ऐसा व्यक्ति शायद ही कोई मिले जिसे जीवन में किसी भी प्रकार के कष्ट नहीं झेलने पड़े हों। कुछ पाकर खो देने का डर, कुछ न पा सकने का भय, जिन्दगी के पटरी से उतर जाने की चिन्ता- जिन्दगी इन्हीं छोटी-छोटी चिन्ताओं और ऐसे छोटे-छोटे डरों से घिरी रहती है। एक नहीं, अनेकों के जीवन में ऐसे अवसर आते हैं जब वे टूट जाते हैं। लेकिन जिस वक्त हम ठान लेते है कुछ नया करना है, तभी जन्म लेता है साहस। ऐसे बहुत से साहसिक व्यक्तित्व हैं जिन्होंने दुखों को सहा, अभावों को जिया लेकिन हिम्मत नहीं हारी, आशा नहीं त्यागी और वे न केवल जिन्दा रहे अपितु एक शानदार, सार्थक जिन्दगी जी गये। सब अच्छा होगा, यह सोच लेने से ही सब ठीक नहीं हो जाता। ना ही बुरा सोचते रहने से ही सब बुरा हो जाता है। सोच का असर पड़ता है, पर अंत में जो बात मायने रखती है वो यह कि आप करते क्या हैं? क्या होना चाहते हैं? क्या पाना चाहते हैं? लेखक विलियम आर्थर वार्ड कहते हैं, ‘निराशावादी हवा की गति की शिकायत करता है।
आशावादी उसके बदलने की उम्मीद रखता है, लेकिन यथार्थवादी हवा के साथ नाव का तालमेल बिठाता है।’
दुख और सुख तो जीवन से इस प्रकार जुड़े हैं जैसे कि सूरज का उगना और अस्त होना। और जो इस सत्य को नहीं स्वीकारते हैं वे सही सोचते हैं कि दुख केवल उनके ही हिस्से में आया है। यदि हम चारों ओर देखें तो इतने सारे लोग दुखी हैं कि उस पर गौर करें तो आपका दुख दुख नहीं रह जायगा। एक चीनी कहावत है, ‘‘मुझे अपने पास जूते न होने का अफसोस तभी तक ही था जब तक कि मैंने एक ऐसे व्यक्ति को नहीं देख लिया जिसके कि पांव ही नहीं थे।’’ वस्तुतः हमारे पास ऐसा बहुत कुछ है जो अनेकों के पास नहीं है, लेकिन हम हमारी कमी, हमारे कष्ट में इतना खो जाते हैं कि जो है उसको नहीं देख पाते और जो नहीं है या खो गया है उसी का रोना रोते रहते हैं। कोई दिन होता है, जब कुछ अच्छा नहीं होता। गलतियों पर गलतियां होती चली जाती हैं। रात में आराम के वक्त भी दिन भर का तनाव और हड़बड़ी पीछा नहीं छोड़ते। जरूरत होती है हमें उस बुरे दिन को भूलने की, पर हम नहीं कर पाते। हम आने वाले दिन के लिए भी शंकाओं से घिर जाते हैं। लेखिका एल. एम मॉन्टगोमेरी लिखती हैं, ‘क्या यह सोचना बेहतर नहीं है कि आने वाला कल, एक नया दिन है, जिसमें फिलहाल कोई गलती नहीं हुई है।’
जीवन को वही जी सकता है, वही इसका उपभोग कर सकता है जो संघर्ष के लिये तत्पर हो, जिसमें साहस और दृढ़ता हो। संकट और मुसीबतें तो आयेंगी, उन्हें कोई नहीं रोक सकता, हां हम उनका मुकाबला अवश्य कर सकते हैं। यह सामना करना ही तो जीवन को जीना है। जर्मन विद्वान गेटे ने इसीलिए कहा था-तुम जो भी करना या सपना लेना चाहते हो, उसे आरंभ करो। साहस में प्रतिभा, शक्ति व जादू है। आरंभ करो, काम पूरा हो जाएगा। द्वितीय महायुद्ध में हीरोशिमा और नागासाकी नगरों पर आणविक बमों की बौछार से बरबाद हुई अर्थ व्यवस्था से उबरकर पुनः सक्षम एवं उन्नत राष्ट्र बनकर जापान ने बता दिया कि वह सकारात्मक सोच और आशावादी चिन्तन का धनी है। सचमुच साहस एवं कुछ नया करने की जिजीविषा ही है जो हमें मंजिलों तक ले जाती है। कोई भी संकल्प बिना हौसले के पूरा नहीं होता। पत्थरों को आपस में रगड़ते हुए इंसान चिनगारियों से डरा होता तो आग न पैदा होती। बुद्ध ने घर छोड़ने का साहस न दिखाया होता या महावीर राजमहलों के सुखों में ही खोये रहते तो हम अज्ञान से ही घिरे रहते। अंग्रेजों से टकराने की हिम्मत थी, तभी हमें आजादी मिली। जिन्दगी के हर लम्हें में, हर मोड़ पर, हर जर्रे में साहस, हिम्मत और कुछ नया करने का जज्बा जरूरी है। हिम्मत और साहस ऐसे नायाब गुण है, जिनके जरिये हर राह आसान होती है, हर सफर तय करना मुमकिन होता है।
श्रीराम भक्त हनुमान का व्यक्तित्व कड़ी से कड़ी चुनौतियों का आत्म-विश्वास के साथ सामना करने व उन पर विजय पाने का प्रतीक है। सीता की खोज में लंका जाने के लिये सौ योजन अथवा चार सौ कोस लम्बे समुद्र को लांघने का प्रश्न उठने पर सम्पूर्ण वानर सेना में चुप्पी छा जाने पर जामवन्त ने हनुमान का आत्मविश्वास जगाया, उनके साहस और हिम्मत को ललकारा। तब एकाएक हनुमान में साहस जागा, तब हनुमान की क्रियाशीलता देखिये। इतनी लम्बी दूरी के समुद्र को लांघते देख मेनाक पर्वत ने समुद्र के बीच से ऊपर उठकर राम-दूत हनुमान से तनिक विश्राम करने का अनुरोध किया, किन्तु हनुमान ने इस रूप में यह अनुरोध ठुकरा दिया- हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम। राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम।।
अविराम गति से समुद्र लांघकर सुरसा, लंकिनी आदि की बाधाओं को पार कर, रावण के योद्धाओं से संग्रामकर, रावण के पूंछ जला देने पर सारी लंका जलाकर सीताजी से मिलकर हनुमानजी ने सफल अभियान किया था।
अमेरीका के राष्ट्रपति रहे जिमी कार्टर एक मंूगफली बेचने वाले पिता के पुत्र थे और युवावस्था में अमेरीकी सैनिक अकादमी से प्रशिक्षण पाकर नियुक्ति हेतु साक्षात्कार बोर्ड के समक्ष उपस्थित हुए तो उनसे पूछा गया कि अपने सहपाठियों में मेरिट में उनका कौन-सा स्थान था। कार्टर 900 साथी प्रशिक्षणार्थियों की कक्षा में 53 वें उच्च स्थान पर थे, यानी 847 विद्यार्थी उनसे कम श्रेष्ठ व जूनियर थे, अतः वे गर्व से बोले कि 53वें उच्च स्थान पर थे। लेकिन बोर्ड के मानद सदस्य ने तपाक से उनसे प्रश्न किया-अव्वल या श्रेष्ठतम क्यों नहीं? और अपनी घुमावदार कुर्सी को घुमाकर उनके सामने से अपना चेहरा हटा लिया। जिमी कार्टर को इस घटना से सबक मिला और आशावादी बनकर सकारात्मक सोच, साहस एवं कठिन परिश्रम के बल पर हर क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करने का निश्चय किया। तथा अन्ततः अमेरीका के प्रथम नागरिक और राष्ट्राध्यक्ष बने। पश्चिमी एशिया शांति प्रयास के लिये नोबल पुरस्कार से भी नवाजे गये। कहने का तात्पर्य यही है कि हमें व्यक्तित्व निर्माण और जीवन में सफलता के लिये आशावादी, सकारात्मक सोच, साहस, हिम्मत और निरंतर श्रमशील रहने की आवश्यकता है।
हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका की संरचना ही ऐसी है कि वह जीवित रहने के लिये संघर्ष करती रहे। हमारा शरीर हमेशा संघर्ष को तैयार रहता है, यह उसकी स्वाभाविक प्रक्रिया है लेकिन मन की निर्बलता उसे कमजोर बना देती है। जीवन एक ऐसा दीपक है जिसका उद्देश्य ही प्रकाश बिखेरना है, जीवन एक वरदान है, एक उपहार है, इसको आनंद के साथ, साहस के साथ जीना ही श्रेयस्कर है। हमारा परिवेश हमारी कामयाबी पर असर डालता है। पर यही सब कुछ नहीं होता। इतिहास ऐसे लोगों की सफलता से भरा है, जिन्होंने अभावों से निकलकर बुलंदियों को छुआ है। घाना के लेखक इजरायलमोर अइवोर कहते हैं, ‘पेंसिल के आसपास क्या है, इससे कहीं अधिक मायने हैं, जो उसके भीतर है। हमारी योग्यता हमारे आसपास से कहीं अधिक होती है। उसी से परिवेश बदलता है।’
अपराध, शोक, असफलता, अभाव के बावजूद भी हमें जीवन से प्यार होता है, हम जीना चाहते हैं, हम मरना नहीं चाहते, हम गहरी काली रात को भी सहन करते हैं कि क्योंकि हम जानते हैं कि सुबह अवश्य होगी। आशा हमें संकटों से जुझने एवं संघर्षशील होने की शक्ति देती है। अतः जीवन को जीने हेतु आशा में आस्था अपरिहार्य है। चेतना एवं नई प्रेरणा सहित स्वयं में आस्था के साथ आगे बढ़ें सभी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुये तो निश्चय ही आप अच्छा अनुभव करेंगे। और यही तो है जीवन को जीने की राह, जीवन को जीने का मर्म।
(ललित गर्ग)
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