कहानी शुरू होती है गुजरात से. बात साल 2001 की है. नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली ही थी. शपथ लेने के बाद नए मुख्यमंत्री को कैबिनेट की बैठक करनी थी. लेकिन नरेंद्र मोदी के पास इसका कोई अनुभव नहीं था. इससे पहले वे कभी विधायक या सांसद तक नहीं रहे थे. पहले संघ के प्रचारक और फिर संगठन महामंत्री तक का जिम्मा ही तब तक उन्होंने उठाया था. प्रचारक से सीधे मुख्यमंत्री पद की उन्होंने शपथ तो ले ली थी, लेकिन इस पद की जिम्मेदारियों से वे पूरी तरह वाकिफ नहीं थे.
प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने एक महिला पत्रकार को एक इंटरव्यू दिया था. इसमें बातचीत के लहजे में उन्होंने बताया कि कैसे मुख्यमंत्री बनने के बाद जब फाइलें उनके पास आईं तो उन्हें फाइलों को देखने या फिर उन पर नोटिंग लिखने के बारे में कुछ पता नहीं था. उसी वक्त तस्वीर में सामने आए प्रमोद कुमार मिश्रा.
मूलत: ओडिशा के संभलपुर जिले से आने वाले, 1972 बैच के आईएएस अफसर पीके मिश्रा गुजरात कैडर के हैं. उन्होंने ही पहली बार नरेंद्र मोदी को फाइलें पढ़नी सिखाई थीं. तब नये-नये मुख्यमंत्री बने मोदी के वे प्रधान सचिव हुआ करते थे. इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद बताया कि जब पहली फाइल उनके सामने आई तो उन्होंने पीके मिश्रा से पूछा, क्या करना है. इसे पढ़ने में तो वक्त लगेगा. इस पर मिश्रा ने कहा, यहां दस्तखत कर दीजिए. सवाल पूछने वाले मोदी कहां बिना कुछ पूछे दस्तखत करने वाले थे. तब पीके मिश्रा ने उन्हें समझाया – फाइल के ये हिस्से सबसे अहम होतें हैं, मुख्यमंत्री को पूरी फाइल पढ़ने की जगह ये पन्ने ही पढ़ने चाहिए.
नरेंद्र मोदी जब अपनी ज़िंदगी का पहला चुनाव जीते तब भी उन्होंने पीके मिश्रा को ही अपना प्रधान सचिव बनाये रखा. 2006 के आसपास मोदी दिल्ली की सियासत में दिलचस्पी दिखाने लगे थे. केंद्र में आईएएस लॉबी के एक वरिष्ठ अफसर बताते हैं कि तब उनकी इच्छा थी इसलिए पीके मिश्रा दिल्ली आ गए. केंद्र सरकार में करीब दो साल उन्होंने कृषि सचिव के तौर पर काम किया. जैसे ही ‘पीके’ रिटायर हुए मोदी ने उन्हें फिर से गुजरात बुला लिया और गुजरात इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटिरी कमीशन का चेयरमैन बना दिया.
नरेंद्र मोदी और पीके मिश्रा के रिश्ते को करीब से देखने वाले एक पत्रकार बताते हैं कि 2001 से 2019 तक अगर किसी एक अफसर पर मोदी लगातार भरोसा करते आए हैं तो वह हैं प्रमोद कुमार मिश्रा. गुजरात हो या दिल्ली, मोदी के काम करने का तरीका नहीं बदला है और पीके मिश्रा मोदी के इस तरीके से पूरी तरह वाकिफ हैं. गुजरात में 24 घंटे बिजली पहुंचाने का काम मुश्किल था, लेकिन मोदी के कहने पर ‘पीके’ ने ऐसा करके दिखाया.
2013 आते-आते नरेंद्र मोदी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित हो चुके थे और पीके मिश्रा उनके सलाहकार के तौर पर काम करने लगे. जब 26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो गुजरात से दिल्ली बुलाए गए पहले अफसर पीके मिश्रा ही थे. 2019 में जब मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तब भी पीएमओ के दरवाजे पर उन्हें रिसीव करने वाले तीन अफसरों में से एक पीके मिश्रा ही थे.
पीके मिश्रा एक बार फिर उसी अतिरिक्त प्रधान सचिव के पद पर तैनात हो गए हैं जिस पर वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में थे. बल्कि पिछली बार की तुलना में उनका कद और बढ़ गया है. उन्हें अब कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिल चुका है. प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों और इसकी खबर रखने वाले पत्रकारों से बात करें तो उनके बारे में कुछ अंदर की खबर मिलती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पीएमओ में सबसे ज्यादा ताकतवर शख्स पीके मिश्रा ही माने जाते हैं. अगर किसी एक अफसर की बात पर प्रधानमंत्री आंख मूंदकर भरोसा करते हैं तो वह हैं पीके मिश्रा. वे इतने ताकतवर हैं कि मोदी सरकार के बड़े-बड़े मंत्री भी उनके चक्कर लगाते रहते हैं. पता करने पर अंदर की बात यह पता चलती है कि मोदी सरकार में तबादले हों या तैनाती ये सारी फाइलें पीके मिश्रा ही डील करते हैं. कौन अफसर कहां जाएगा, किसको क्या बनाया जाएगा, किसे नीति आयोग में भेजा जाएगा या फिर किस अफसर को मंत्रालय में सचिव बनाया जाएगा, इस तरह के सभी फैसले पीके मिश्रा ही फाइनल करते हैं
पीके मिश्रा को करीब से जानने वाले एक पत्रकार बताते हैं कि उन पर प्रधानमंत्री का भरोसा यों ही नहीं जमा है. पीके वक्त जरूर लगाते हैं लेकिन काम के मामले में बेहद पक्के माने जाते हैं. मंत्रालय में अगर किसी अफसर की तैनाती होनी है तो उस अफसर का पूरा बायोडाटा खंगालना, उसकी पूरी जन्मकुंडली देखना, ये ‘पीके’ का काम है. अगर किसी बड़े ताकतवर अफसर के आगे वे लाल निशान लगा दें तो फिर उसकी फाइल पास नहीं हो सकती. पीके ईमान के पक्के माने जाते हैं, कम बोलते हैं लेकिन जब भी बात करते हैं, सीधी करते हैं. अगर किसी अफसर के ऊपर किसी मंत्री का हाथ हो तो इससे कोई फक नहीं पड़ता. अगर पीके की रिपोर्ट सही नहीं है तो उस अफसर को अपने मंत्रालय में पोस्टिंग नहीं दिलवा सकता.
फाइलों के पक्के पीके मिश्रा आइडिया के लेवल पर भी तेज़ माने जाते हैं. डिवलपमेंट मॉडल पर उन्होंने पूरी रिसर्च की है और घिसे-पिटे उन्हीं पुराने तरीकों से सरकार चलाने में यकीन नहीं रखते. वे पुराने जमाने के अफसर जरूर हैं, लेकिन नए ख्याल वाले हैं.
आइडिया के अलावा पीके मिश्रा की एक और खासियत प्रधानमंत्री को बेहद पसंद है. मुसीबत के वक्त उनका दिमाग कंप्यूटर की तरह चलता है. आपदा प्रबंधन में उन्हें महारत हासिल है. उदाहरण के तौर पर भुज में आए भूकंप से लेकर ओडिशा के तूफान तक और अभी अभी वायु साइक्लोन से निपटने की व्यवस्था तक सभी पीके मिश्रा की देखरेख में हुईं. जब भी आपदा प्रबंधन की मीटिंग होती है उसे पीके मिश्रा ही लीड करते हैं. और जब फैसले लेने का वक्त आता है तो कंट्रोल रूम में वे हॉट सीट पर बैठ जाते हैं. यही वे खूबियां है जो पीके मिश्रा को मोदी का पसंदीदा अफसर बना देती हैं.
साभार- https://satyagrah.scroll.in/ से