विश्व इस बात से भली प्रकार परिचित है कि आर्य समाज की अभूतपूर्व बलिदानी परम्परा रही है| इस परपरा का आरम्भ स्वयं इसके संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने अपना बलिदान देकर किया| इस परम्परा ने विगत लगभग १२५ वर्ष में जितने शहीद पैदा किये, इतने शहीद इतने कम समय में विश्व की कोई अन्य संस्था नहीं दे पाई| इन्हीं बलिदानियों की स्मृति में प्रस्तुत है अगस्त महीने में आने वाले इन के जन्म दिन अथवा बलिदान दिनों की संक्षेप गाथा |
पंडित इंद्र विद्यावाचस्पति जी का निधन
आप आर्य समाज के सुप्रसिद्ध नेता स्वामी श्रद्धानद सरस्वती जी के सुपुत्र तथा गुरुकुल कांगड़ी के प्रथम छात्र तथा प्रथम स्नातक थे| आपने आर्य समाज के लिए तथा देश के लिए भरपूर कार्य किया| कहीं भी अपने पिता के नाम को नीचा नहीं होने दिया| अनेक पुस्तकें लिखीं| आर्य समाज का इतिहास तथा मेरे पिता नामक यह दो पुस्तकें आपकी अभूतपूर्व कृतियां थीं| २२ अगस्त १९६० ईस्वी को आपका देहांत हो गया|
बलिदानी भाई शामलाल जी
भाई शाम लाल जी हैदराबाद में आर्य समाज का स्तम्भ थे| आपके नाम को सुनकर निजाम हैदराबाद कांपता था| इस कारण आपको पकड़ कर न केवल जेल ही भेजा गया अपितु जेल में विष देकर आपकी हत्या भी कर दी गई| निजाम आपका पार्थिव शरीर आर्य समाज के लोगों को नहीं देना चाहता था किन्तु बड़ी नीति लड़ा कर आर्य समाजियं शव हथिया लिया और बड़े आदर सत्कार के साथ भारी जन समूह के साथ उनका अंतिम संस्कार किया| भाई शाम लाला जी की माता जी क देहांत भी २५ अगस्त को ही हुआ|
पंडित गंगा प्रसाद उपाध्याय
पंडित गंगाप्रसाद उपाध्याय जी आर्य समाज के उच्च्कोटि के विचारक, फिलासफर तथा लेखक थे| आपकी कलम से आर्य समाज का उच्चकोटि का साहित्य निकला| आपने अपनी पत्नी का जीवन भी लिखा| पत्नी का यह जीवन विश्व साहित्य में किसी महान् व्यक्ति के हाथों लिखा गया अपनी पत्नी का प्रथम प्रकाशित जीवन है| महान् वैज्ञानिक तथा अद्वीतीय लेखक स्वामी सत्य प्रकाश जी भी आपके ही सुपुत्र थे|
बलिदानी तुलसीदास
डेरा बाबा नानक के छोटे से गाँव में १५ अगस्त को आर्य समाज की स्थापना से मात्र तीन वर्ष पूर्व जन्मे तुलसीदास जी आर्य समाज के अत्यंत दीवाने थे| स्टेशन मास्टर बनने पर वह जहाँ कहीं भी भेजे गए वहां जाते ही उन्होंने आर्य समाज की स्थापाना कर दी| सन् १९०३ ईस्वी में उनकी नियुक्ति फरीदकोट रेलवे स्टेशन पर कर दी गई| यह जैन लोगों का केंद्र था| यहाँ आर्य समाज का बहुत विरोध था तथा आर्य समाज की स्थापना का तो प्रश्न ही दिखाई नहीं देता था| तुलसीदास जी ने यहाँ आकर आर्य समाज का खूब प्रचार किया| आर्य समाज के उत्सव भी किये| इससे वहां रह रहे जैन समुदाय के लोग कुपित हो गए| उनके दिलों पर सांप लौटने लगे तथा एक दिन जब आप आर्य समाज के कार्य से लौट रहे थे तो मार्ग में ही आपकी आँखों में पहले तो लाल मिर्च का चूर्ण डाला गया और फिर छुरा मार कर घायल कर दिया| इस कारण आपका बलिदान हो गया|
सरदार अजीत सिंह जी
सरदार भगतसिंह के चाचा सरदार अजीतसिंह जी का जन्म पंजाब में हुआ| अजीतसिंह जी के पिता अर्जुनसिंह जी का यज्ञोपवीत संस्कार स्वामी दयानंद सरस्वती ने स्वयं अपने हाथों से किया| उनकी यह भी इच्छा थी कि उनके सब सुपुत्र देश के लिये काम आवें| आपने पिताजी की इच्छा के अनुरूप देश की आजादी के लिए भरपूर कार्य किया| उस समय की अंग्रेज सरकार ने आपके स्वाधीनता के लिए किये जा रहे कार्यों से भयभीत होकर आपको मांडले जेल भेज दिया, जहां लाला लाजपत राय जी पहले से ही बंद थे| यहाँ से रिहाई मिलने पर आप ने विदेशों में जाकर भारत की स्वाधीनता की ज्योति जगाना आरम्भ कर दिया| विदेश से लौटने पर रात्रि काल में यह समाचार सुना कि १५ अगस्त सन १९४७ को देश आजाद हो रहा है, यह समाचार सुनते ही १५ अगस्त की रात्रि को शरीर त्याग दिया|
हिंदी सत्याग्रह के बलिदानी सुमेर सिंह
ब्रह्मचारी सुमेरसिंह जी जिला रोहतक के निवासी थे| जब पंजाब की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री ने पंजाब से हिंदी को समाप्त करने की योजना बनाई तो यहाँ की आर्य प्रतिनिधि सभा के शंखनाद पर हिंदी रक्षा आन्दोलन के अंतर्गत सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ हो गया| आपने इस निमित्त प्रथम सत्याग्रही जत्थे के साथ आचार्य बलदेव जी के नेतृत्व में सत्याग्रह किया और पुलिस ने आपको पकड़कर फिरोजपुर जेल भेज दिया| जेल में सत्याग्रहियों को कांग्रेस सरकार ने भरपूर यातनाएं दीं| इन यातनाओं के सामने आजादी के दीवानों को अंग्रेज की दी गई यातनाएं भी फीकी पड गईं| एक दिन जेल में जोरदार लाठी चार्ज अकारण ही कर दिया गया| इसमें जेल के लगभग सब सत्याग्रहियों को चोटें आई जबकि सुमेरसिंह जी की मौके पर ही २४ अगस्त को मृत्यु हो गई|
चौधरी पीरु सिंह जी
हरियाणा के खर्खोदा के निकट गाँव मटिण्डु में सम्वत् १९२३ को आपका जन्म हुआ| आप की आर्य समाज के लिए इतनी लगन थी कि आप दिन रात आर्य समाज के लिए कार्य करते रहते थे| आर्य होने के कारण आपको शास्त्रार्थ के लिए चुनौती मिली, तिथि निश्चित हो गई किन्तु ठीक समय पर पौराणिक लोगों का शास्त्रार्थ को साहस नहीं हुआ और भाग खड़े हुए| आर्य समाज को गाली देने पर थानेदार को ही पीट डाला| गुरुकुल मटिण्डु की आप ने ही स्थापना की| जब एक नाई ने आपकी नीयत पर शक किया तो उसे अपने घर ले जाकर पूरा घर दिखाया, जिसे देखकर नाई ने उनसे माफ़ी मांगी| भूमि बंदोबस्त के समय आपके कारण लगान नहीं बढाई जा सकी| आपने मुसलमानों के हाथ गाय बेचने पर अपने क्षेत्र भर में रोक लगवा दी| शुद्धी पर भी खूब बल दिया| आपका जन्म १७ अगस्त श्रावणी के दिन हुआ था|
पंडित बस्तीराम जी
दादा के नाम से सुप्रसिद्ध पंडित बस्ती राम जी का जन्म हरियाणा के एक जिला झज्जर के गाँव सुलतानपुर खेडी में हुआ| आप पौराणिक थे किन्तु जब स्वामी दयानंद सरस्वती जी से शास्त्रार्थ करने गए तो स्वामी जी को देखते ही आप के मन ने पलटी मारी, कुछ प्रश्नों पर ही निरुत्तर हो गए और आर्य समाजी हो गए| अब आपने आर्य समाज का प्रचार आरम्भ किया और आजीवन करते रहे| हरियाणा में आर्य समाज की मजबूत जड़ों का कारण आप ही थे| आपके बनाए गए गीतों की आज भी ज्यों की त्यों मांग बनी हुई है| २६ अगस्त १९५८ को ११७ वर्ष की आयु में आपका निधन हुआ| गणना देसी तिथी से होने के कारण यह तिथि बदलती रहती है|
बलिदानी अरुडामल
भक्त अरुडामल जी को आर्य समाज से अत्यधिक प्रेम था| आप अपने वेतन से अपने भरण पौषण की राशि रखकर शेष सब वेतन दान में दे देते थे| शराब का विरोध करते हुए जेल गए| आपने हैदराबाद में खुश्हालचंद जी के साथ सत्याग्रह किया और जेल गए| हैदराबाद की निजामी जेल की यातानाओं के कारण बीमार होने पर जेल से निकाले गए| १ अगस्त १९३९ को जेल से निकल कर घर आते हुए मार्ग में ही देहांत हो गया| आप सरगोधा के रहने वाले थे|
बलिदानी राधाकृष्ण जी
आपका जन्म हैदराबाद में हुआ| आर्य समाज के प्रचार की भावना आपके नस नस में भरी हुई थी| १९३५ में निजामाबाद में आपने आर्य समाज की स्थापना की| आपके द्वारा निरंतर किये जा रहे आर्य समाज के प्रचार कार्य से हैदराबाद का निजाम बेहद परेशान था| आपने जेल से बाहर रहते हुए हैदराबाद सत्याग्रह के लिए खूब कार्य किया| इस कारण २ अगस्त १९३९ को आप पर जाना लेवा हमला करवाया गया, जिसमें आपका बलिदान हो गया|
बलिदानी लक्षमण राव जी
हैदराबाद सत्याग्रह में बलिदानियों की बाढ़ में अनेक आर्य वीरों के जीवन परिचय डूब गए| ऐसे अनाम बलिदानियों में लक्ष्मण राव भी एक हैं| जेल के कुशासन का मुकाबला करते हुए २ अगस्त १९३९ को जेल में ही आपका बलिदान हो गया|
बलिदानी ताराचंद जी
संवत् १९७३ की सावनी वदी ११ को मेरठ के गाँव लुम्बा में जन्मे ताराचंद जी भी आर्य समाज के अनुरागी थे| हैदराबाद सत्याग्रह में अपने चचेरे भाई सहित पंडित जगदेव सिंह जी सिद्धान्ती के जत्थे के साथ जेल गये| जेल की यातनाओं ने उन्हें इतना कमजोर कर दिया कि निजाम हैदराबाद को जेल में भी आपका बोझ सहन न हो पा रहा था| अत: आपको बिमारी की हालत में ही जेल से बाहर फैंक दिया गया| आप वहां से किसी प्रकार चलकर घर के लिए लौट रहे थे कि आपकी दयनीय अवस्था को देखकर डा, परांजपे जी ने आपको नागपुर रोक लिया| यहीं पर ही २ सितम्बार १९३९ को अपने प्राण त्याग दिए|
बलिदानी अशर्फीलाल
बिहार के एक जिला चम्पारण के नरकटियागंज में जन्मे अशर्फीलाल जी हैदराबाद निजाम, जो आर्य समाज के लोगों पर अत्याचार कर रहा था, को सहन न कर पाए| अत: सत्याग्रह आन्दोलन का शंखनाद होते ही बूढ़े माता पिता की सेवा से देश की सेवा को अधिक मानते हुए सत्याग्रह को चल दिए| हैदराबाद जाते हुए मार्ग में भी अनेक स्थानों पर आर्य समाज का प्रचार करते हुए आगे बढ़ते गए| जेल में अभूत पूर्व अत्याचारों से रोग ने आ घेरा| इस अवस्था में भी उनकी सहायता करने के स्थान पर निजाम ने उन्हें क्षमा याचना करने को कहा, जिसे आपने स्वीकार न किया| अंत में आपको जेल से बाहर धकेल कर फैंक दिया| घर आने पर भी जेल में मिली यातनाओं ने आपका पीछा न छोड़ा और १९ अगस्त १९३९ ईस्वी को बलिदान हो गया|
बलिदानी पुरुषोत्तम जी ज्ञानी
आपका जन्म महाराष्ट्र के बुरहानपुर में हुआ| अपने पिछवाड़े में रहने वाले एक व्यक्ति को सत्यार्थ प्रकाश का मूल से मिलान करते हुए आप पर आर्य समाज का रंग चढ़ गया| आपने निर्भय होकर आर्य समाज की सेवा की तथा अपनी सरकारी नौकरी में आपकी सत्यवादिता से अधिकारी लोग बेहद परेशान रहे| इस कारण सेवामुक्त होने पर पेंशन के प्रश्न पर यह अधिकारी रुकावट खड़ी करने लगे और आपको पेंशन नहीं लगने दी| आपने किसानों की खूब सहायता की| अनेक आर्य समाजों की भी स्थापना की तथा आर्य समाज के विभिन्न पदों को भी सुशोभित किया| हैदराबाद में सत्याग्रह आरम्भ हुआ तो इसमें भी कूद पड़े| जेल की भीषण अत्याचारों को बूढा शरीर सहन न कर सका| अत: जेल से बाहर फैंक दिया गया तथा निजाम ने यह भी घोषणा कर दी कि क्षमा मांग कर जेल से चले गए हैं| इस पर आपने पुन: सत्याग्रह किया किन्तु निजाम ने आपको अब पुन: गिरफ्तार नहीं किया| अब आपने आर्य समाज गुलबर्गा का ताला खोलकर वहीं रहते हुए, हाथ में ओउम् का झंडा लिए दिन भर नगर भर में आर्य समाज का प्रचार करने का कार्य आरम्भ कर दिया| आपके ज्येष्ठ सुपुत्र भी सत्याग्रह करके अपने साथियों सहित जेल गए| २६ अगस्त १९३९ को आपका बलिदान हो गया|
बलिदानी बदन सिंह
मुजफ्फराबाद निवासी चौ. टीकासिंह तथा माता हीरादेवी जी के यहाँ १९२१ में जन्मे बदनसिंह माता पिता की एक मात्र संतान थे| दस वर्ष की आयु में अध्यापक शेरसिंह जी ने इन्हें आर्य समाज के विचार दिए| अठारह वर्ष में प्रवेश करते ही हैदराबाद में सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ हुआ| पिता को रोग शैय्या पर छोड़कर, उनकी ही स्वीकृति से सत्याग्रह के लिए रवाना हुए| बेजवाडा में स्त्याग्रह कर वारंगल जेल भेजे गए| जहां दी जा रही भयंकर यातनाओं के कारण रोगी हो गए और २४ अगस्त १९३९ को वीरगति को प्राप्त हुए|
बलिदानी रतीराम जी
जिला रोहतक के सांपला में माता छोटी बाई तथा पिता मुसद्दीलाला जी के याहां कथावाचक रतीराम जी का जन्म हुआ|आरम्भ से ही दहर्म्प्रेमी तथा सेवाभावी थे| गर्मियों में लोगों को ठन्डे पानी की सेवा देते थे| सेवा में बाधा न आवेव इसलिए विवाह नहीं किया| आर्य समाज तथा कांग्रेस के लिए जान देने को भी तैयार रहते थे| १९३० के आन्दोलन में नो मॉस की जेल हुई| सेवा के समय सब भूल जाते थे| जब सुना कि मुसलमान बच्चों की चोरी कर रहे हैं तो सब गाँवों को सावधान किया| सेवाकाल में भूख प्यास को भी भूल जाते थे \| हैदास्राबाद सत्याग्रह आन्दोलन की घोषणा को सुनते ही सत्याग्रह कर जेल चले गए| जेल की अव्यवस्था से बीमार हो गए| रोग को असाध्य देख निजाम ने आपको छोड़ दियाकिन्तु शरीर इतना टूट चुका था कि घर आकर २५ अगस्त १९३९को बलिदान हो गए|
पंडित बेगराज जी
आपका जन्म उ. प्र. के जिला गाजियाबाद के अंतर्गत भूडिया गाँव में ८ अप्रैल २०१६ को हुआ| निकटवर्ती गाँव इकडौली में मिडल पास की और गाँव में आये एक आर्यसमाजी प्रचार के गीतों को सुनकर भजनोपदेशक बन गए| आर्य समाज की खूब सेवा की| पंजाब के हिंदी सत्याग्रह में जेल गए| देश विदेश में भी आर्य समाज की सेवा की| ७ अगस्त २०१४ को देहांत हुआ|
देवी विद्यावती शारदा
जिला सहारनपुर के टपरी के न्यामत सिंह जी के यहाँ १९०१ में जन्म हुआ| पिता जी आर्यसमाजी र्ताथा देशप्रेमी थे उनका प्रभाव आप पर पड़ा| आप ने देश की सेवा के लिए क्रांतिकारी, कांग्रेस तथा आर्य समाज के माध्यम से कार्य किया| कई बार स्वाधीनता केलिए जेल गसिं| अनेक गुरुकुलों तथा कालेजों को अपनी सायें दिन| ज्वालापुर में गुरुकुल सथापित किया| ८ अगस्त १९४६ को देहांत हुआ|
बलिदान बाबा शाहमल सिंह तोमर
आपका जन्म १७ फरवरी १७९७ को जिला बागपत के गाँव बिजरौल में हुआ| पिटा अमिन्चंद तथा माता धन्वन्तरी थीं| स्वाधीनता की भावना आरम्भ से ही थी| अंग्रेज से ओहा लेने के कारण क्षेत्र भर में धाक जम गई| अंग्रेजी खजाने ऑ लुटाकर क्रांतिकारियों की सेना कड़ी कर ली| आजादी के लिए दिल्ली सरकार की सहायता की भी और ली भी| इस कारण उन्हें राजा की उपाधि डी गई| अंत में अंग्रेजों से लड़ते हुए २१ जुलाई को उनका बलिदान हुआ|
डॉ. अशोक आर्य
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