आदरणीय श्री प्रकाश जावड़ेकर जी
मानव संसाधन विकास मंत्री, भारत सरकार
सी विंग- शास्त्री भवन, नई दिल्ली-110001
विषय: नई शिक्षा नीति 2016 और शिक्षा के माध्यम के सम्बन्ध में सुझाव।
महोदय,
आपके ध्यान में लाया जाता है कि नई शिक्षा नीति के बनाने से सम्बधित मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ‘वेबसाइट’ पर जो 33 मुद्दे/ विषय दिए गए हैं, उनमें नई शिक्षा नीति के अंतर्गत शिक्षा के माध्यम (मीडियम ऑफ़ इंस्ट्रक्शन) के बारे में कोई बिन्दु नहीं दिया गया है। इस महत्वपूर्ण विषय को उन 33 विषयों में शामिल न करके इसके महत्व को नकारा गया है। यही कारण है कि टी.एस.आर. सुब्रमण्यन की अध्यक्ष्ता में गठित समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में शिक्षा के माध्यम के रूप में हिन्दी और भारतीय भाषाओं का क्या स्थान होगा, पर सम्यक प्रकाश नहीं डाला है, बल्कि उसमें अंग्रेजी माध्यम और अंग्रेजी की शिक्षा की अच्छी-खासी वकालत की गई है तथा उसे विश्वभाषा कहकर महिमा-मंडित किया गया है,जबकी वह साढ़े चार देशों (इंग्लैण्ड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलेन्ड और आधा कनाडा) की भाषा है।
1. जिस तरह शिक्षा का मानव के विकास में महत्वपूर्ण स्थान होता है, उसी तरह शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा (स्वभाषा) का होता है। अभी तक जितने भी शिक्षा आयोग और समितियां बनाई गई हैं, उन सबने सभी प्रकार की शिक्षा (उच्च और तकनीकी शिक्षा सहित) मातृभाषा में अर्थात हिन्दी और भारतीय भाषाओं में दिए जाने पर जोर दिया है।
2. जैसा कि सर्वविदित है कि विश्व के सर्वाधिक धनी और विकसित 20 देशों की प्रगति का एक कारण यह भी है कि उनके यहां शिक्षा का माध्यम स्वभाषा रहा है और जो 20 देश विकास की दौड़ में पिछड़े हैं तथा गरीब हैं, उनके यहां शिक्षा का माध्यम स्वभाषा न होकर कोई विदेशी भाषा रही है।
3. शिक्षा दो तरह (अमीरों की अलग और गरीबों की अलग) की न होकर, एक समान होनी चाहिए जैसीकि हमारी प्राचीन शिक्षा व्यवस्था (गुरूकुल प्रणाली के अन्तर्गत) थी और तब उसका माध्यम भी विदेशी भाषा न होकर स्वभाषा (देश की भाषाएं) थी, जो आज भी होनी चाहिए। यदि हम देश में समतामूलक समाज की स्थापना चाहते हैं, तो ऐसा किया जाना निहायत जरूरी है। 5. मंत्रालय की ‘वेबसाइट’ पर नई शिक्षा नीति सम्बंधी विषयों बिन्दुओं में शिक्षा का माध्यम क्या हो, विदेशी भाषा या स्वभाषा’ एक बिन्दु शीध्र शामिल कर प्रचारित किया जाए और इस पर शैक्षिक संस्थाओं, शिक्षाविदों और आम जनता से सुझाव मंगवायें जाएं। पुरानी शिक्षा नीति की तरह, शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी को न बनाकर, हिन्दी और भारतीय भाषाओं को बनाया जाए। विदेशी भाषा में दी गई शिक्षा, युवाओं को न केवल स्वभाषा, स्व संस्कृति से दूर करती है, बल्कि उन्हें भारतीय संस्कृति की जड़ों से भी अलग करने का कार्य करती है।
नई शिक्षा नीति एवं उसके माध्यम के संबंध में सुझाव
1. प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम – जैसा कि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद, नई दिल्ली और संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपना मत व्यक्त किया है कि बच्चों के सर्वांगीण एवं पूर्ण मानसिक विकास के लिए सामान्यतः सभी के.जी. कक्षाओं सहित प्राथमिक विद्यालयों में केवल मातृभाषा भाषा के माध्यम से शिक्षा दी जाय, किसी विदेशी भाषा के माध्यम से नहीं। अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूलों में भी पहली से दसवीं कक्षा तक संघ की राजभाषा एवं संबन्धित राज्य की प्रादेशिक भाषा एक विषय के रूप में अवश्य पढ़ाई जानी चाहिए।(अनुलग्नक देखें)
2. पूर्व माध्यमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम – प्राथमिक विद्यालयों की तरह ही पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में भी मातृभाषा/ प्रादेशिक भाषा के माध्यम से शिक्षा दी जाय तथा अंग्रेजी को एक ऐच्छिक विषय के रूप में कक्षा-6 से पढ़ाया जाए, इससे पूर्व नहीं।
हिन्दीतर भाषी क्षेत्रों में मातृभाषा / प्रादेशिक भाषा के माध्यम से शिक्षा शिक्षा दी जाय तथा दूसरी भाषा के रूप में हिन्दी भाषा, अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाई जाय, क्योंकि यह भारत संघ की राजभाषा और देश की संपर्क भाषा है।
3. माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम – हिन्दी भाषी क्षेत्रों तथा हिन्दीतर भाषी क्षेत्रों दोनो में शिक्षा का माध्यम हिन्दी / प्रादेशिक भाषा हो। कक्षा 11 और 12 में सभी धाराओं/संकायों(कला, विज्ञान एवं वाणिज्य) में हिन्दी और प्रादेशिक भाषा में से कोई एक भाषा अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाई जाए और तीसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी को एक ऐच्छिक विषय के रूप में पढ़ाया जाय।
4. वर्तमान दोहरी शिक्षा व्यवस्था (भारतीय भाषाओं के माध्यम वाली और अंग्रेजी माध्यम वाली) का अंत किया जाए तथा गरीब, अमीर तथा वंचित वर्ग सहित सभी के लिए एक समान शिक्षा की व्यवस्था हो, ताकि भारतीय समाज का एकीकरण हो। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था देश/समाज को दो भागों “भारत” और “इंडिया” के रुप में विभाजित कर रही है। शिक्षा महंगी न होकर आम जन की पहुंच के भीतर हो इसके लिए शिक्षा का सरकारी बजट बढ़ाकर शासकीय विद्यालयों में भी निजी पब्लिक स्कूलों के समकक्ष गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मातृभाषाओं में प्रदान की जाए, सारे देश में या कम से कम राज्य में शुल्क का ढांचा शिक्षा के विषय और पाठ्यक्रम आदि में एकरूपता हो।
5. त्रिभाषा -सूत्र के अन्तर्गत हिन्दीतर भाषी राज्यों में हिन्दी को कक्षा 9 से 12वीं तक, एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाए तथा इसी तरह हिन्दी भाषी प्रदेशों में तीसरी भाषा के रूप में दक्षिण भारत की कोई एक भाषा पढ़ायी जाए।
6. संस्कृत सारे देश में कक्षा-6 से 10वीं तक एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ायी जाए तथा कक्षा 11-12 में ऐच्छिक विषय के रूप में पढ़ाने की व्यवस्था हो।
7. तकनीकी व उच्च शिक्षा का माध्यम – तकनीकी एवं उच्च शिक्षा अर्थात सूचना प्रौद्योगिकी, कृषि, चिकित्सा, प्रबंधन, इंजीनियरी, विधि तथा विज्ञान आदि की शिक्षा का माध्यम हिन्दी और प्रादेशिक भाषाएं हों ताकि देश की करोड़ों प्रतिभाएँ उभर कर आ सकें, अंग्रेजी के कारण वे घुटकर न रह जाएँ। आज देश में लाखों वैज्ञानिक और डॉक्टर तैयार हो सकते हैं पर विज्ञान, अभियांत्रिकी और चिकित्सा की पढ़ाई सिर्फ अंग्रेजी में होने के कारण लाखों प्रतिभाशाली विद्यार्थी इस दौड़ से बाहर हो जाते हैं, उनके सपने मार दिए जाते हैं. हिन्दी तथा प्रादेशिक भाषाओं के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करने वालों को सरकारी नौकरियों में कुछ विशेष अंक देकर प्राथमिकता/वरीयता दी जाए। सरकार को चाहिए कि अंग्रेजी के ज्ञान पर ध्यान देने के बदले प्रतिभाओं को निखारने पर ध्यान दे और अंग्रेजी भाषा की बेड़ियों से भारतीय शिक्षा को मुक्त करने का कदम उठाए। भारत में जिस दिन नौकरी और शिक्षा में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त होगी, उसके अगले कुछ ही सालों में भारत विश्व के शीर्ष देशों में शामिल हो जाएगा क्योंकि तब देश के प्रतिभाशाली विद्यार्थी अंग्रेजी रटने में अपनी प्रतिभा खर्च नहीं करेंगे, बल्कि नवाचारों की कतारें लगा देंगे।
8. कंप्यूटर ज्ञान: सभी विद्यार्थियों को प्रारंभिक स्तर से जब से उन्हें कंप्यूटर की शिक्षा दी जाती है, उन्हें कंप्यूटर/मोबाइल आदि का भारतीय भाषाओं (मातृभाषा) में प्रयोग करना सिखाया जाए, उन्हें भारतीय भाषा (मातृभाषा/प्रादेशिक भाषा) में इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर टाइपिंग का प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाए। देश में संचालित कंप्यूटर पाठ्यक्रमों में भारतीय भाषा (मातृभाषा/प्रादेशिक भाषा) में इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड के प्रशिक्षण को अनिवार्य किया जाए ताकि विद्यार्थी भारत के पुरातन ज्ञान को इंटरनेट पर संरक्षित कर सकें, उसे आगे बढ़ा सकें. इससे इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं का प्रयोग भी बढ़ेगा और अधिक से अधिक भारतवासी अंग्रेजी की बाधा को पार करते हुए कंप्यूटर का इस्तेमाल कर सकेंगे। उन्हें कंप्यूटर का इस्तेमाल करने के लिए अंग्रेजी का मोहताज नहीं होना पड़ेगा।
कृपया, इस संबंध में गंभीरता से विचार करें और उचित निर्णय लेकर नई शिक्षा नीति में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने का मार्ग प्रशस्त करें। हमें साक्ष्य अथवा चर्चा के लिए बुलाया जाए तो हम आपके आभारी होगें।
शीघ्र पत्रोत्तर की आशा में,
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भवदीय,
प्रवीण कुमार जैन (एमकॉम, एफसीएस, एलएलबी),
कम्पनी सचिव, वाशी, नवी मुम्बई – ४००७०३.
Regards,
Praveen Kumar Jain (M.Com, FCS, LLB),
Company Secretary, Vashi, Navi Mumbai – 400703.