राजनांदगांव। शासकीय दिग्विजय स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा महात्मा गांधी के जन्म की सार्धशती पूर्ण होने पर प्रेरक और ज्ञानवर्धक व्याख्यानमाला आयोजित की गयी। मुख्य वक्ता हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ. चन्द्रकुमार जैन थे। प्रारम्भ में विभाग की अध्यक्ष प्राध्यापक डॉ. अंजना ठाकुर ने विद्यार्थियों को प्रमुख रूप से गांधी और शांति अध्ययन में डॉ. जैन द्वारा किए जा रहे विशिष्ट रचनात्मक और सृजनात्मक कार्यों और उनके योगदान की जानकारी दी। बाद में विभाग की प्राध्यापक डॉ. अमिता बख्शी और प्रो. संजय सप्तर्षि ने उनका आत्मीय स्वागत किया। धाराप्रवाह सम्बोधन में डॉ. जैन ने कहा कि महात्मा गांधी आत्मविश्वास और आत्मसंयम से ताप से निखरे कुंदन का दूसरा नाम है। साहित्यिक लहज़े में उन्होंने कहा कि सत्य के फूलों पर अहिंसा के हस्ताक्षर करने पर जो तस्वीर उभरकर सामने आयेगी वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की होगी ।
डॉ. जैन ने युवाओं को प्रोत्साहित करते हुए आगे कहा कि बापू का चिंतन आज भी हमें तमाम चुनौतियों से मुकाबला करने का संबल प्रदान करता है। उनके द्वारा लिखित हिन्द स्वराज आज भी ऐतिहासिक दस्तावेज़ और मार्गदर्शिका भी है। उसमें भारतीय जनमानस को पीड़ा देने वाले कारकों विश्लेषण है, जिसके बगैर देश की आज़ादी संभव नहीं थी। गांधी जी भारत की स्वदेशी आत्मा को जगाना कहते थे। लेकिन, हम यह भी भूल गए कि सत्य, अहिंसा, सादगी, अपरिग्रह, श्रम और नैतिकता से ही सहयोग, सहअस्तित्व एवं समानता पर आधारित शोषण मुक्त समाज का निर्माण संभव है। आज इन मूल्यों को हमें नए सिरे से समझना होगा।
डॉ. जैन ने स्पष्ट किया कि हिंद स्वराज में गांधीजी ने साफ़ लिखा है आधुनिकता वाली जीवन-व्यवस्था, व्यक्ति को कमजोर करने के साथ ही प्रकृति का भी नाश करती है। आज प्रकृति और पर्यावरण को बचाना पहली ज़रुरत है। आधुनिक होने के लिए तकनीक से ज्यादा नीति, नैतिकता और नवीन सोच का होना जरूरी है। डॉ. जैन ने कहा कि युवाओं को गांधी मार्ग पर चलाने के लिए हमें उन्हें वैचारिक रूप से मजबूत करना होगा, ताकि वे बदले हुए समय और दौर में भी उसकी उपयोगिता को समझ सकें। समाज की दशा-दिशा बदल सकें। उन्होंने कहा कि युवा दो चीजों से जल्दी प्रभावित होते हैं, पहला शौर्य से और दूसरा बौद्धिक जवाब से। यानी ताकत और तर्क ही उसके सबसे बड़े औज़ार हैं। डॉ. जैन ने सुझाव दिया कि दुनियाभर में जो कुछ भी घट रहा है, उसका विश्लेषण करके युवाओं की स्मृति में गांधी जी की सोच को सही तरीके से रखना बहुत जरूरी है, ताकि उनमें किसी प्रकार की शंका न रहे। याद रहे कि आधुनिकता से जन्म लेने वाली बुराइयों के चेहरे को सामने लेकर बापू ने अपने समाज और परंपराओं की मौलिकता को समझाया। सत्याग्रह, स्वदेशी और स्वराज का उनका त्रिवेणी संगम भारत और मानवता की बड़ी विरासत है।