सभी जानते हैं कि भारत को आजादी इतनी आसानी से नहीं मिली थी। मुल्क की आजादी के लिए जहां हजारों वीरों ने शहादत दी वहीं आजादी के बाद भी भारत की सरहदों की रक्षा करते हुए सैकड़ों सैनिकों ने अपनी जान कुर्बान कर दी। ऐसे ही एक जाबांज और परम वीर च्रक विजेता यदुनाथ सिंह की आज (6 फरवरी, 2018) 70वीं पुण्यतिथि है। सिंह उन बहादुरों में एक थे जिन्होंने दुश्मनों से सरहद की रक्षा करते-करते अपने प्राण त्याग दिए लेकिन हार नहीं मानी। आज हम आपको यहां ऐसा ही एक किस्सा सुनाने जा रहे हैं जब यदुनाथ सहित 9 भारतीय सैनिक पूरी पाकिस्तान फौज पर भारी पड़ गए थे।
6 फरवरी, 1948 को सेना नायक जदुनाथ सिंह (सर्विस नंबर 27373) सैन्धार में दो नंबर पिकेट पर एक ऐसी टुकड़ी (फॉरवर्ड सेक्सन) की कमान संभाल रहे थे जहां दुश्मनों ने अचानक हमला कर दिया। तब चौकी पर सिंह सहित 9 जवान तैनात थे। हिंदुस्तानी जमीन पर कब्जे के लिए दुश्मन लगातार गोलीबारी कर रहा था, गोलीबारी भी इतनी भयंकर थी कि चौकी के बाहर दुश्मनों की संख्या तक देखना खासा मुश्किल हो रहा था। दुश्मन अपने पहले ही हमले में चौकी तक पहुंचने में कामयाब हो गया। लेकिन बहादुर जदुनाथ सिंह और उनकी टीम की गर्जना अभी बाकी थी। उन्होंने अपने छोटे से सैन्य दल की मदद से दुश्मनों को जवाबी हमले में खदेड़ दिया।
गर्व की बात है कि सिंह जब दुश्मनों से लोहा ले रहे थे तब सैनिकों की छोटी सी टुकड़ी में भी चार जवान गंभीर रूप से घायल हो गए थे, मगर जदुनाथ ने हार नहीं मानी। उनकी बंदूक की गोलियां दुश्मनों पर आग बरसाती रहीं। बाद में दुश्मनों ने और भारी तादाद में हमला किया और इस बार भारतीय टुकड़ी के सभी जवान घायल हो गए। खुद जदुनाथ के दाहिने बाजू में गोली लगी और दुश्मन चौकी की दीवार तक पहुंचे गए। मगर भारत का यह जाबांज कहां रुकने वाला था। जदुनाथ ने एक बार फिर दुश्मनों पर जवाबी हमला शुरू किया और दूसरे घायल जवानों को भी लड़ते रहने के लिए प्रोत्साहित किया। इस बार भारत की जवाबी फायरिंग में दुश्मन भाग खड़ा हुआ।
इसके बाद दुश्मनों ने तीसरी बार फिर असंख्य सैनिकों के साथ भारतीय चौकी पर हमला किया। जंग में बुरी तरह घायल हो चुके वीर बहादुर जदुनाथ ने घायल होने के बाद भी एक बार फिर दुश्मनों का डटकर सामना किया। अकेले ही दुश्मनों को खदेड़ दिया। तीसरे और आखिरी हमले में जदुनाथ सिंह सिर और सीने में दुश्मन की गोलियां लगने से वीरगति को प्राप्त हो गए। इस तरह दुश्मनों की इतनी बड़ी तादाद में भी उनका डटकर मुकाबला करने वाला भारतीय जवान दुनिया छोड़कर चला गया।
साभार- जनसत्ता से