आज का युग वास्तव में विज्ञापन का ही युग है।विज्ञापन की अवधारणा बिलकुल नई अवधारणा है भले ही विज्ञापन का परम्परागत अर्थ -जानने के लिए प्रेरित करना ही क्यों न हो।आज का यह विज्ञापन युग अपनी लोकप्रियता विश्व बाजार से लेकर भारतीय बाजार के सभी आयामों में स्पष्ट रुप से बना चुकी है। आज की वह अमिट पहचान बन चुकी है। पहले सभी संस्कारों में इसकी उपयोगिता छोटे आकार में देखी जाती थी। पहले विवाह-शादी में घर का पूजा करानेवाला ब्राह्मण तथा गांव का नाई(हजाम) गांव-गांव तथा घर-घर में जाकर विवाह-शादी का निमंत्रण देता था। भोज की खबरें देता था। उसके उपरांत विवाह-शादी का कार्ड छपने लगा। धीरे-धीरे कार्ड को लिफाफे में डालकर भेजा जाने लगा। लोग लिफाफा को देखकर तथा उसके ऊपर लिखे आलंकारिक शब्दों को पढकर ही शादी-विवाह में जाने का निश्चय कर लेते थे जिसपर लिखा रहता था-भेंज रहा हूं नेह-निमंत्रण प्रियवर तुम्हें बुलाने को,हे मानस के राजहंस तुम भुल न जाना आने को।उन दिनों गोनु झा के किस्से बहुत प्रचलित थे।
एकबार गोनु झा अपने मिर्च के खेत में काम कर रहे थे। मिर्च की फसल पूरी तरह से तैयार था। उनसे मिलने के लिए एक व्यक्ति खेत को रौंदते हुए आया और अपनी धोती के छोर से एक निमंत्रण निकालकर उन्हें दिया जिसमें लिखा था कि कल शाम को गोनु झा को एक भोज में जाना था। उन्होंने अपने चेहरे पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए यह कहा कि मिर्च का खेत भले ही बर्वाद हुआ पर भोज का निमंत्रण तो मिला।इससे यह पता चलता है कि पुराने विज्ञापन के माध्यम खत का भी कभी विशेष महत्त्व होता था।आज तो ईकार्ड का प्रचलन हो गया है।आज के विवाह-शादी,जनेऊ,तिलक,समस्त पर्व-त्यौहार जैसेःहोली-दीवाली,दशहरा,जन्मदिन,समस्त धार्मिक आयोजन तथा समस्त मौलिक आवश्यकताओं जैसेःभोजन,वस्त्र,आवास तथा मनोरंजन से लेकर सबकुछ ई-कार्ड से भेजे जा रहे हैं।
एकबात सच है कि भारत के महामहिम राष्ट्रपति तथा भारत के सभी प्रदेशों के मान्यवर राज्यपालों का ऐटहोम निमंत्रणपत्र आदि अवश्य छपता है। वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमणकाल ने तो लगभग दो वर्षों तक विज्ञापन जगत को ध्वस्तप्राय कर दिया था।लेकिन अब धीरे-धीरे विज्ञापन जगत नित्य उन्नति कर रहा है।आज का विज्ञापन जगत तथा आज का विज्ञापन युग पूरी तरह से कामनाओं के उपभोग से कामनाओं की शांति नहीं होती-पर ही आधारित है।यह कहना गलत नहीं होगा कि आज का विज्ञापन जगत तथा आज का विज्ञापन युग एक वास्विक विचारधारा बनकर कार्य कर रहा है।भारतीय राजनीति में केन्द्र सरकार से लेकर सभी राज्य सरकारें पूरी तरह से विज्ञापन को अपनाये हुए है।
आज का सोशल मीडिया तो इससे सबसे अधिक प्रभावित है।वर्तमान सूचना प्रौद्य़ोगिकी का युग तो वैश्वीकृत बन चुका है जिसे ग्लोबल विलेज कहा जाता है जिसमें विज्ञापन को विज्ञान और कला दोनों माना गया है। अध्ययन करने पर पता चला कि विज्ञापन का आरंभ 550 ईसा पूर्व से है।समाचारपत्रों में विज्ञापन की शुरुआत 17वीं सदी से इंग्लैण्ड के साप्ताहिक समाचारपत्रों से हुई जिसमें पुस्तकों तथा दवाइयों का विज्ञापन प्रकाशित होता था।फ्रांस में 1836 में समाचारपत्रःलॉ प्रेस ने पहली बार भुगतान को लेकर विज्ञापन छापा। अमरीका में इसकी शुरुआत मेल विज्ञापन के रुप में हुआ। अमरीका का पहला विज्ञापन एजेंसी 1841 में बोस्टन में खुली जिसका नाम था-वालनी पाल्मर।20वीं सदी के दूसरे दशक में रेडियो का प्रसारण आरंभ हुआ जो बिना विज्ञापन के आरंभ हुआ।लेकिन जैसे-जैसे रेडियो की लोकप्रितया बढी तो उनमें विज्ञापन का आरंभ प्रायोजित कार्यक्रम के रुप में हुआ।कालांतर में 1950 के दशक में टेलीविजन पर छोटे-छोटे टाइम स्लॉट पर विज्ञापन आने लगा।
1960 के दशक में विज्ञापन जगत में क्रांतिकारी बदलाव आया।पहली जुलाई,1941 में पहला टेलीविजन विज्ञापन अमरीका में सांस्कृतिक सामंजस्य के एक साधन के रुप में टेलीकास्ट हुआ।भारत में 30मई,1826 में हिन्दी का पहला समाचारपत्र उदन्त मार्तण्ड कोलकाता से प्रकाशित हुआ जिसमें छपनेवाले विज्ञापन वर्गीकृत तथा घोषणाओं के साथ-साथ विदेशी वस्तुओं की हुईं।1860 के दशक में मद्रास(आज का चेन्नई) में दी जेनेरल ऐडवरटाइजर एण्ड जर्नल ऑफ कॉमर्स नामक चार पृष्ठों का एक समाचारपत्र प्रकाशित हुआ जिसमें कुल चार पृष्ठ विज्ञापन का रहा।भारत में विज्ञापन को आगे बढाने में भारतीय फिल्मजगत का भी बेजोड देन है। भारतीय सिनेमा के जन्मदाता दादा साहेब फाल्के ने 1913 में अपनी पहली मूक फिल्म राजा हरिश्चन्द्र का निर्माण किया।1920 से विज्ञापन जगत आधुनिकता में प्रवेश कर गया है। आधुनिक विज्ञापन ने वर्षः2023 में तो पाश्चात्य के चकाचौंध को अपने प्रचार का मुख्य केन्द्र बनाकर लाइफ स्टाइल,फैशन,डिजाइन तथा सभी प्रकार के मनोरंजन आदि जैसे समस्त संसाधनों को खूब बढावा दे रहा है और अपनी विश्वव्यापी लोकप्रियता में चारचांद लगा रहा है।
(लेखक राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त हैं तथा सामाजिक, सांस्कृतिक व साहित्यिक विषयों पर निरंतर लेखन करते हैं)