राजस्थानी भाषा साहित्य की श्रीवृद्धि के पुरोधा साहित्यकार जितेंद्र ‘ निर्मोही ‘
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
हाड़ोती में राजस्थानी भाषा के साहित्य की श्रीवृद्धि में साहित्य जगत के पुरोधा जितेंद्र शर्मा ‘ निर्मोही ‘ हाड़ोती में ही नहीं राजस्थान में अपनी विशिष्ठ पहचान रखते हैं। राजस्थानी भाषा के उत्थान और संवर्धन के लिए ये 1997 से निरंतर पूरी निष्ठा से लगे हुए हैं। इन्होंने न केवल साहित्य की उन्नति में अभूतपूर्व योगदान किया वरन इस भाषा की नवोदित प्रतिभाओं को आगे लाने और बढ़ाने में भी अपना मार्गदर्शन प्रदान किया और कई संस्थाओं को भी स्थापित किया। अतिशयोक्ति नहीं होगा यह कहना कि इन्हीं की देन कहीं जा सकती हैं कि आज हाड़ोती में राजस्थानी भाषा के अनेक साहित्यकार इनके प्रोत्साहन के शुक्रगुजार हैं।हाड़ोती में राजस्थानी भाषा में लिखने का अच्छा माहोल है, साहित्य की सभी विधाओं में साहित्यकार खूब लिख रहे हैं।
उभरते साहित्यकारों को मार्गदर्शन प्रदान करना, उनकी कृतियां प्रकाशित कराने में सहयोग करना, प्रकाशित कृतियों का लोकार्पण कराना, उनकी कृतियों पर समीक्षा लिखना, समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित करना आदि उपक्रमों से उनका साहित्य जगत में एक अपना स्थान बनाने में आप साहित्यकारों को प्रतिस्थापित करने की भूमिका में नजर आते हैं।
साहित्यकारों को प्रोत्साहन देने के लिए आप ज्ञान भारती संस्था से जुड़े। इस संस्था के माध्यम से से हर वर्ष स्व.गौरी शंकर कमलेश पुरस्कार राजस्थानी भाषा के साहित्यकार को समारोह पूर्वक प्रदान किए जाते हैं। इस वर्ष से स्व.कमला कमलेश पुरस्कार भी शुरू किया गया है। इस वर्ष के पुरुष्कार समारोह में मुझे भी भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि आप काफी परिश्रम से संस्था को जीवंत बनाए हुए हैं।
इनकी साहित्यिक यात्रा पर जब इनसे चर्चा हुई तो इन्होंने बताया कि जब ये 1997 में
कोटा आए थे तो राजस्थानी भाषा साहित्य के नाम पर नगण्य सा था। ज्ञान भारती संस्थान ने उन्हें राजस्थानी भाषा साहित्य का प्रचार और प्रसार का दायित्व सौंपा। उन्होंने बालकृष्ण थोलम्बिया जी से डा. शांति भारद्वाज राकेश द्वारा अनुरोध कर सोरठा लिखवाया। दोहा इस क्षेत्र में सबसे पहले चौथमल प्रजापति से लिखवाया। अपने स्तर पर अनुवाद भर्तहरी के शतकों का राजस्थानी भाषा में पं. लोकनारायण शर्मा से करवाया। काव्य कृतियां तैयार करवाकर डॉ. शांति भारद्वाज राकेश के राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर के अध्यक्षीय कार्यकाल में प्रकाशन सहयोग हेतु भेजी जिन्हें अकादमी द्वारा प्रकाशित किया गया। इसे वे अपनी प्रारम्भिक सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं।
आगे 1999 में ज्ञान भारती संस्था कोटा के बेनर तले दो दिवसीय राजस्थानी रचनाकार सम्मेलन में बाहर से विद्वान बुलाए गए। उन्होंने कार्यशाला में कहा यहां तो राजस्थानी भाषा साहित्य में गद्य की कृतियां हैं ही नहीं किस पर चर्चा करें। उस समय तक राजस्थानी गद्य में स्व. प्रेम जी प्रेम का गद्य साहित्य, विजय जोशी का एक कहानी संग्रह और डॉ. हरिमोहन प्रधान का यात्रा वृत्तांत था। माता जी कमला कमलेश, स्वयं उन्होंने और गिरधारी लाल मालव जी ने गद्य में कृतियां लिखी।
साहित्य सृजन : आपने हिंदी और राजस्थानी दोनों भाषाओं में साहित्य सृजन किया है। अपने हिंदी में जंगल से गुजरते हुए (काव्य), धूप के साये में चाँदनी (काव्य), मुरली बाज उठीअणधाता (आध्यात्मिक निबंध), उजाले अपनी यादों के (संस्मरण), भोर पर चढ़ आई धूप (काव्य), हाड़ौती अंचल का आधुनिक काव्य (समालोचना), ना जा रे! जोगिया(उपन्यास), नीर की पीर (रेडियो नाटक), तेरे चेहरे की तलाश (कहानी संकलन),विचार एवं संवाद (निबंध), कुछ तराने कुछ फसाने (निबंध), मैं भी गीत सुना दूँ, (गीत-नवगीत) की रचना की। राजस्थानी में ई बात को मिजाज (काव्य), बांदरवाल की लड़्याँ (निबंध), हाड़ौती अंचल को राजस्थानी काव्य (समीक्षा), या बणजारी जूण (संस्मरण), नुगरी (उपन्यास), कफ़न को पजामो (कहाणियाँ), गाधि सुत (खण्ड काव्य) लिखा।
आपने बालकाव्य जंगली जनावरां की पछाण भी लिखा। हाल ही में आपका रामजस की रामकथा (उपन्यास) प्रकाशित हुआ है। कुछ रचनाएं अभी अप्रकाशित हैं।
पुरस्कार : आपके साहित्यिक योगदान और सृजन के लिए आपको अनेक बार विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका जा है। “जंगल से गुजरते हुए काव्य” काव्य कृति पर स्वतंत्रता सैनानी नवनीत दास सम्मान,
विश्व हिन्दी दिवस पर “सहस्त्राब्दी सम्मान” नई दिल्ली, जिला प्रशासन झालावाड़ एवं नारायण सेवा संस्थान उदयपुर से सम्मानित,
“कन्हैयालाल सहल पुरस्कार वर्ष 2011-12″ राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर,
‘‘साहित्य श्री’’, भारतेन्दु समिति कोटा, मदर इण्डिया संस्थान, नयापुरा, कोटा द्वाराआर्यवृत साहित्य सम्मान, सारंग साहित्य समिति कोटा द्वारा सम्मानित“जगमग दीपज्योति” अलवर से सम्मान,” स्व. घनश्याम लाल बंसल स्मृति सम्मान, बाराँ ,“विंध्य कोकिल भैयालाल व्यास स्मृति पुरस्कार 2014” छतरपुर (म.प्र.), साहित्य मंड़ल नाथद्वारा से ”साहित्य विभूषण 2015“, हल्दीघाटी संस्थान नाथद्वारा से ”सोहन लाल द्विवेदी सम्मान“,सर्व ब्राह्यण समाज से सम्मानित, अखिल भारतीय राष्ट्रीय साहित्य सलिला सम्मान सलूम्बर,अखिल भारतीय साहित्य परिषद बून्दी, झालावाड़, ‘‘राजन फाउण्डेशन अकोला’’ चित्तौड़गढ़ से राष्ट्रीय साहित्य सम्मान, दो बार नागरिक अभिनंदन, प्रबंधक डिब्बा मालखाना पश्चिम रेलवे कोटा द्वारा सम्मानित, सनाढ्य समाज कोटा से ब्राह्मण गौरव, स्व. रतन लाल व्यास शैक्षणिक संस्थान फलौदी जोधपुर द्वारा “राजस्थानसाहित्य सिरोमणी” पुरस्कार एवं सम्मान रेलवे पेंशनर समाज, कोटा प्रमुख पुरुस्कारों में शामिल हैं। आपको वन पर्यावरण सेवा के लिए लाइफ टाइम अचिवमेंट अवार्ड 2012” से भी सम्मानित किया गया।
परिचय : आपका जन्म रमेश चन्द्र शर्मा के परिवार में 7 अप्रैल 1953 को हुआ। आपने विज्ञान विषय में स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की और सेवा निवृत्ति के पश्चात कोटा खुला विश्वविद्यालय से 2015 में हिंदी और 2017 में राजस्थानी भाषा में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। आप राजस्थान सरकार के वन विभाग से सेवा निवृत हैं। विभिन्न अकादमियों से सम्बद्ध हैं। आपके साहित्य पर युवाओं ने पीएच. डी.की उपाधि भी प्राप्त की तथा करीब एक सौ से ज्यादा शोध पत्र लिखे हैं। वर्तमान में आप साहित्य साधना में लगे हैं और “राजस्थानी कहानियां एक दृष्टि में” का लेखन कर रहे हैं।
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(डॉ.प्रभात कुमार सिंघल कोटा में रहते हैं और सामाजिक विषयों पर निरंतर लेखन करते हैं)