राजनेताओं द्वारा सोशल मीडिया में और ऑनलाइन प्रचार के लिए पब्लिक रिलेशन कंपनियों का इस्तेमाल कोई नई बात नहीं है और यह भी अक्सर सुनने में आता है कि कई कंपनियाँ अपने ग्राहक को अधिक लोकप्रिय दिखने के लिए फ़र्ज़ी तौर-तरीक़े अपनाती हैं. कोबरा पोस्ट के खुलासे के बाद ऐसी चर्चाओं को अब ठोस आधार भी मिल गया है. नई तकनीक के आने के पहले नेताओं की लोकप्रियता का पैमाना या तो चुनाव हुआ करता था या कुछ पत्रिकाएँ/चैनल सर्वेक्षण द्वारा बताते थे कि कौन कितने पानी में है. सोशल मीडिया और ऑनलाइन के कारण अब यह हर दिन का मामला बन गया है. संयोग से, कोबरा पोस्ट का यह ‘खुलासा’ उसी समय आया है जब दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम अपने चर्चित ‘वर्ष का व्यक्ति’ चुनने की प्रक्रिया में है. अंतिम चयन तो पत्रिका के सम्पादकों द्वारा ही किया जाता है और उस प्रक्रिया में ऑनलाइन मतदान का कोई मतलब नहीं होता है लेकिन 1998 से शुरू इस मत-प्रक्रिया ने एक ख़ास मुक़ाम बना लिया है और हर बार मत-प्रक्रिया के दौरान के उतार-चढ़ाव और अंत में सबसे अधिक मत पाये हुए लोगों को लेकर चर्चा होती रहती है. हमारे समय की हर चर्चा की तरह इसमें भी विवादों का बड़ा हिस्सा होता है और वे अक्सर आधारहीन भी नहीं होती हैं.
नरेंद्र मोदी
टाइम के इस चुनाव-प्रक्रिया में जो अंतिम नाम चुने गए हैं, उनमें गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा की ओर से 2014 में होने वाले चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उमीदवार भी हैं. मोदी का नाम आने से इस मत-प्रक्रिया में भारतीय मीडिया की दिलचस्पी स्वाभाविक भी है. इसी पत्रिका द्वारा निकाले जाने वाली वार्षिक सूची विश्व के 100 सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति की 2012 की सूची में नरेंद्र मोदी का नाम शामिल हुआ था किन्तु उसके ऑनलाइन मतदान में लम्बे समय तक पहले स्थान पर बने रहने के बावज़ूद कंप्यूटर हैकर-कार्यकर्ताओं के अंतरार्ष्ट्रीय समूह एनॉनमस ने आख़िरी कुछ घंटों में तेज़ी से बढ़त बनाते हुए भारी अंतर से पहला स्थान हथिया लिया था. तब कॉंग्रेस पार्टी ने यह आरोप लगाया था कि मोदी के समर्थन में बड़े सुनियोजित और प्रायोजित ढंग से मतदान कराया जा रहा है. उधर मोदी के पिछड़ने के बाद उनके समर्थकों ने टाइम पत्रिका से चेंज डॉट ऑर्ग पर जारी ऑनलाइन याचिका के तहत यह मांग की थी कि एनॉनमस की बढ़त को खारिज़ कर दिया जाये क्योंकि उस समूह ने इस प्रक्रिया में तकनीकी घपला किया था जो अनैतिक है. उस याचिका में यह भी कहा गया था कि मोदी के विरोध में मत देने की घृणापूर्ण अपील भी की गई थी. याचिका की एक मज़ेदार बात यह थी जिसमें याचिकाकर्ता ने कहा था कि नरेंद्र मोदी जैसे महान प्रशासक और राजनेता के लिए ऐसे ऑनलाइन मतदानों का कोई महत्व नहीं है लेकिन ‘ईमानदारी और आदर्शों’ के लिए इनमें शुचिता सुनिश्चित करना ज़रूरी है. यह भी मज़ेदार बात है कि नरेंद्र मोदी को जहाँ उस मतदान में ढाई लाख से अधिक मत मिले थे, वहीं किशोर त्रिवेदी नामक व्यक्ति द्वारा जारी इस याचिका में सिर्फ़ 470 लोगों का समर्थन ही मिल सका था. ख़ुद को मोदी-समर्थक कहने वाले एक व्यक्ति ने इंटरनेट से जुड़े मसलों की लोकप्रिय साइट मैशेबल पर दिए बयान में भी एनॉनमस पर घपले का आरोप लगाया था. इस व्यक्ति ने अपनी असली पहचान नहीं बताई थी और वह ट्विटर पर सत्यभाषणम् के नाम से सक्रिय है और उसके परिचय में दिए गए वेबसाइट पर इस्लाम-विरोधी दुष्प्रचार होता है. एनॉनमस ने अपने ऊपर लगे आरोपों को ख़ारिज़ कर दिया था. 2012
2009पिछले साल के इस टाइम 100 के बाद और कोबरा पोस्ट के ‘खुलासे’ से पहले भी नरेंद्र मोदी को लेकर ऐसा एक विवाद सामने आया था. अंग्रेज़ी अखबार द हिन्दू के एक लेख में इस साल अक्टूबर में माहिम प्रताप सिंह ने यह बताया था कि ट्विटर पर नरेंद्र मोदी के अनुयायियों की बड़ी सख्या फ़र्ज़ी है. बहरहाल, हम वापस लौटते है टाइम के ‘वर्ष का व्यक्ति’ चुनाव पर. अगर सच में नरेंद्र मोदी का प्रचार-तंत्र उन्हें इस प्रतियोगिता में शीर्ष पर पहुँचाने की क़वायद में लगा है तो उसे पिछले साल के अनुभव के कारण बार-बार एक ख़ास नाम डरा रहा होगा. मज़े की बात यह है कि यह डर सिर्फ़ मोदी-प्रचार-तंत्र को ही नहीं, बल्कि टाइम के तकनीकी टीम को भी डरा रहा होगा. इंटरनेट और सोशल मीडिया के इतिहास में चर्चित नाम तो कई हैं लेकिन इनकी किंवदंतियों के नायकों की संख्या बहुत थोड़ी है. क्रिस्टोफर पूल उन्हीं गिने-चुने लोगों में हैं. इंटरनेट की तरंगों में उनका छद्म नाम मूट गूंजता है. मोदी समर्थकों और विरोधियों के आलावा जिस किसी को भी इस पत्रिका के इस वार्षिक चुनाव में रूचि है, उसे मूट के बारे में ज़रूर जानना चाहिए. 6 दिसंबर को प्रकाशित होने वाले ऑनलाइन मतदान के परिणाम पर मूट की कोई भूमिका हो या न हो, लेकिन हर बार की तरह फिर उनका नाम ज़रूर आएगा. इंटरनेट और सोशल मीडिया और उसके पब्लिक स्फेयर में जिनकी दिलचस्पी है, उन्हें तो पूल उर्फ़ मूट को ज़रूर जानना चाहिए. मूट को जानना हमारे लिए इसलिए भी ज़रूरी है कि जहाँ इंटरनेट और सोशल मीडिया का इस्तेमाल ख़तरनाक इरादों, बेईमानी और स्वार्थ-सिद्धि के लिए किया जा रहा है, वहीं मूट जैसे नौजवान इसका इस्तेमाल बड़ी ताक़तों के विरुद्ध और इंटरनेट की व्यापक स्वतंत्रता के लिए कर रहे हैं. जब थोड़ा सा तकनीक का ज्ञान लेकर कुछ युवा बाज़ार में पैसे की हवस बुझाने के लिए खड़े हैं, वहीं पूल जैसे निपुण और मेधावी युवा अपने ज्ञान का इस्तेमाल बहुजन हिताय करने का संकल्प लेकर खड़े हैं.
क्रिस्टोफर पूल
न्यूयॉर्क निवासी क्रिस्टोफर पूल ने अपने सोने के कमरे में बैठकर 2003 में किशोरों के लिए एक वेबसाइट 4चान डॉट ऑर्ग शुरू की थी जिस पर बिना किसी पंजीकरण के और पहचान बताये तस्वीरें, चुटकुले, टिप्पणियाँ आदि का आदान-प्रदान किया जा सकता था. तब पूल की उम्र सिर्फ 15 साल थी और ऑनलाइन की दुनिया में उसे मूट के नाम से जाना जाता था. ऐसा माना जाता है कि अकेली कामकाजी माँ के साथ रहते हुए पूल ने कुछ कमाई के इरादे से यह साइट शुरू की थी. देखते-देखते यह साइट बहुत लोकप्रिय हो गया. एक और जहाँ यह साइट आम किशोरों के मनोरंजन का अड्डा बना, वहीं हैकरों और प्रयोगधर्मी किशोरों ने इसे कर्मस्थली भी बनाया जिसके निशाने पर बड़े-बड़े साइट आए. ऐसा माना जाता है कि एनॉनमस की शुरूआती प्रयोगशाला यहीं बनी और विरोधियों, बैंकों, सरकारों आदि के साइट हैक कर 4चान के उपयोगकर्ताओं ने विकिलीक्स तथा दुनिया के विभिन्न हिस्सों में चलने वाले आन्दोलनों को भी बहुत समर्थन दिया. वाशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार इंटरनेट के इतिहास के सबसे बड़े और चर्चित ऑनलाइन हमलों में से कई इसी साइट के उपयोगकर्ताओं ने अंजाम दिए. गार्डियन अखबार ने एक दफ़ा इनको ‘पागल, बचकाना, प्रतिभाशाली, बेतुका और ख़तरनाक’ कहा था. इस साइट के प्रभाव का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि 2008 में ब्राज़ील के एक बड़े पत्रकार लियोपोल्दो गोदोय ने इसे पाश्चात्य वेब संस्कृति का नाभि-केंद्र कहा था. आज इंटरनेट पर इस्तेमाल होनेवाले बहुत से शब्द, चित्र-भंगिमाएँ, स्टाईल आदि की शुरुआत इसी साइट के विभिन्न पन्नों से हुई थी. तबतक इसके कर्ता-धर्ता मूट की असली पहचान किसी को नहीं मालूम था. 9 जुलाई 2008 को वाशिंगटन पोस्ट और टाइम ने अलग-अलग रिपोर्टों में पहली बार मूट के असली नाम क्रिस्टोफर पूल के नाम से लोगों का परिचय कराया.
अगले साल यानि 2009 के शुरू में टाइम ने विश्व के सर्वाधिक प्रभावशाली लोगों की वार्षिक सूची ‘टाइम 100′ में पूल की ऑनलाइन पहचान ‘मूट’ को शामिल किया. यहाँ से मूट, और 4चान के साथ टाइम के इन दो वार्षिक सूचियों का विवादस्पद सम्बन्ध शुरू होता है जो आजतक जारी है. 4चान के उपयोगकर्ताओं ने आपस में यह निर्णय लिया और देखते-देखते मूट उस सूची में भारी मतों के अंतर से पहले स्थान पर जा पहुँचा. इतना ही नहीं, इनलोगों ने सामूहिक कारवाई करते हुए अगले बीस स्थान भी अपनी मर्जी से निर्धारित कर दिए. इसी तरह 2012 के ‘टाइम 100′ के मतदान में नरेंद्र मोदी की लगातार बढ़त को लांघते हुए एनॉनमस ने भारी अंतर से पहला स्थान ले लिया था. यह करामात बस चंद घंटों में कर दिखाया गया था. 2012 के ‘वर्ष का व्यक्ति’ के मतदान में हैकरों ने मज़ा लेते हुए उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग उन को पहले स्थान पर ला दिया और साथ ही अगले 13 स्थान भी अपने हिसाब से निर्धारित कर दिया. कुछ रिपोर्टों में इस साल के अभी चल रहे मतदान में मिली साइरस की बढ़त के पीछे भी इनका हाथ माना जा रहा है लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि साइरस पूरे साल भर चर्चा में रही हैं जिसका लाभ उन्हें मिल सकता है.
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक तुर्की के प्रधानमंत्री एर्दोआं दूसरे और मिस्र के फ़ौज़ी कौंसिल के मुखिया फ़तह अल-सिसी तीसरे स्थान पर हैं. नरेंद्र मोदी पहले स्थान से लुढ़कते-लुढ़कते तीन दिन में चौथे स्थान पर आ गए हैं. जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि अंतिम चुनाव पत्रिका के सम्पादकों द्वारा होता है और उसमें इस मतदान प्रक्रिया का कोई मतलब नहीं होता. लेकिन अगर इसमें मोदी पहले स्थान पर आ जाते हैं तो आगामी चुनावों को देखते हुए प्रचार महिमा से आक्रांत मोदी-समर्थकों के लिए बड़ी बात होगी. वैसे सम्पादकों द्वारा मोदी को चुने जाने की सम्भावना न के बराबर है. मेरे हिसाब से ईरान के नए राष्ट्रपति हसन रूहानी के ‘वर्ष का व्यक्ति’ चुने जाने की प्रबल सम्भावना है.