देश में चुनाव आयोग की हनक कायम करने वाले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन आज बुढ़ापे में संकट भरा जीवन गुजार रहे हैं । गुमनाम शख्स की तरह एक वृद्धाश्रम में उनकी जिंदगी कट रही है। उनके दौर के लोग बताते हैं कि उन्होंने इस कदर आयोग का रुतबा कायम किया था कि 90 के दशक में एक मजाक बहुत प्रचलित था कि- भारत के नेता या तो खुदा से डरते हैं या फिर टीएन शेषन से। 1955 में आईएएस टॉपर रहे टीएन शेषन ने जब 1990 में देश के मुख्य चुनाव आयुक्त का पदभार संभाला तो स्थितियां खराब थीं। चुनावों में बूथ कैप्चरिंग के लिए बिहार बदनाम रहता था। हिंसा और बड़े पैमाने पर गड़बडी़ होती थी। मगर उस वक्त टीएन शेषन ने कठोर कदम उठाया। कई चरणों में चुनाव कराने का फैसला किया। उस समय पांच चरणों में बिहार के चुनाव हुए। यहीं नही एक रणनीति के तहत कई बार चुनाव तिथियों में फेरबदल भी किया। बूथ कैप्चरिंग रोकने के लिए पहली बार उन्होंने देश में केंद्रीय सुरक्षा बलों की निगरानी में चुनाव कराया। वर्ष 1997 में शेषन राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ चुके हैं, हालांकि उन्हें केआर नारायणन से हार का सामना करना पड़ा।
चुनावों में पारदर्शिता लाने वाले शेषन आज चेन्नई में गुमनामी भरी जिंदगी जी रहे हैं। भूलने की बीमारी के भी शिकार हैं। स्वस्थ महसूस करने पर कभी अपने घर आ जाते हैं तो कभी 50 किलोमीटर दूर ओल्ड एज होम में रहने के लिए चले जाते हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 85 वर्षीय टीएन शेषन साईं बाबा के भक्त रहे। 2011 में उनका निधन हुआ तो उन्हें सदमा पहुंचा। फिर भूलने की बीमारी हो गई। इस हाल में नजदीकी रिश्तेदारों ने एसएसम रेजिडेंसी’ नामक वृद्धाश्रम में भर्ती करा दिया। करीब तीन साल उन्होंने ओल्ड एज होम में बिताए, बाद में स्वस्थ हुए तो घर लौट आए। अब भी वे कभी-कभी ओल्ड एज होम चले जाते हैं। तमिलनाडु काडर के आईएएस अफसर टीएन शेषन ने 12 दिसंबर 1990 को देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त का पदभार संभाला था। इस पद पर वे 11 दिसंबर 1996 तक रहे। 1995 में उन्होंने पहली बार बिहार में निष्पक्ष चुनाव कराकर इतिहास रच दिया। सख्ती के कारण कई नेताओं से उनका विवाद भी हुआ। इससे पहले 1992 के यूपी विधानसभा चुनाव में उन्होंने सभी आईएएस-आईपीएस अफसरों को दो टूक कह दिया था कि-किसी भी तरह की गड़बड़ी होने पर वही जिम्मेदार होंगे। साथ ही 50 हजार अपराधियों को चेतावनी देते हुए कहा था कि या तो वे खुद को तुरंत पुलिस के हवाले कर दें या फिर अग्रिम जमानत लें, नहीं तो बख्शे नहीं जाएंगे। इसका असर हुआ कि उस समय उत्तर प्रदेश में भी शांतिपूर्वक और पारदर्शिता के साथ चुनाव हुए।