श्रध्दांजलि
संस्मरणः बालकवि बैरागी: वे कवियों में राजनीतिज्ञ और राजनेताओं में कवि थे
सरोज कुमार
इंदौर। वे कवियों में राजनीतिज्ञ और राजनेताओं के बीच कवि के रूप में माने जाते थे। अपने 70 साल के राजनीतिक जीवन में उन्होंने कभी पार्टी नहीं बदली। वे अपनी पार्टी के नेता नहीं, समर्पित कार्यकर्ता बने रहे। उनकी कविताओं से कभी किसी को ये आभास नहीं हो सकता कि ये राजनीति में सक्रिय किसी कवि की कविताएं हैं। वे कहते थे, जब मैं साहित्य में प्रवेश करता हूं, तब राजनीति को जूते की तरह बाहर उतार आता हूं।
मेरा उनसे 60 साल का निकट का संबंध रहा। रविवार दोपहर उन्होंने नीमच में पेट्रोल पंप का उद्घाटन किया, खाना खाया और वहां से मनासा पहुंचकर आवास पर आराम के लिए ऐसे सोए कि फिर उठ नहीं पाए। बालकवि ने मालवी कविताओं से लिखना प्रारंभ किया। वे मालवी के प्रसिध्द कवि गिरिवरसिंह भंवर को अपना गुरु मानते थे। मालवी में श्रृंगार रस पर लिखी उनकी कविताएं खूब सुनी जाती थीं। ‘पनिहारिन’ उनकी एक कालजयी मालवी रचना रही। मालवी गीतों का उनका संग्रह ‘चटक म्हारा चंपा’ काफी पढ़ा जाता था। मालवी से धीरे-धीरे वे हिंदी में कविताएं लिखने लगे। हिंदी में आकर मालवी वाला उनका श्रृंगार रस पीछे रह गया और उनकी कविताओं में ओजस्वी स्वर प्रकट हुआ। किशोरावस्था तक उनका मूल नाम नंदरामदास बैरागी था। उनके गीत सुन-सुनकर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू ने उनका नाम बालकवि बैरागी में बदल दिया। इंदौर में वे कई आयोजनों में आए। मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के वे अंत तक उपाध्यक्ष रहे। उनके अनेक कविता संग्रह प्रकाशित होते रहे, लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम है कि वे कथाकार भी थे। उनके तीन कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए और उन्होंने एक उपन्यास ‘सरपंच’ भी लिखा। बच्चों के लिए खूब गीत लिखे जो ‘आओ बच्चों-गाओ बच्चों’ संग्रह में संकलित हैं। उनके कविता संग्रह दरद दीवानी, जूझ रहा है हिन्दुस्तान, ललकार, भावी रक्षक देश के, दो टूक आदि चर्चा में रहे। उनका इस तरह चला जाना अविस्मरणीय और नाटकीय लगता है।
साभार- https://naidunia.jagran.com से
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