बीजेपी के पूर्व सांसद प्रफुल्ल गोरड़िया ने लिखा है कि भाजपा के शीर्ष नेताओं ने चेतावनी दी थी कि इस तरह मोदी की पैरवी कर मैं अपना राजनीतिक भविष्य बर्बाद कर रहा हूं।
किताब में दावा- गुजरात दंगों पर बचाव कर रहे बीजेपी नेता को आया था पीएमओ से फोन- मोदी न तो आपका भाई है, न भतीजा, फिर क्यों चिपके होगोधरा दंगों के बाद लोगों को संबोधित करते तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी साथ में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी।
साल 2002 में जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और राज्य में गोधरा कांड हुआ था तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और स्वर्गीय प्रमोद महाजन समेत भाजपा के कई बड़े नेता न केवल मोदी सरकार को बर्खास्त करना चाहते थे बल्कि उनका राजनीतिक निष्कासन करना चाहते थे। ऐसा बीजेपी के एक पूर्व सांसद और बीजेपी टुडे नाम की पत्रिका के पूर्व संपादक प्रफुल्ल गोरड़िया ने दावा किया है। शीघ्र प्रकाशित हो रही अपनी किताब ‘फ्लाई मी टू द मून’ में गोरदिया ने लिखा है कि जब साल 2002 में सभी टीवी चैनलों पर गोधरा कांड पर बहस हो रही थी तब किसी ने भी मोदी का बचाव नहीं किया था। बतौर गोरदिया वो अकेले पत्रकार और नेता थे जो टीवी चैनलों पर हो रही बहस में मोदी का पक्ष रख रहे थे और उनका बचाव कर रहे थे।
गोरड़िया ने लिखा है कि गोधरा कांड के करीब एक महीने बाद एनडीटीवी पर प्रसारित साप्ताहिक शो ‘द बिग फाइट’ में जब यह चर्चा हो रही थी कि नरेन्द्र मोदी सरकार को बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए, तब मैं गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री का बचाव कर रहा था और यह कह रहा था, “नरेन्द्र मोदी आपकी कंपनी के ब्रांच मैनेजर नहीं हैं जिन्हें आप यूं ही हटा देंगे, वो गुजरात के चुने हुए मुख्यमंत्री हैं।” गोरदिया लिखते हैं कि आज भी उनकी ये बातें गुजरात के लोगों के जेहन में है। गोरदिया ने किताब में यह भी उल्लेख किया है कि बाद में जब नरेन्द्र मोदी से उनकी मुलाकात हुई तो मोदी जी ने उन्हें बताया कि वो उस एपिसोड को नहीं देख पाए थे लेकिन लोगों ने उसके बारे में उन्हें बताया जरूर था।
गोरड़िया लिखते हैं कि तब के समय में अंग्रेजी टीवी चैनलों पर वो मोदी का बचाव करने वाले अकेले शख्स थे। वो लिखते हैं कि उनकी इस हरकत से भाजपा के कई बड़े नेता नाराज थे। उन्होंने लिखा है कि जिस रात वो एनडीटीवी पर ‘द बिग फाइट’ शो में मोदी का बचाव कर रहे थे उसकी अगली सुबह उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आया था। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि तब मैं अचानक फोन करने वाले को नहीं पहचान सका था लेकिन वो आवाज मुझे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के ऑफिस यानी पीएमओ के ओएसडी की लगी थी। गोरदिया लेखते हैं कि फोन पर उस अधिकारी ने कहा था, “मोदी न तो आपका भाई है, न भतीजा, फिर आप क्यों उससे चिपके हुए हैं?”
गोरड़िया ने लिखा है कि एक तरह से भाजपा के शीर्ष नेताओं ने हमें चेतावनी दी थी कि इस तरह मोदी की पैरवी कर मैं अपना राजनीतिक भविष्य बर्बाद कर रहा हूं। उन्होंने लिखा है कि उस समय अहमदाबाद और दिल्ली में मोदी के शुभचिंतकों के बीच एक आम धारणा बनी हुई थी कि प्रमोद महाजन गुजरात के इस शेर का राजनीतिक तौर पर विरोध करते थे। बतौर गोरदिया, यह संभवत: राजनीतिक भविष्य की प्रतिस्पर्धा के मद्देनजर स्वभाविक था।
”90 के दशक के अंत में गुजरात भाजपा के दो कद्दावर नेता केशुभाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला राज्य में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में लगे थे। तब पार्टी संगठन में रहे नरेंद्र मोदी का पटेल ने अच्छा इस्तेमाल किया और वाघेला का काबू में रखा। लेकिन बाद के संघर्ष में वाघेला ने अपना दांव-पेंचों से केशुभाई से पद छुड़वाया और खुद अपनी गुजरात जनता पार्टी बना ली। कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई और बाद में पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लिया। वाघेला के बीजेपी से बाहर होते ही नरेंद्र मोदी केशुभाई के फेवरिट नहीं रहे। पटेल सिर्फ मोदी को साइडलाइन करके संतुष्ट नहीं हुए, उन्होंने मोदी को भाजपा का संगठन महासचिव बनाकर दिल्ली भेज दिया। केशुभाई ने शर्त रखी कि अगर मोदी कभी गृह राज्य आएंगे तो किसी राजनेता या पत्रकार से नहीं मिलेंगे और सिर्फ निजी मामलों तक खुद को सीमित रखेंगे। मोदी को किनारे कर दिया गया था, मगर उन्होंने बेइज्जती सह ली।
मोदी को सिर्फ केशुभाई की चालों और अनजान दिल्ली से ही नहीं निपटना था। उनके पास रहने के लिए जगह नहीं थी, वह अपने सांसद दोस्तों के यहां इधर-उधर रहते थे। जब मैं राज्य सभा के लिए चुना गया तो मुझे एक अपार्टमेंट मिलता, तो मैंने मोदी को उसे आवास के तौर पर इस्तेमाल करने की सलाह दी। नॉर्थ एवन्यू में फ्लैट एलॉट होते-होते हफ्तों बीत गए, जो फ्लैट मिला, वह मुझे अच्छा नहीं लगा। मैंने मोदी से कहा ‘आ तो बहू सरो नाथी’ (ये उतना अच्छा नहीं है) और बताया कि मैं बेहतर फ्लैट की मांग करने जा रहा हूं। कुछ सप्ताह बाद, मुझे एक अच्छा अपार्टमेंट एलॉट किया गया। मैं और नरेंद्रभाई वह फ्लैट देखने लगे, उन्हें पसंद भी आया। जब हम वहां से निकले तो मैंने एक चाभी नरेंद्रभाई को दी और दूसरी अपने पास रख ली। फ्लैट में रंगरोगन होने से पहले ही मेरे पास आरएसएस प्रमुख केएस सुदर्शन का फोन आ गया।
उन्होंने कहा, ‘नमस्कार प्रफुल्ल जी, आपको अब तक एक नया अपार्टमेंट एलॉट हो गया होगा।’ मैंने उन्हें बताया तो उन्होंने कहा, ”बहुत अच्छा, क्या वह फ्लैट आप शेषाद्रि चारी को दे देंगे” मैंने हैरानी जताई तो वह बोले, ”हां, हां, द आर्गनाइजर के एडिटर। वह भले आदमी हैं और रहने की जगह ढूंढ रहे हैं। मैं जानता हूं कि आप अपने सुंदर नगर वाले बंगले से बाहर नहीं जाएंगे।” फिर मैंने उन्हें असली बात बताई, ‘मैं सुंदर नगर से बाहर जाने की नहीं सोच रहा हूं लेकिन सुदर्शनजी, मैंने नरेंद्र मोदी को अपना फ्लैट देने का वायदा किया है।’ आरएसएस चीफ ने कहा, ”नरेंद्र, ये कोई समस्या नहीं है। नो प्रॉब्लम, नरेंद्र अकेले है, उसे एक कमरा दिया जा सकता है। चारी परिवार वाले हैं, तो वे दो कमरे ले सकते हैं। आखिर वहां तीन कमरे हैं। सरसंघचालक अपनी बात मनवाना ही चाहते थे।
मैंने अपनी बात साफ कह दी, ‘मैंने नरेंद्रभाई से वादा किया है।’ दो दिन में फिर फोन करने की बात कहकर मैंने मोदी से बात की। मैंने उनसे साफ कहा, ‘मैं कॉल कर के सुदर्शनजी को कह देता हूं कि मैंने अपनी बात रख दी है और वापस नहीं ले सकता।’ मोदी ने कहा, ‘नहीं, जाने दीजिए।’ मैंने कहा, ‘मुझे कोई झिझक नहीं है, मैं पछतावा नहीं करता।’ मगर मोदी ने मुझे मामले को छोड़ देने की सलाह दी।
मोदी के दिमाग में यह चीज साफ थी कि वह नहीं चाहते थे कि मैं उनके लिए आरएसएस प्रमुख से संबंध खराब करूं। इसलिए मेरा अपार्टमेंट शेषाद्रि चारी को मिला।”
ये संस्मरण पूर्व सांसद प्रफुल्ल गोरदिया ने अपनी किताब Fly Me To The Moon में लिखा है। प्रस्तुत अनूदित अंश इसी किताब से लिया गया है, जिसे रेडिफ डॉट कॉम ने प्रकाशक ब्लूम्सबरी के हवाले से छापा है।