उज्जैन। व्यक्ति की पहचान ओहदे से नहीं अपने काम से होती है\’ इन्हीं शब्दों को सार्थक कर रहा है शाजापुर का शासकीय बालक माध्यमिक विद्यालय हरायपुरा। जहां के बच्चे न तो अपने पुराने शिक्षक को याद करते हैं और ना ही किसी नेता को। क्योंकि इनके लिए इनसे भी महान है यहां की एक भृत्य। जो अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन वह जब तक जीवीत रही, इन्हीं स्कूलों के बच्चों के लिए जीवन न्यौछावर कर दिया।
क्यों बच्चों के दिलों पर राज करती है भृत्य।
37 सालों तक यहां भृत्य रही पुनिया बाई, जिसे बुआजी के नाम से भी जाना जाता है। पुनिया बाई के बच्चे नहीं थे। उसने स्कूल के बच्चों को ही अपना मान लिया। कोई बच्चा रोता तो उसे वह लोरी सुनाती, भूख लगती तो अपने हाथों से खाना खिलाती। जरूरत पड़ती तो ट्यूशन की फीस तक दे देती।
लंबे समय तक इस स्कूल में भ़ृत्य रही पुनिया बाई का वेतन कुछ ज्यादा नहीं था। लेकिन यहां की मूलभूत समस्या उन्हें नहीं सुहाई। बरसात के दिनों में बच्चे भिग जाते तो गर्मी में भी परेशान होना पड़ता। ऐसे में उन्होंने यहां बड़ा हाल बनवाया और पीने के पानी के लिए बोरवेल तक खुदवा दी।
पुनिया बाई को स्कूल के बच्चों के साथ ही स्टॉफ भी दिल से याद करता है। स्कूल प्रशासन ने उस हॉल का नाम पुनियाबाई के नाम पर रखा है। साथ ही हर साल उनके जन्मदिन व पूण्यतिथि पर खास कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। नए बच्चों को उनके काम से अवगत कराया जाता है।
तत्कालीन सहायक शिक्षक व प्रधानाध्यापक सुबोध पाठक ने बताया भुआजी के लिए स्कूल ही घर था। पूरा स्टॉफ अपने हर काम के लिए उन पर निर्भर था। हमें इस बात से निश्चिंत थे कि भुआजी है तो सब ठीक होगा। हर साल उन्हें याद किया जाता है।
साभार- पत्रिका से