Sunday, November 24, 2024
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शिक्षा व रोटी से पहले मिले स्वच्छ पेयजल का अधिकार

हमारे देश की विभिन्न राजनैतिक दलों की सरकारें आम लोगों के अधिकारों के लिए लडने का दावा करती सुनाई देती हैं। और समय-समय पर ऐसी लोकलुभावनी योजनाओं का श्रेय लेने में भी राजनेताओं में होड़ मची नजर आती है। कभी जनता को सूचना के अधिकार मिलने की खबर सुनाई देती है तो कभी शिक्षा के अधिकार दिए जाने का वादा किया जाता है। कभी खाद्य सुरक्षा का ढिंढोरा पीटा जाता है तो कभी मनरेगा जैसी योजनाओं को लागू कर बेरोज़ गार लोगों को सीमित रोजगार उपलब्ध कराने की गारंटी ली जाती है। परंतु प्रत्येक देशवासी के जीवन के लिए सबसे अधिक उपयोगी व आवश्यक समझे जाने वाले स्वच्छ जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु लगता है किसी भी सरकार के पास कोई योजना नहीं है? बजाए इसके विभिन्न सरकारों द्वारा हमारे देश के विभिन्न जल स्त्रोतों का उपयोग कर एक रुपये की जगह बीस रुपये कमाने वाले जल संबंधी विभिन्न छोटे-बड़े उद्योगों को सरकार द्वारा संरक्षण प्रदान कर इसी स्वच्छ जल पर कारपोरेट घरानों तथा अन्य व्यवसायियों द्वारा वर्चस्व बनाए रखने में उनका सहयोग अवश्य किया जा रहा है।

कितने आश्चर्य की बात है कि आज यदि किसी क़ स्बे, गांव, शहर, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, पार्क, बाज़ा र, मॉल आदि सार्वजनिक स्थलों पर यदि कोई आम व्यक्ति प्यासा है तो सरकार की ओर से उसे स्वच्छ जल उपलब्ध कराए जाने की व्यवस्था होना तो मुश्किल है और कहीं-कहीं तो यह असंभव भी है। परंतु ठीक इसके विपरीत आपको शीतल पेय अथवा पानी की बोतलें उपरोक्त सभी स्थानों पर बिकती हुई ज़ रूर नज़ र आ जाएंगी।

c3066a12-edb7-40b0-8c8b-03402bb7d4f9सवाल यह है कि भारत जैसे देश में जहां आम आदमी अभी भी गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्या से जूझ रहा है मजदूर, छात्र तथा बेरोजगार नवयुवक जो अपनी रोज़ी -रोटी कमा पाने में भी पूरी तरह समर्थ नहीं है ऐसा कोई भी व्यक्ति भला पंद्रह-बीस रुपये खर्च कर अपनी प्यास बुझाने हेतु पानी की बंद बोतल कैसे खरीद सकता है? क्या हमारे देश की वह सरकारें जो जनता के दुःख-सुख बांटने के ढिंढोरे पीटते नजर आती हैं और जनता का हज़ा रों करोड़ रुपया केवल उन इश्तिहारों पर खर्च कर देती हैं जिनके माध्यम से वे स्वयं को महान जनहितैषी बताना चाहती हैं। क्या यह उन्हीं सरकारों का प्रथम दायित्व नहीं है कि पूरे देश में ऐसी योजना लागू करें जिससे जन-जन को कम से कम स्वच्छ पानी तो जब और जहां चाहें उपलब्ध हो सके और प्रत्येक नागरिक अपनी प्यास निःशुल्क बुझा सके? हमारे देश की सरकारों द्वारा जितना ध्यान कोका कोला तथा पेप्सी जैसी अन्य कई बड़ी कंपनियों को देश में उनका साम्राज्य स्थापित कराने में उनके सहयोगी के रूप में दिया जाता है यदि उतना ही ध्यान आम जनता को निःशुल्क पेयजल मुहैया कराने में दिया जाए तो निश्चित रूप से देश के लोगों को स्वच्छ पेयजल की समस्या से निजात मिल सकती है। परंतु निःशुल्क पेयजल मुहैया कराना तो दूर अब देश में कई जगहों पर पीने के पानी के एटीएम स्थापित होते दिखाई दे रहे हैं।

यानी सरकारों द्वारा भी पीने का पानी बेचने का काम किया जा रहा है। आश्चर्य की बात है कि प्रकृति या ईश्वर ने तो प्राणियों को अपनी ओर से ऑक्सीजन, जल व रोशनी जैसी जीने हेतु बुनियादी सुविधाएं मु त उपलब्ध कराई हैं परंतु इन्सानों ने पानी को अपने व्यापार का साधन बना लिया है। और अब बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा ऑक्सीजन के साथ भी ऐसा ही खिलवाड़ किए जाने की योजनाएं बनाए जाने के समाचार हैं। यही सरकारें जो जनता को स्वच्छ पेयजल राष्ट्रव्यापी स्तर पर उपलब्ध नहीं करा पा रही उन्हीं सरकारों के रहनुमा कभी सतलुज के पानी के लिए जंग करते दिखाई देते हैं तो कभी अपने राजनैतिक हितों को साधने के लिए कावेरी जल विवाद जैसे मुद्दों को उछालते नजर आते हैं। कभी दिल्ली को पानी बंद करने की धमकी दी जाती है तो कभी विभिन्न बांध बनाकर जल के पारंपरिक प्रवाह को रोकने की कोशिशें की जाती हैं।

75d2c3e9-eb45-48ff-ade2-b8f18bc93867इन सब राजनैतिक शोर-शराबों के बावजूद देश के प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता के लगभग 70 वर्ष बीत जाने के बाद भी आज तक पीने का पानी मयस्सर नहीं हो सका। यहां यह बात भी क़ा बिल-ए-ग़ौर है कि देश में कई राज्य ऐसे भी हैं जहां या तो कई-कई किलोमीटर दूर जाकर लोगों को जल की प्राप्ति होती है। या फिर वे ऐसे गंदे तालाबों का पानी इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हैं जिनमें जानवर भी तैरते, नहाते व अपनी प्यास बुझाते हैं और आम लोग शौच के लिए भी इन्हीं तालाबों का इस्तेमाल करते हैं। गोया गरीब व असहाय ऐसे लोग जो पहले से ही आर्थिक तंगी से बुरी तरह जूझ रहे होते हैं वे केवल स्वच्छ पानी उपलब्ध न होने की वजह से वे स्वयं तथा उनका परिवार भंयकर बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। हालांकि देश के कुछ प्रमुख महानगरों के रेलवे स्टेशन तथा हवाई अड्डों पर अब धीरे-धीरे स्वच्छ पीने का पानी जनता को उपलब्ध कराए जाने की कोशिशें शुरु की जा रही हैं। परंतु इन स्थानों से आम देशवासियों की रहगुजर नहीं होती। आम लोग गांव, कस्बों, बाजारों तथा अस्पताल व कोर्ट-कचहरी जैसे दूसरे कई साधारण सार्वजनिक स्थलों से वास्ता रखते हैं।

लिहाजा प्रत्येक सार्वजनिक स्थल पर शुद्ध पेयजल का कोई न कोई स्त्रोत होना बेहद ज़ रूरी है। और सरकारों को जल के नाम पर व्यवसाय करने, हमारे ही देश के पानी को मात्र बोतलों में बंद कर उन्हें शुद्ध जल के नाम पर बीस गुणा क़ीमत पर बेचने जैसे व्यवसाय को तत्काल बंद कर देना चाहिए। पिछले दिनों इसी आशय का एक समाचार सेनफ़्रांसिस्को से प्राप्त हुआ। यहां सरकार ने बोतल बंद पानी की बाजारों में बिक्री पर रोक लगा दी है। इस प्रकार सेनफ्रांसिस्को दुनिया का पहला ऐसा शहर बन गया है जहां बोतल बंद पानी का व्यवसाय नहीं किया जा सकेगा। वहां की सरकार में इस विषय पर 9 महीने तक लगातार बहस चली और आख़िरकार वहां के योग्य नेताओं ने जनहित को सर्वोपरि रखते हुए यह स्वीकार किया कि जो पानी प्रकृति द्वारा प्रदत जीवन हेतु अति आवश्यक है उस पानी का बाजारीकरण तथा इसका व्यवसाय कतई नहीं किया जाना चाहिए। सरकार ने बंद बोतल पानी की बिक्री रोकने के साथ ही ऐसी व्यवस्था की है कि अब जगह-जगह ऐसे प्वांईंट बनाए जाएंगे जहां 24 घंटे स्वच्छ पेयजल उपलब्ध रहेगा और कोई भी व्यक्ति अपनी बोतल या गिलास में अथवा पानी के किसी भी कंटेनर में वहां से मुफ़्त पानी हासिल कर सकेगा। अब ज़ रा अपने ही देश के उस गौरवशाली अतीत की ओर झांक कर देखिए जब हमारे पूर्वजों ने स्वच्छ जल की उपलब्धता को ही सबसे ज़ रूरी समझकर लगभग पूरे देश में जगह-जगह तालाब खुदवाए, कुंए खुदवाए तथा पीने के साफ पानी के प्याऊ लगाए जाने की योजनाएं बनाईं। परंतु आज उन्हीं तालाबों पर कहीं सरकारों का तो कहीं बाहुबलियों का क़ब्ज़ा हो चुका है।

कुंओं का जलस्तर कहीं नीचे चला गया है तो कहीं कुंओं को पाटकर उन पर इमारत खड़ी कर ली गई है तो कहीं इन्हीं कुंओं का कूड़ेखाने के रूप में इस्तेमाल कर प्राकृतिक जल स्त्रोत को बंद कर दिया गया है। पूरे विश्व में हमारे पूर्वजों जैसी जनहितकारी सोच शायद ही कहीं सुनने को मिले जहां भूखे को रोटी और प्यासे को पानी देने की गौरवशाली परंपरा रही हो। परंतु बड़े अफ़ सोस की बात है कि आज विभिन्न राजनैतिक दलों के अनेक राजनेता जो मात्र अपने वोट साधने की ख़ातिर हमारे उन्हीं लोकहित की चिंता करने वाले पूर्वजों का नाम अपने फायदे के लिए तो समय-समय पर लेते रहते हैं परंतु उनकी ऐसी योजनाओं पर अमल करने के बारे में जरा भी नहीं सोचते हैं। अन्यथा ऐसा कतई नहीं है कि यदि देश की सरकार तथा विभिन्न राज्य सरकारें यह ठान लें कि हम अपने देश के प्रत्येक व्यक्ति को स्वच्छ जल उपलब्ध करा कर रहेंगे तो निश्चित रूप से यह कार्य संभव हो सकता है। परंतु इसके लिए जल के व्यवसायीकरण को रोकने की दिशा में ज़ रूर पहल करनी पड़ेगी। ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है कि गत् तीन-चार दशकों से यह देखा जा रहा है कि रेलवे स्टेशन व बस स्टैंड जैसे विभिन्न स्थानों पर जहां बोतल बंद पानी या शीतल पेय का व्यापार होता है उनमें कई जगह ऐसी हैं जहां स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत के द्वारा पीने के पानी की आपूर्ति ख़ास तौर पर ठीक उस समय बंद कर दी जाती है जब प्लेटफार्म पर सवारी गाडियों के आने का समय होता है या बस अड्डों पर सवारियों की भारी भीड़ होती है।

ऐसा सिर्फ़ इसलिए किया जाता है ताकि बोतल बंद पानी व शीतल पेय बेचने वाला माफिया प्यासे यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित कर सके और उनकी प्यास का नाजायज़ फ़ा यदा उठाकर उनसे अपनी मरजी का मुनाफा कमा सके। परंतु यदि ऐसे स्थानों पर जल अथवा शीतल पेय के व्यवसायीकरण का विकल्प न हो तो कोई भी जल माफ़िया पानी की आपूर्ति क़ तई नहीं बंद करेगा। परंतु दुर्भाग्यवश ऐसे घिनौने खेल पूरे देश में हजारों जगहों पर खेले जा रहे हैं तथा ऐसा भी नहीं है कि देश के नेता अथवा प्रशासन के लोग इन बातों से नावाक़िफ़ हैं। लिहाज़ा सरकारों को शिक्षा और रोटी जैसी चीजें मु त मुहैया कराने का ढोंगपूर्ण ढिंढोरा पीटने के बजाए सबसे पहले स्वच्छ पीने का पानी देशवासियों को उपलब्ध कराए जाने की फ़िक्र करनी चाहिए।

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