राजनांदगांव। शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय प्राध्यापक और प्रख्यात मोटिवेशनल स्पीकर डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने दुर्ग के शासकीय डॉ. वा.वा.पाटणकर गर्ल्स पीजी कालेज में भाषा, सम्प्रेषण और प्रस्तुति कला पर यादगार व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा भाषा या ज़बान एक बहते पानी की तरह है, जो जहां से भी गुज़रती है वहां की दूसरी चीज़ों को अपने साथ समेटते हुए आगे बढ़ती है। एक ही धारा से ना जाने और कितनी धाराएं निकल पड़ती हैं। इसी तरह एक ही भाषा से ना जाने कितनी भाषाओं का जन्म होता है। एक ही शब्द से कई नए शब्दों को जीवन मिल जाता है। एक ही शब्द से बात बन जाती है और एक ही शब्द बनती बात को बिगाड़ देने के लिए काफी होता है। लिहाज़ा, भाषा, भाव और विचारों के सम्प्रेषण में बेहद सावधान रहना चाहिए। डॉ. जैन ने पढ़ाई से लेकर परीक्षा तक, साक्षात्कार से लेकर रोजगार तक, प्रेरणा से लेकर प्रबंधन तक, शासन से लेकर प्रशासन तक, व्यक्तित्व से लेकर नेतृत्व तक और संघर्ष से लेकर हर्ष तक प्रभावी सम्प्रेषण के महत्त्व पर प्रकाश डाला।
गरिमामय व्याख्यान का आयोजन महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. सुशीलचन्द्र तिवारी की अध्यक्षता और संस्था के आईक्यूएसी की प्रमुख डॉ. अमिता सहगल की देखरेख में ऐतिहासिक सफलता के साथ किया गया। मुख्य वक्ता और रिसोर्स पर्सन के रूप में आमंत्रित डॉ. जैन ने कहा कि शब्द ब्रह्म में दक्ष साधक परब्रह्म को भी साध लेता है। इसलिए शब्दों की कीमत कभी कम नहीं आंकना चाहिए। बड़े ही रोचक आज़ाद में उन्होंने कहा कि दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता, पर अफ़सोस यह है कि वे अक्सर कुछ न कुछ कहते, बोलते, प्रलाप करते मिल जाएंगे। दूसरी तरफ ऐसी लोग भी हैं जिनके पास कहने के लिए बहुत कुछ है लेकिन चाहकर भी कह नहीं पाते हैं। संकोच, झिझक, अभ्यास का आभाव, शब्दों की ताकत को समझ नहीं पाने की गलती और संवाद-सम्प्रेषण की अहमियत से नावाकिफ़ होने के कारण लोग अपनी बड़ी सफलता के दरवाज़े खुद बंद देते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि नासमझ बड़बोलेपन से समझदार चुप्पी हर हाल में बेहतर होती है।
डॉ. जैन ने छात्राओं को कई मिसालें पेश करते हुए प्रोत्साहित किया कि हर दिन अपनी भाषा में सुधार के लिए वक्त तय करें। कहीं कुछ बोलने, कहने और अपनी बात को लोगों तक पहुँचाने के अवसर न चूकें। लेकिन पहले तैयारी करें। डॉ. जैन ने छात्राओं को अच्छा लिखने वालों को अच्छी तरह पढ़ने और अच्छा बोलने वालों को दिल से सुनने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि शब्द जड़ होते हैं पर कुशल वक्ता उनमें प्राणों का संचार कर देता है। वहीं, जड़बुद्धि के हाथों पहुंचकर जीवंत शब्द भी अपनी शक्ति खो देते हैं। उन्होंने वाणी और सम्प्रेषण के साथ-साथ प्रस्तुति के दौरान शब्दों के उतार-चढ़ाव, संकेत, देह की भाषा, सही व सटीक उद्धरण देने और कविता की पंक्तियाँ सुनाने के अंदाज़, तर्क बुद्धि, प्रत्युत्पन्न मति, सेन्स ऑफ ह्यूमर जैसे पहलुओं को भी सहज ढंग से समझाया।
व्याख्यान के दौरान सभागृह बार-बार करतल ध्वनि और हर्षध्वनि से गूंजता रहा। संस्था की तरफ से प्राचार्य डॉ. सुशीलचन्द्र तिवारी ने अतिथि वक्ता डॉ. चंद्रकुमार जैन का शॉल, श्रीफल, पुष्पगुच्छ, सम्मान प्रतीक आदि भेंट कर आत्मीय सम्मान किया। कार्यक्रम का प्रभावशाली संचालन डॉ. ऋचा ठाकुर ने किया। बड़ी संख्या में छात्राओं के साथ ही महाविद्यालय के सभी प्राध्यापकों की गरिमामय उपस्थिति रही।