आप सभी ने कभी न कभी भुना हुआ भात और रोटी पोहा जरूर खाया होगा। अगर आपको ऐसा लगता है तो यह गलत है। दरसल आप अक्सर इसे खाते रहते हैं। आप जब भी कभी घर से बाहर रेस्टोरेंट वगेरह में भोजन करते हैं तो कोई आपके लिए बिल्कुल ताजा भोजन परोस दे खासकर चावल यह सम्भव नजर नही आता। उंसके बावजूद भी बासा न खाने वाली हमारी मॉडर्न पीढ़ी बड़े चाव से वह सब कुछ डकार आते हैं, आखिर काफी पैसे जो चुकाये हैं इसके लिये, और दूसरा कारण यह कि वहाँ आजकल ढेर सारे घोषित और अघोषित सेल्फी पॉइंट होते हैं।
भोजन करना जैसे आवश्यकता नही बल्कि स्टेटस सिम्बोल बन गया है। और यही व्यंजन जब घर पर माँ बनाये तो बासी भोजन के नाम पर न जाने क्या क्या अटरम- शटरम साइंस बताने और गिनाने लग जाते हैं। शायद इन बच्चों को लगता है कि हमारे पूर्वजों ने या बड़े बुजुर्गों ने साइंस नही पढ़ी है। अरे पढ़ी है भई! खूब अच्छी तरह पढ़ी है। यूँ ही नही दुनिया भर के सभी किताबी आविष्कार हमारे देश से संबंध रखते हैं। और यही ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी चलता हुआ आज भी सुरक्षित है। बहुत कुछ छिपा दिया गया, बहुत कुछ मिटा दिया गया। लेकिन भोजन परम्परा का यह मौखिक ज्ञान हमारी, दादी-नानी व माताओं के माध्यम से आज भी सुरक्षित है। तो चलिए आपको बासी भोजन के फायदे बताती हूँ।
हालाकि बासी नामक स्वयं एक पारंपरिक व्यंजन छत्तीसगढ़ में प्रचलित है। लेकिन बासी का शाब्दिक अर्थ- बनाने के बाद 6 से लेकर 24 घंटे बाद खाया जाने वाला व्यंजन है। जिसकी गुणवत्ता कई मायनों में किण्वन fermentation और curing द्वारा पहले की तुलना में अधिक बढ़ जाती है।
हमारे देश के अलग अलग हिस्सों में बासी रोटी या बासी चावल भात को खाना प्रचलन में है, माफ़ कीजियेगा प्रचलन में था, छत्तीशगढ़ में खाया जाने वाला बासी इसका सर्वोत्तम उदाहरण है, जिसमे पके हुए भात चावल को रात भर पानी मे डालकर फरमेंट किया जाता है और फिर सुबह खाया जाता है।
यह कोई गरीबी के कारण किया हुआ कार्य नही है, न ही बेवकूफ़ी बल्कि यह पूरी बात तथ्यों पर आधारित है, कि फेरमेंटेशन से न सिर्फ स्वाद में इजाफा होता है बल्कि इसके कारण खाद्य सामग्री भोजन पचने में आसान बन जाता है। इसमें विटामिन ए सहित कार्बनिक अम्लों का बहु निर्माण हो जाता है, जो शरीर की कई मेटाबोलिक क्रियाओं में आवश्यक होते हैं। यकीन नही हो रहा है, हैना…? चलिये इस तरह से सोचिए कि आप जो अचार, खट्टे पापड़, इडली, दोसा, जलेबी, ब्रेड, केक आदि बनाते हैं, तो क्या करते हैं आटे मिश्रण के साथ, और क्यो…? दिमाग हिल गया न? इसीलिये कहता हूँ, पूर्वजो के ज्ञान का सम्मान करें।
ऐसे ही दो खास व्यंजन हैं ) fried chapatis (भुंजी रोटियाँ या रोटी पोहा) और fried rice (भूँजा चावल) जिनकी फ़ोटो पोस्ट में शामिल हैं। अगर आपने इन्हें पहले कभी नही खाया तो चलिए मैं आपको सिखाता हूँ। घर पर ट्राय जरूर कीजियेगा…
1) रोटी पोहा fried chapatis
ये रोटिपोहा या fried chapatis भूंजी हुयी बासी रोटियां कितनी महत्वपूर्ण और पौष्टिक है ये आपको अंदाजा भी नहीं होगा। प्रचलन के हिसाब से देखें तो यह अब घरों की रसोई से काफी दूर हो गए हैं लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह वर्तमान में खाये जाने वाले नाश्तों में सबसे अधिक पौष्टिक और पचने में आसान है। बासी रोटियां लाभदायक बॅक्टीरिया द्वारा आंशिक फर्मेंटेशन हो जाने के कारन यह ताज़ी रोटी से भी अधिक लाभदायक हो जाती है, और इसमे विटामिन ए का भी समावेश हो जाता है। जिम जाने वाले लोगो, कठोर परिश्रम करने वालो और मधुमेह के रोगियो को भी बासी रोटी खाने की सलाह दी जाती है। अब तो कई तरह की रिसर्च करने के बाद अब बहुत से वैज्ञानिक और शोधकर्ता भी बासी रोटी के फायदों के कायल हो चुके है। गाँव देहात में बासी रोटी का कलेवा तो जैसे उनकी जीवनचर्या का हिस्सा ही बन गया था।
इसे बनाने के लिए बासी रोटियों के बारीक टुकड़े कर लें फिर इन्हें हाथों से रगड़ते हुये बारीक पीसते हुये महीन टुकड़े कर लें। उंसके बाद बिल्कुल पोहा बनाने की विधि से इसे फ्राई कर दें।
2) बासे भात का पुनर्जन्म: भुंजा हुआ भात/ चावल-इसे बनाने के लिए रात्रि का बचा हुआ चावल ले लें। कटी हुई मिर्च, प्याज, हरा धनिया, कड़ी पत्ता और सामान्य मशाले नमक आदि के साथ इसे कढ़ाई ओर बघार लगायें और चांद मिनटों में लाजबाब नाश्ता तैयार है। इसे आज भी ज्यादातर घरों में बनाया जाता है।
बासी रोटियों के बाद अब बात करते हैं कि बासी चावल कितनी महत्वपूर्ण और पौष्टिक है ये यह एक ऐसा पौष्टिक नास्ता है जिसे सभी ने बचपन में इसी तरह इसी नाम से खाया होगा, और आजकल जीरा राइस, मसाला राइस आदि नामों से बड़े बड़े होटल्स में बेवकूफ बनकर खा रहे हैं।
घर की बात करें तो धीरे धीरे आधुनिकता की दौड़ में यह प्रचलित व्यंजन जाने कहाँ खो गया था। लेकिन मैं अब भी इसे खाता रहता हूँ। जब कभी घर पर रात्रि भोज का चावल बच जाता है, तो इसे सुबह इसी तरह नया रूप देकर नास्ते के रूप में परोस दिया जाता है। हालाकि यह कभी किसी मेहमान को नही परोसा जाता क्योंकि मेहमान को बासा खिलाना हमारे संस्कार में नही है। परंतु मुझे इसे ग्रहण करने में कोई परहेज नही होता, क्योंकि एक तो मैं इसके फायदे जनता हूँ और दूसरा यह कि मैं अनाज को फेकने या जूठा छोड़ने के सख्त खिलाफ हूँ। आज भी थाली चाट चाट कर खाने पर अड़ा हुआ हूँ। कुछ आधुनिक मित्र गलती से मुझे भुक्कड़ समझ लेते हैं। हालाकि थोड़ा बहुत तो हूँ भी।
लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह वर्तमान में खाये जाने वाले नाश्तों से यह कही अधिक स्वादिष्ट, पौष्टिक और पचने में आसान है। इसमें लाभदायक बॅक्टीरिया द्वारा आंशिक फर्मेंटेशन हो जाने के कारन यह ताजे चावल से भी अधिक लाभदायक हो जाते है। हालाकि मधुमेह के रोगी इसे खाने से बचते हैं, लेकिन हल्के फुल्के नास्ते के रूप में यह सभी के लिये अच्छा विकल्प है। अब तो कई तरह की रिसर्च करने के बाद अब बहुत से वैज्ञानिक और शोधकर्ता भी बासी के फायदों के कायल हो चुके हैं।
हमारे देश के अलग अलग हिस्सों में बासी रोटी या बासी चावल/ भात को खाना प्रचलन में है, माफ़ कीजियेगा प्रचलन में था। मेरा बासा भुंजा भात, छत्तीसगढ़ की बासी से अलग है, किन्तु फायदेमंद तो है ही। बगीचे में टहलते हुये या बैठकर इसे खाने का मजा ही निराला है। अगर आपने भी बासा भुंजा हुआ चावल/ भात या रोटी पोहा खाया हो तो बतायें। साथ ही आपके क्षेत्र में बासी व्यंजन के कौन कौन से रूप प्रचलित हैं, उनके बारे में बतायें…
साभार -https://twitter.com/SanataniPurnima से