महाराजा रंजीत सिंह सरीखे प्रतापी राजा, जिनके जीवित रहते ईस्ट इंडिया कंपनी ने कभी उनके संप्रदाय में दखल देने तक की हिम्मत नहीं की थी, के जाने के बाद उनके साम्राज्य और परिवार का इतना बुरा हश्र होगा इसकी कभी किसी ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी। आज कल वे और उनका सबसे छोटा वारिस बेटा महाराजा दिलीप सिंह फिर चर्चा में है। जहां एक और महाराजा रंजीत सिंह की जिदंगी पर बना एक धारवाहिक काफी लोकप्रिय हो रहा है वहीं, उनके बेटे व सिख साम्राज्य के अंतिम शासक महाराजा दिलीप सिंह पर बनाई गई फिल्म “ब्लैक प्रिंस आफ पर्थपशायर” जुलाई माह में रिलीज होने वाली है।
इस फिल्म के निर्माण के साथ ही भारत और ब्रिटेन में रहने वाले सिख एक बार फिर यह मांग करने लगे हैं कि महाराजा दिलीप सिंह का शव वहां से वापस हिंदुस्तान लाकर उनका पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाए। साथ ही उनसे जबरन हथियाया गया बेशकीमती कोहिनूर हीरा भी वापस मांगे जाने की मांग है। इस मामले में पाकिस्तान भी बीच में कूद पड़ा है क्योंकि उसकी दलील है कि महाराजा रंजीत सिंह के शासन की राजधानी तो लाहौर थी। वे उसके महाराजा थे जिनके साम्राज्य का दो-तिहाई हिस्सा पाकिस्तान में हुआ करता था।
महाराजा रंजीत सिंह की ताकत और हैसियत का अंदाजा इस बात से लगा सकते है कि उन्होंने जहां एक ओर अफगानी आक्रांताओं को न केवल खदेड़ा बल्कि उनसे कोहिनूर सरीखा बेशकीमती हीरा तक हासिल किया वहीं उनके राज्य में कश्मीर से लेकर पेशावर और मुल्तान तक शामिल थे। इन इलाकों को जीतने के बाद उन्होंने अपनी दो रानियों दया कौर और रतन कौर के तीन बेटों के नाम इन इलाकों के नाम पर रखे।