महाराष्ट्र में मचे सियासी घमासान के बीच 27 साल पुरानी वोहरा कमेटी की रिपोर्ट उजागर करने की मांग उठने लगी है. इस रिपोर्ट में दाऊद इब्राहिम (Dawood Ibrahim) के साथ कई बड़े नेताओं के गठजोड़ का जिक्र होने की बात कही जाती है. भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने केंद्र सरकार से जल्द से जल्द इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की है. कहा है कि रिपोर्ट सार्वजनिक होने से कई बड़े नेताओं के दाऊद इब्राहिम से संबंधों का खुलासा होगा. इससे महाराष्ट्र की सरकार पर भी आंच आ सकती है. उन्होंने रिपोर्ट न उजागर होने पर सुप्रीम कोर्ट जाने की भी बात कही है.
भाजपा नेता अश्निनी उपाध्याय ने कहा कि दिनेश त्रिवेदी की पीआईएल पर 20 मार्च 1997 को सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र सरकार को वोहरा कमेटी रिपोर्ट पर कार्यवाही करने का निर्देश दिया था. बावजूद इसके वोहरा कमेटी रिपोर्ट पर न तो कोई कार्रवाई हुई और न तो इसे सार्वजनिक किया गया. अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि वोहरा समिति रिपोर्ट पर तत्काल कार्यवाही करना और उसे सार्वजनिक अतिआवश्यक है. देश जानना चाहता है कि दाऊद से संबंध रखने वाले कितने नेता, अब तक लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा
भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने आईएएनएस से कहा, अगर केंद्र सरकार ने दिनेश त्रिवेदी केस में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पालन में वोहरा कमेटी की रिपोर्ट जनता के सामने उजागर नहीं की तो मैं पीआईएल के जरिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाऊंगा. देश हित में वोहरा कमेटी की रिपोर्ट का उजागर होना बहुत जरूरी है.
बता दें कि 1993 के मुंबई बम विस्फोट के बाद केंद्र की तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव की सरकार द्वारा गठित एनएन वोहरा कमेटी ने एक रिपोर्ट तैयार की थी. कमेटी ने यह रिपोर्ट पांच अक्टूबर 1993 को सरकार को सौंपी थी. सौ पेज की इस रिपोर्ट में अंडरवल्र्ड के साथ कई नेताओं के संबंधों के बारे में जानकारी होने की बात कही जाती है. अब तक रिपोर्ट के सिर्फ 12 पेज ही सार्वजनिक किए गए हैं. रिपोर्ट के सबसे संवेदनशील हिस्से को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है. बताया जाता है कि दाऊद इब्राहिम से कई नेताओं के रिश्तों का विस्फोटक खुलासा होने के कारण तत्कालीन सरकार पूरी रिपोर्ट उजागर करने से पीछे हट गई थी.
क्या है वोरा कमेटी की रिपोर्ट का सच
5 अक्टूबर 1993 को तत्कालीन गृह सचिव एन.एन वोहरा ने अपनी रिपोर्ट सरकार के सामने रख दी। इसके ठीक सात माह पूर्व कुख्यात गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम ने अपने लोगों से मुंबई में तेरह सीरियल बम धमाके करवाए थे। धमाकों को अंजाम देने वाला दाऊद भाग निकला।
धमाकों के 22 वर्ष बाद इस प्रकरण के एक अन्य दोषी टाइगर मेमन के भाई याकूब को सन 2015 में फांसी दे दी गई थी। वोहरा रिपोर्ट में क्या था, ये देश आज भी जानना चाहता है। उस रिपोर्ट को देश के सामने आने से रोका गया। वोहरा ने रिपोर्ट तीन माह में तैयार करके सरकार को सौंप दी लेकिन सरकार ने उसे दो साल तक सदन में पेश ही नहीं किया।
सन 1995 में विपक्षी दलों के दबाव में इसके कुछ अंश सार्वजनिक किये गए थे लेकिन पूरी रिपोर्ट की देश आज भी प्रतीक्षा कर रहा है। जब आउटलुक ने इसके अंश छापे तो इसमें एनसीपी नेता शरद पवार का नाम आया। शरद पवार ने आउटलुक पर 100 करोड़ का मुकदमा ठोंक दिया था। वह 14 फरवरी 1996 का दिन था जब आउटलुक के पत्रकार राजेश जोशी ने वोहरा कमेटी की रिपोर्ट के डिटेल्स दुनिया के सामने रख दिए थे।
आउटलुक में लिखे गए राजेश जोशी के लेख के अनुसार महाराष्ट्र के एक पूर्व मुख्य मंत्री पर आरोप हैं कि उनके रिश्ते ऐसे हवाला एजेंट्स से हैं, जिनकी सीधी लिंक मोस्ट वांटेड सरगना दाऊद इब्राहिम से जुड़ी हुई है।
सन 1993 के बम धमाकों के बाद गृह मंत्रालय ने एक विस्तृत जांच जो जानकारी एकत्रित की, उसमे कांग्रेस के नेताओं के लिंक अंडरवर्ल्ड के साथ जुड़ते दिखाई दिए। इस जाँच की रिपोर्ट वोहरा कमिटी को सौंप दी गई। इस नेक्सस में एक त्रिकोण था। राजनीति, अंडरवर्ल्ड और प्रशासनिक सरंक्षण से ये त्रिकोण पूर्ण होता था।
पिछले साल की ही बात है, जब इसे बुझा पटाखा कहा गया था। अब लग रहा है कि ये एक और राजनीतिक पटाखा है, जो सुलगने का इंतज़ार कर रहा है। राजनीतिक-अंडरवर्ल्ड नेक्सस की बारह पेज की ये रिपोर्ट जब संसद के पटल पर रखी गई, तो विपक्ष ने एक साथ मिलकर तीव्र विरोध किया और आरोप लगाया कि ये रिपोर्ट अधूरी है।
विपक्ष ने कहा कि रिपोर्ट में राजनीतिज्ञों का कोई ज़िक्र नहीं है। इस बात को महीनों बीत गए और जनता की याददाश्त से ये बात पूरी तरह निकल गई, तब इस मामले में एक महत्पूर्ण डेवलपमेंट हुआ। मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर्स की ओर से कुछ महत्वपूर्ण कागज़ कमिटी को सौंपे गए और किसी तरह आउटलुक मैगजीन तक पहुंचा दिए गए। आउटलुक ने राजनीतिज्ञों और अंडरवर्ल्ड की इस छुपी हुई लिंक पर प्रकाश डाला। जानकारी के मुताबिक ये पैसा चुनावों के लिए दिया गया था।
एमएचए की रिपोर्ट आरोप लगा रही थी कि भारत में सक्रिय दाऊद इब्राहिम के सहयोगियों और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री के बीच एक नेक्सस निश्चित रुप से काम कर रहा था। रिपोर्ट के मुताबिक हवाला का रैकेट चलाने वाला मूलचंद शाह उर्फ़ चौकसी जैन केस में भी शामिल था और दाऊद इब्राहिम के बहुत नज़दीक माना जाता था।
जाँच में पाया गया कि चौकसी ने दिसंबर 1979 से अक्टूबर 1992 के बीच 72 करोड़ रुपये एक पूर्व मुख्यमंत्री को ट्रांसफर किये। कई कांग्रेसी नेताओं के नाम उस लिस्ट में थे, जिनको चौकसी ने पैसा दिया था। रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 1979 से लेकर फरवरी 1980 के बीच 7 करोड़ पहुंचाए।
ये पैसे किसी छुपे हुए व्यक्ति द्वारा रिसीव किये गए थे। रिपोर्ट में विशेष रूप से उल्लेखित था कि चौकसी और दाऊद की बहुत गहरी निकटता थी। मूलचंद शाह उर्फ़ चौकसी मुंबई के कुछ प्रभावशाली लोगों और मिडिल ईस्ट में सुरक्षित ढंग से पैसा पहुंचा रहा था। पूर्व मुख्यमंत्री को चौकसी ने अगला पेमेंट 1991 के मई माह में किया था। रिपोर्ट के अनुसार ये पैसा मिडिल ईस्ट के एक देश से हवाला चैनल के जरिये पहुंचाया गया था।
सिर्फ हवाला के जरिये ही नहीं बल्कि और भी स्त्रोतों से पूर्व मुख्यमंत्री के पास पैसा पहुंचाया जा रहा था। 1990 में उल्हासनगर के एक नेता ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य मंत्री की ओर से चौकसी को 20 करोड़ रूपये विदेश में ट्रांसफर करने के लिए दिए थे। एक 50 करोड़ का दूसरा अमाउंट भी चौकसी ने मुख्यमंत्री की ओर से ट्रांसफर किया था। ये डील एक वकील के माध्यम से की गई थी।
ये पैसा भी किसी मिडिल ईस्ट के देश से आया था। मूलचंद शाह उर्फ़ चौकसी को 4 मई 1993 को टाडा के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था। उस पर आरोप था कि मुंबई बम धमाकों के लिए टाइगर मेमन को उसने 2.5 करोड़ दिए थे।
रिपोर्ट के अनुसार चौकसी मुंबई के बम धमाकों से कुछ माह पहले तक एक पूर्व मुख्य मंत्री के संपर्क में था। रिपोर्ट में मुंबई के शीर्ष राजनीतिज्ञों और कुछ फ़िल्मी सितारों के नाम भी थे। रिपोर्ट के अनुसार दो फिल्म अभिनेता और मुंबई का एक नामी वकील भी उस्मान घानी के संपर्क में थे। उस्मान ने इनके पैसों का भी ट्रांजिक्शन किया था। उस्मान मुंबई के एक बहुत शीर्ष राजनीतिज्ञ के साथ सीधे संपर्क में था।
रिपोर्ट के अनुसार हवाला आपरेटर चौकसी करोड़ों के जैन हवाला घोटाले में भी शामिल था। चौकसी के अलावा दिल्ली के रहने वाले एक हवाला डीलर गुप्ता जी का नाम भी रिपोर्ट में आया है। सन 1991 में शर्मा गिरफ्तार हुआ और सीबीआई की पूछताछ के बाद जैन हवाला घोटाले का पता चला।
इसी से पूछताछ के बाद सीबीआई ने जे के जैन के घर छापेमारी की थी। एमएचए की रिपोर्ट के मुताबिक शर्मा एक दशक से राजनीतिज्ञों का पैसा हवाला में चला रहा था। मई 1985 में शर्मा का नाम पहली बार सामने आया। रिपोर्ट के मुताबिक आंतरिक सुरक्षा मंत्री अरुण नेहरू को 2.5 करोड़ का पेमेंट करने में उसने चौकसी की मदद की थी।
चौकसी भारत के विरुद्ध षड्यंत्र करने वाले संगठनों को भी धन उपलब्ध करवा रहा था
जाँच के बाद एमएचए की रिपोर्ट में निकलकर आया कि चौकसी मुंबई के लेमिंग्टन रोड पर रहता था। ये राजस्थान के जालौर जिले का रहने वाला था। उसके पिता टेक्सटाइल बिजनेस के लिए मुंबई आए थे लेकिन चौकसी हीरो के व्यापार की ओर मुड़ गया।
चौकसी को जाँच एजेंसियों ने कई बार घेरने की कोशिश की लेकिन वह क़ानूनी तरीकों और राजनीतिक संपर्कों के बल पर बहुत समय तक बचता रहा। 1989 के मार्च में चौकसी के खिलाफ COFEPOSA (Conservation of Foreign exchange and Prevention of Smuggling Activities) के तहत डिटेंशन आर्डर इश्यू किया गया लेकिन 1990 में ये आदेश महाराष्ट्र सरकार ने वापस ले लिया।
एमएचए की रिपोर्ट में लिखा गया कि राज्य के गृह मंत्री अरुण मेहता के कहने पर ये आदेश वापस लिया गया। अरुण मेहता और कुछ नेताओं को 2.5 करोड़ दिए गए थे। ये बात नोट में लिखी हुई है। प्रवर्तन निदेशालय और Marine and Preventive Wing मुंबई द्वारा भी 1990 में केस दर्ज किये गए लेकिन वह जमानत का लाभ लेकर बच निकला।
वह हमेशा जमानत के दम पर, राजनीतिक संपर्कों से और पैसों की ताकत से बचकर निकलने में सफल हुआ। रिपोर्ट में लिखा गया है कि चौकसी से कभी विस्तृत पूछताछ नहीं की जा सकी क्योंकि केंद्र और राज्य में में उसके हमदर्द बैठे हुए थे। चौकसी 1991 में पुनः पकड़ा गया।
एक हवाला डीलर की गिरफ्तारी के दौरान पता चला कि चौकसी कश्मीर में भारत के विरुद्ध षड्यंत्र करने वाले संगठनों को भी धन उपलब्ध करवा रहा था। जाँच के बाद एमएचए की रिपोर्ट में निकलकर आया कि चौकसी मुंबई के लेमिंग्टन रोड पर रहता था। ये राजस्थान के जालौर जिले का रहने वाला था। उसके पिता टेक्सटाइल बिजनेस के लिए मुंबई आए थे लेकिन चौकसी हीरो के व्यापार की ओर मुड़ गया।
चौकसी को जाँच एजेंसियों ने कई बार घेरने की कोशिश की लेकिन वह क़ानूनी तरीकों और राजनीतिक संपर्कों के बल पर बहुत समय तक बचता रहा। 1989 के मार्च में चौकसी के खिलाफ COFEPOSA (Conservation of Foreign exchange and Prevention of Smuggling Activities) के तहत डिटेंशन आर्डर इश्यू किया गया लेकिन 1990 में ये आदेश महाराष्ट्र सरकार ने वापस ले लिया।
प्रवर्तन निदेशालय और Marine and Preventive Wing मुंबई द्वारा भी 1990 में केस दर्ज किये गए लेकिन वह जमानत का लाभ लेकर बच निकला। वह हमेशा जमानत के दम पर, राजनीतिक संपर्कों से और पैसों की ताकत से बचकर निकलने में सफल हुआ।
रिपोर्ट के मुताबिक उसने इस केस में पूर्व प्रधानमंत्री का भी नाम लिया था।दाऊद के धंधों का एक केंद्र गुजरात में भी था। विशेष रुप से उसके सारे काम तटवर्ती गुजरात से होते थे। एमएचए की रिपोर्ट के अनुसार गुजरात के कई नेता इस अंडरवर्ल्ड से लिंक बनाए हुए थे। उनमे गुजरात का एक पूर्व मुख्यमंत्री और एक प्रमुख कांग्रेसी नेता भी शामिल था।
आज वोरा कमेटी एक बार फिर चर्चा में है और भाजपा नेता अश्वनी उपाध्याय इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की माँग कर रहे हैं मगर न जाने क्यों केंद्र सरकार इस पर चुप्पी साधे बैठी है।
1996 में आउटलुक में प्रकाशित पत्रकार राजेश जोशी की रिपोर्ट
https://magazine.outlookindia.com/story/pawars-time-of-reckoning/200790