देश में वाममोर्चा के अंतिम गढ़ रहे त्रिपुरा के चुनावी नतीजे पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार के लिए खतरे की घंटी हैं। त्रिपुरा में महज पांच साल के भीतर शून्य से शिखर तक पहुंचने वाली भाजपा ने जिस तरह वाममोर्चा के इस लाल किले को ढहा दिया है उसका असर वर्ष 2021 के विधानसभा चुनावों पर पड़ना तय है। वहां वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी। लेकिन बीते पांच वर्षों के दौरान जिस तरह ‘चलो पाल्टाई’ यानी आओ बदलें के नारे के साथ व इस दौरान जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत कर पार्टी सत्ता में पहुंची है, वह अपने आप में आश्चर्यजनक है।
बंगाल में तो भाजपा पहले से ही तमाम चुनावों में कांग्रेस व वाममोर्चा के पीछे धकेलते हुए नंबर दो की जगह हथिया चुकी है। हालांकि पहले स्थान पर रहने वाली तृणमूल कांग्रेस और उसके बीच की खाई काफी चौड़ी है। लेकिन त्रिपुरा के नतीजों ने साबित कर दिया है कि ठोस रणनीति व मजूबत संगठन के साथ इस खाई को पाटना असंभव नहीं है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी शायद पहले से ही इस खतरे का अहसास हो गया है। इसलिए उन्होंने तीन दिन पहले विधानसभा में कहा था कि त्रिपुरा में वाममोर्चा की जीत की स्थिति में उनको खुशी होती। लेकिन वामदलों ने वहां अपनी गलतियों से ही अपनी कब्र खोद डाली है। माकपा की कट्टर दुश्मन ममता अगर उसकी जीत की कामना करती हैं तो उनके मन में मंडराते खतरे का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि अब पार्टी की निगाहें बंगाल पर हैं। त्रिपुरा का लाल किला फतह करने के बाद पार्टी बंगाल में नए हौसले के साथ आगे बढ़ेगी। यहां बीते लोकसभा चुनावों के बाद से ही लगभग हर चुनाव और उपचुनाव में भाजपा को मिलने वाले वोटों में लगातार इजाफा हो रहा है। त्रिपुरा व पश्चिम बंगाल में इस लिहाज से काफी समानता है कि दोनों राज्यों में बांग्लाभाषी आबादी की तादाद ज्यादा है और ये दोनों बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ से पीड़ित हैं। भाजपा यहां तृणमूल कांग्रेस पर वोट बैंक की राजनीति के तहत घुसपैठ को बढ़ावा देने के आरोप लगाती रही है।
माकपा सूत्रों ने बताया कि त्रिपुरा के चुनावी नतीजों का बंगाल ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी असर पड़ सकता है। भाजपा की जीत के बाद अब पार्टी के राजनीतिक मसविदे पर दोबारा बहस हो सकती है। ध्यान रहे कि पार्टी ने भाजपा की बढ़त रोकने के लिए कांग्रेस के साथ कोई तालमेल नहीं रखने के मसविदे पर मुहर लगाई है है। लेकिन अब इन नतीजों ने उक्त मसविदे पर दोबारा बहस छेड़ दी है। भाजपा सूत्रों ने बताया कि त्रिपुरा की कामयाबी के बाद प्रदेश भाजपा अब बंगाल में भी त्रिपुरा माडल को लागू करने पर विचार कर रही है। इसके तहत पार्टी ने इस साल होने वाले पंचायत चुनावों से पहले राज्य के सभी 77 हजार मतदान केंद्रों पर घर-घर जाकर अभियान चलाने का फैसला किया है। भाजपा ने त्रिपुरा में इसी रणनीति पर चल कर भारी कामयाबी हासिल की है। सूत्रों के मुताबिक, अमित शाह अब जल्दी ही राज्य में इस योजना की शुरुआत करेंगे।
भाजपा ने पंचायत चुनावों को क्वार्टर फाइनल, अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों को सेमी-फाइनल और वर्ष 2021 के विधानसभा चुनावों को फाइनल करार दिया है। बदले हुए सियासी समीकरणों से अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के माथे पर चिंता की लकीरें गहराने लगी हैं। हालांकि तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि त्रिपुरा व बंगाल की जमीनी परिस्थिति में काफी अंतर है। उन्होंने दावा किया कि त्रिपुरा में अपनाया गया भाजपा का फार्मूला पश्चिम बंगाल में बेअसर साबित होगा।
साभार- https://www.jansatta.com से