Sunday, November 24, 2024
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देश के इन गांवों में कोई अपराध नहीं होता, तो फिर यहां की पुलिस करती क्या है?

देश के इन गांवों में कोई अपराध नहीं होता, तो फिर यहां की पुलिस करती क्या है?
राजस्थान के जैसलमेर जिले के कुल 850 गांवों में से 436 ऐसे हैं जहां बीते कई सालों से कोई अपराध ही दर्ज नहीं किया गया है।

जैसलमेर. करीब 40 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला देश का तीसरा सबसे बड़ा जिला. इस जिले में कुल 840 गांव हैं जिनमें से 436 ऐसे हैं जहां बीते कई सालों से कोई भी आपराधिक घटना दर्ज नहीं हुई है. यानी इस जिले के आधे से ज्यादा गांवों में ‘अपराध दर’ शून्य है। जैसलमेर जिले के पुलिस अधीक्षक गौरव यादव बताते हैं, ‘यहां जनसंख्या काफी कम है इसलिए अपराध न के बराबर ही होते हैं. दूसरा, इन गांवों में अधिकतर ऐसे हैं जहां एक ही समुदाय के लोग रहते हैं. इसलिए अगर कोई विवाद होता भी है तो उसे सुलह-समझौते से आपस में सुलझा लिया जाता है।’

अपराध नहीं तो पुलिस का क्या काम?

बीते साल के अंत में जब ये आंकड़े सामने आए थे कि जैसलमेर के सैकड़ों गांव पूरी तरह से ‘अपराध-मुक्त’ हैं, तो ये कयास भी लगाए जाने लगे कि यहां तैनात पुलिस के पास अब कोई ख़ास काम नहीं होता होगा. लेकिन हकीकत यह है कि इन सैकड़ों गांव को अपराध-मुक्त बनाने और बनाए रखने में यहां की पुलिस भी एक मुख्य भूमिका निभाती है. इसे जैसलमेर शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर बसे सम थाना क्षेत्र की एक हालिया घटना से समझा जा सकता है।

बीती फरवरी की एक दोपहर सम थाने में पास ही बसे निम्बा गांव के निवासी पीरू खान अपनी शिकायत लेकर पहुंचे. उनका आरोप था कि गांव के कुछ लोग उनसे चिढ़ते हैं और उन्हें नुकसान पहुंचाना चाहते हैं. यह शिकायत मिलने पर थाने के उप-निरीक्षक महेश कुमार तुरंत ही पीरू खान के साथ उनके गांव गए, गांववालों से इस मुद्दे पर चर्चा की और सभी पक्षों के निश्चिंत हो जाने के बाद ही वे गांव से लौटे. महेश कुमार बताते हैं, ‘हमारे थाने के अंतर्गत कुल छह ग्राम पंचायत आती हैं जिनमें दर्जनों गांव हैं. हम हर रोज इनमें से कुछ गांवों में जाते हैं और बैठक करते हैं. इसलिए सभी गांव वालों को हम व्यक्तिगत तौर से जानने लगे हैं और हमारे उनसे बेहद आत्मीय संबंध बन गए हैं. जब भी कोई छोटी-मोटी घटना होती है, गांव वाले हमें मध्यस्थता के लिए बुला लेते हैं और अधिकतर मामले इसी तरह सुलझ भी जाते हैं.’ महेश कुमार की इन बातों की पुष्टि गांव वाले अलग से बातचीत करने पर भी करते हैं।

सम थाना क्षेत्र में जैसलमेर के वे इलाके भी आते हैं जहां पर्यटकों की आवाजाही सबसे ज्यादा है. ‘सम सैंड ड्युन्स’ और ‘डेजर्ट नेशनल पार्क’ इनमें मुख्य हैं. इसलिए यहां आने वाले पर्यटकों की सुरक्षा व्यवस्था भी सम थाने की पुलिस का एक मुख्य काम है. यहां के थानाध्यक्ष नरेंद्र कुमार बताते हैं, ‘हमारे थाने में जो गिने-चुने आपराधिक मामले दर्ज होते हैं, उनमें अधिकतर पर्यटकों से संबंधित ही होते हैं. हां, पानी की चोरी के कुछ मामले जरूर स्थानीय लोगों के खिलाफ आते हैं. देश के सबसे सूखे इस इलाके में पानी की भारी समस्या है. ऐसे में कई बार सरकारी पानी की चोरी के मामले आ जाते हैं.’ नरेंद्र कुमार आगे बताते हैं, ‘पर्यटकों की सुरक्षा में हमारा ज्यादा ध्यान होता है. पूरे जैसलमेर में सबसे ज्यादा पर्यटक यहीं आते हैं और इनकी सुरक्षा के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है. इसलिए हर रोज़ पर्यटन स्थल के पास हम लोग दोपहर तीन बजे से रात के दस बजे तक नाका लगाते हैं.’ इस क्षेत्र में कई वीआईपी भी आए दिन घूमने आते हैं, इनकी सुरक्षा व्यवस्था भी यहां की पुलिस के लिए एक बड़ा काम होता है.

हमेशा से अपराधमुक्त नहीं थे ये गांव

जैसलमेर जिले के जो आधे से ज्यादा गांव अब पूरी तरह से अपराधमुक्त हैं, वे हमेशा से ऐसे नहीं थे. पाकिस्तान बॉर्डर से सटे इन गांवों में पहले कई तरह के अपराध आए दिन हुआ करते थे. पुलिस निरीक्षक नरेंद्र कुमार बताते हैं, ‘कुछ साल पहले तक पाकिस्तान बॉर्डर खुला हुआ करता था. इसमें तार-बाढ़ नहीं हुई थी. उस दौर में यहां जमकर तस्करी हुआ करती थी. ड्रग्स से लेकर सोने तक की तस्करी और गैर-कानूनी तरीकों से लोगों को बॉर्डर पार कराने की घटनाएं भी आए दिन सामने आती थीं. लेकिन जब से बॉर्डर सील हो गया है, इस तरह के अपराध लगभग पूरी तरह ख़त्म हो गए हैं।’

सम थाने में कुल 13 लोगों के नाम बतौर हिस्ट्री शीटर दर्ज हैं. हिस्ट्री शीटर यानी लगातार अपराध करने वाले कुख्यात अपराधी. इन 13 नामों में लगभग सभी वे लोग हैं जिनके नाम 10-15 साल पहले दर्ज किये गए थे. लगभग इन सभी लोगों पर पकिस्तान से तस्करी करने के आरोप थे. बीते कई सालों में ऐसा कोई नया नाम इनमें नहीं जुड़ा है. इस क्षेत्र में सेना और अर्धसैनिक बलों की बढ़ती मौजूदगी भी अपराधों में कमी का एक मुख्य कारण बनी है. बॉर्डर से सटे इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से फ़ौज और बीएसएफ के ही हाथों में है. स्थानीय पुलिस भी यह स्वीकारती है कि सैन्य मौजूदगी इस क्षेत्र में जैसे-जैसे बढ़ी है, यहां होने वाले अपराधों की संख्या में कमी आई है.

कम अपराध भी पुलिस के लिए मुसीबत का सबब बन जाते हैं

थानों में कम आपराधिक मामलों का दर्ज होना और थाने के अंतर्गत आने वाले कई गांवों का पूरी तरह अपराधमुक्त होना पुलिस की एक उपलब्धि माना जाना चाहिए. लेकिन कई बार यही तथ्य पुलिस के लिए मुसीबत का कारण भी बन जाता है. नरेंद्र कुमार बताते हैं, ‘हमारे थाने में सब-इंस्पेक्टर के दो पद हैं लेकिन यहां एक ही तैनात हैं. इसी तरह एएसआई के यहां चार पद हैं लेकिन एक ही एएसआई की तैनाती हुई है. इसलिए जांच के लिए सक्षम अधिकारी यहां कम हैं. ऐसे में कई बार यह होता है कि कुछ मामलों में जांच समय रहते पूरी नहीं हो पाती.’ वे आगे कहते हैं, ‘चूंकि यहां कम मामले दर्ज होते हैं इसलिए अगर एक भी मामला लंबित रह जाए तो प्रतिशत में वह आंकड़ा बहुत बड़ा नज़र आने लगता है. जैसे, अगर कुल पांच मामले यहां दर्ज हुए और उनमें से एक मामला लंबित रह गया, तो यह माना जाएगा कि हमारे थाने में लंबित मामले बीस प्रतिशत हैं.’

लंबित मामलों का यह प्रतिशत थाने के ‘परफॉरमेंस रिव्यु’ में एक बाधा बन जाता है. जिन थानों में सैकड़ों मामले दर्ज होते हैं वहां दर्जनों मामलों के लंबित रह जाने पर भी थाने की ‘परफॉरमेंस’ उतनी प्रभावित नहीं होती जितनी इस क्षेत्र के थानों की एक या दो मामलों के लंबित रह जाने से भी हो जाती है. पुलिस उप-निरीक्षक महेश कुमार कहते हैं, ‘यह तकनीकी मामला है. प्रतिशत में हमारा लंबित मामलों का आंकड़ा बड़ा जरूर लगता है लेकिन असल में यह है बेहद छोटा. इसलिए हमें इसका मलाल नहीं बल्कि इस बात की ख़ुशी होती है कि पूरे देश में ‘जीरो क्राइम रेट’ वाले सबसे ज्यादा गांव हमारे जिले में ही हैं।’

साभार- https://satyagrah.scroll.in/ से

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