Sunday, November 24, 2024
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कविता लिखने की ललक ने योगिराज को बना दिया साहित्यकार

समय का चक्र अपनी गति से चलता रहता है। कोई नहीं जानता कब किस के जीवन की धारा किस ओर मुड जाए। ऐसा ही हुआ कोटा निवासी योगीराज योगी के साथ। कभी सोचा भी नहीं था कि वह साहित्यकार भी बन जायेंगे। बात कोई तीस साल पुरानी है जब 1990 में उन्हें छोटी मोटी कविता, दोहे लिखने का शोक लग गया। कुछ लिखते अपने मित्रों को सुनाते और दाद मिलने पर खुश होते थे। प्रारंभिक लेखन के दौरान मुलाकात रामेश्वर शर्मा ‘रामू से हुई और उन्होंने प्रोत्साहित किया। इनके माध्यम से परिचय हुआ स्व.बाबू ‘बम’ से जो स्वयं कवि थे और इनके साहित्य गुरु बन गए। इनकी कविताएं सुनते थे और अपनी लिखते थे। आज भी समय – समय पर रामू भैया का मार्ग दर्शन प्राप्त करते हैं।

योगिराज ने बताया कि प्रारम्भ में साहित्य दृष्टि से हिन्दी व राजस्थानी दोनों भाषाओं में वीर रस में ओज पूर्ण शैली की कविताएं लिखते थे। साथ ही गीत ,दोहा, मुक्तक लिखने व समसामयिक अन्य विषयों पर भी लिखने लगे और लिखने यह क्रम निरंतर जारी है। बिटिया शीर्षक से लिखी कविता की बानगी देखिए जिसमें एक बेटी के मनोभावों का कितना सुंदर वर्णन किया है……
“मैं पापा की बिटिया प्यारी, 
घर आंँगन की शोभा न्यारी। 
नई-नई पोशाक पहनती, 
चिड़िया जैसी खूब चहकती। 
रोज समय पर पढ़ने जाती, 
मम्मी का मैं हाथ बँटाती। 
झूला झूलूँ उपवन जाकर, 
खुश होती मैं समय बिताकर। 
जो भी मांंगूँ मिले खिलौना, 
नहीं जानती कैसा रोना। 
ठाट-बाट हैं मेरे भारी, 
जैसे कोई राजदुलारी।।”
इसी प्रकार दुनिया में सबसे प्यारी “माँ” शीर्षक पर लिखी कविता में कवि ने माँ की महिमा को जिस खूबसूरती से बताया है वह देखते है बनता है………..
“मांँ बिन सूना सूना जग है,
मांँ बिन लगता कण्टक मग है।
मांँ जीवन की आशा रानी,
वरना होती करुण कहानी।
मांँ से करते खुलकर बातें,
सह लेते सब मिल आघातें। 
मांँ अम्बर-छाया से बढ़कर,
मांँ जीवन का पूरा युग है।
माँ बिन सूना…..।

मांँ करती सब माँगे पूरी,
अब रहती सब चाह अधूरी।
अब सुख के बस सपने आते, 
आंँख खुली हम खाली पाते। 
स्वर्ण रजत की आभा फीकी,
माँ बिन मूल्यहीन सब नग हैं।
माँ बिन सूना……।

माँ ही भरती सुख की झोली,
बेरंग हैं सब चन्दन रोली।
माँ होने से सब कुछ अच्छा,
मैं बूढा़ होकर भी बच्चा। 
मांँ का रक्त बहे रग-रग है
माँ बिन पीछे उठता पग है,
माँ बिन सूना…..।।”

सृजन : आपके साहित्य की यात्रा में अब तक दो कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रथम कृति हिंदी काव्य संग्रह “खोल दिया मन का वातायन” 2015 में प्रकाशित हुई। दूसरी कृति 2022 में बाल काव्य संग्रह ‘”रंग बिरंगी तितली रानी” प्रकाशित हुई। आपकी तीसरी कृति “गोरख नाथ चालीसा” एवं चौथी “भजन संग्रह” प्रकाशनाधीन हैं। आपने लगभग 35 भजन लिखे हैं।

सम्मान : आपको श्री भारतेन्दु समिति कोटा द्वारा ‘साहित्यश्री’ अलंकरण, साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा द्वारा ‘हिंदी भाषा भूषण’ मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। साहित्य लोक /इमेजिन परिवार, झाँसी (म.प्र.) द्वारा “साहित्य लोक कौमी एकता सम्मान”, साहित्य समिति भीमगंज मंडी कोटा द्वारा “साहित्य भूषण सम्मान” , श्री कर्मयोगी सेवा संस्थान कोटा द्वारा “श्री कर्मयोगी साहित्य गौरव सम्मान” तथा सम्पादक अभिव्यक्ति, अयोध्या ( उ. प्र. )बड़वारा ‘श्री राम जन्मभूमि मंदिर शिलान्यास साक्षी साहित्य सृजन सम्मान’ से सम्मानित किया गया।

परिचय : आपका जन्म 5 अगस्त 1962 को खतौली तहसील पीपल्दा, कोटा जिले में  स्व. श्री भँवर नाथ जी योगी के परिवार में हुआ। आपने हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। कुछ समय निजी विद्यालय में अध्यापन का कार्य किया बाद में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, श्रम मंत्रालय, भारत सरकार के कोटा कार्यालय में सर्विस लग गई और आपने 2021 में प्रवर्तन अधिकारी पद से स्वैच्छिक सेवानिवृति प्राप्त करली। आपने हाड़ोती अंचल के अनगिनत कवि सम्मेलनों सहित अखिल भारतीय राजस्थानी कवि सम्मेलन में भी काव्य पाठ किया। आप अखिल भारतीय साहित्य परिषद , श्री भारतेन्दु समिति, सारंग साहित्य समिति, सृजन साहित्य समिति, आर्यावर्त साहित्य समिति कोटा से सक्रिय रूप से जुड़े हैं और वर्तमान में साहित्य सृजन में रत हैं।

संपर्क सूत्र मो. 9950103915

( डॉ.प्रभात कुमार सिंघल कोटा में रहते हैं व पर्यटन, सामाजिक, साहित्य, कला व संस्कृति से जुड़े विषयों पर लिखते हैं, आपकी कई पुस्तकें भी प्रकाशित रहो चुकी है)

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