होंने कुछ दिनों के भीतर ही रूस से युद्ध की स्थिति समाप्त करने, शक्तिशाली कुलीन वर्ग से पीछा छुड़वाने और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को व्यक्तिगत रूप से देखने का भी वादा किया था.
यूक्रेन के लोग रूस से तनाव और लगभग हर क्षेत्र में कुलीन वर्ग के दबदबे को भी देश के बुरे हालात की वजह मानते हैं. अर्थव्यवस्था के बड़े क्षेत्रों – ऊर्जा, कृषि, मीडिया और प्राकृतिक संसाधनों पर इस वर्ग का एकाधिकार है. इन क्षेत्रों में इस वर्ग के लोग मनमुताबिक काम करते हैं. रसूख और पैसे की वजह कोई सरकारी एजेंसी इनके खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं कर पाती.
यही वजह है कि जब 2013 में पेत्रो पोरोशेंको ने सार्वजनिक रूप से इनसे निपटने के वादे किये तो जनता का उन पर भरोसा बन गया. लेकिन, बीते पांच सालों में पोरोशेंको के शासन में स्थितियां और खराब हो गईं. न तो वे रूस से तनाव कम कर सके, न ही कुलीन वर्ग का दबदबा कम कर पाए और न ही भ्रष्टाचार पर रोक लगा पाए. उनके शासन में भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए हैं.
यूक्रेन के वर्तमान राष्ट्रपति पेत्रो पोरोशेंको भी अपने वादों पर खरे नहीं उतरे, उनकी सरकार में कई घोटाले सामने आये हैं | फोटो : एएफपी
बीते महीने ही यूक्रेन के एक मीडिया संस्थान ने खुलासा किया कि राष्ट्रपति के करीबी मित्र और वर्तमान में देश की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के उप प्रमुख ओलेह ह्लादकोवस्की ने रक्षा खरीद सौदों में बड़ा भ्रष्टाचार किया है. राष्ट्रपति पेत्रो पोरोशेंको ने अपने कार्यकाल के दौरान न्यायिक प्रक्रिया में भ्रष्टाचार खत्म कर देने का दावा किया था. लेकिन कुछ महीने पहले ही न्यायपालिका में बड़ी धांधली सामने आयी. यूक्रेन के हाईकोर्ट में ऐसे जजों को नियुक्त कर दिया गया जिन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप हैं. देश के एक बेहद ईमानदार और चर्चित मानवाधिकार कार्यकर्ता पावलो पार्कहोमेन्को एकमात्र ऐसे न्यायाधीश थे जिनके आवेदन को निरस्त कर दिया गया.
यूक्रेन की चर्चित पत्रकार कात्या गोरचिंस्की अपनी एक टिप्पणी में लिखती हैं, ‘यूक्रेन में कई बार सरकार विरोधी आंदोलन हुए जिनका हमेशा फायदा विपक्षी पार्टी ने उठाया. लेकिन, यूक्रेन के हालात इसके बाद भी नहीं बदले.’ वे आगे कहती हैं कि जनता बार-बार यह सब देख चुकी है, इसलिए उसने इस बार पूरी राजनीतिक बिरादरी को ही बायकॉट करने का फैसला कर लिया है.
सीरियल में राष्ट्रपति की भूमिका निभाने का वोलोदिमीर जेलेंस्की को कितना फायदा मिल रहा है?
कॉमेडियन वोलोदिमीर जेलेंस्की ने 2015 में यूक्रेन के चर्चित टीवी सीरियल ‘सर्वेंट ऑफ़ द पीपल’ में मुख्य किरदार निभाया था. इस सीरियल में उन्होंने ‘वसीली होलबोरोडको’ नाम के एक इतिहास टीचर की भूमिका निभाई थी, जो बेहद गरीब और ईमानदार होता है पर परिस्थितियां कुछ इस तरह बदलती हैं कि वह एक दिन देश का राष्ट्रपति बन जाता है. यूक्रेन में इस सीरियल के चलते वोलोदिमीर जेलेंस्की की लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हुआ था.
राष्ट्रपति चुनाव में उनकी पार्टी ने उनकी सीरियल वाली ईमानदार टीचर की इमेज को पूरी तरह से भुनाने की कोशिश की. पार्टी ने प्रचार में जेलेंस्की की वही तस्वीरें इस्तेमाल की, जो सीरियल के दौरान वहां के समाचार पत्रों में छपती थीं. जेलेंस्की अपने भाषणों में भी कहते हैं कि वे वास्तव में ‘वसीली होलबोरोडको’ की तरह ही ईमानदार हैं.
यूक्रेनी मीडिया की मानें तो भले ही वोलोदिमीर जेलेंस्की अपने उसी किरदार की वजह से तेजी से चर्चित हुए हों, लेकिन लोग केवल इसी वजह से उन्हें वोट नहीं दे रहे हैं. हाल में हुए एक सर्वेक्षण में 54 फीसदी लोगों ने कहा कि वे 41 वर्षीय जेलेंस्की को केवल इसलिए वोट देंगे क्योंकि वे राजनीतिक पृष्ठ्भूमि से नहीं आते और राजनीति में नए हैं. कुछ लोगों ने यह भी जोड़ा कि जेलेंस्की के पास करोड़ों की संपत्ति है इसलिए वे अन्य नेताओं की तरह भ्रष्टाचार नहीं करेंगे. इस सर्वे में केवल छह फीसदी लोगों ने ही कहा कि वे सीरियल में जेलेंस्की के किरदार से प्रभावित होकर उन्हें वोट दे रहे हैं.
इस सर्वेक्षण से जुड़े विशेषज्ञ एंड्री बिचेंको जर्मन न्यूज़ एजेंसी डॉयचे वेले से कहते हैं, ‘सीरियल में ईमानदार टीचर और राष्ट्रपति का किरदार चुनाव में जेलेंस्की की मदद तो कर ही रहा है, लेकिन उन्हें इतना ज्यादा समर्थन मिलने की मुख्य वजह यह नहीं हैं.’ बिचेंको आगे कहते हैं कि निर्णायक फैक्टर तो नेताओं और सिस्टम के खिलाफ लोगों में भरा गुस्सा ही है, और ऐसे में उन्हें एक बेहद साफ़-सुथरा गैर राजनीतिक व्यक्ति मिल गया है, जो नेताओं के खिलाफ उनके विरोध का झंडा उठाने को तैयार है.
साभार- https://satyagrah.scroll.in/ से