नई दिल्ली। 5वीं राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं नवोन्मेषण नीति के मसौदे को सुदृढ़ करने के द्वारा विचारों को समृद्ध बनाने के लिए एक प्रारूप-पश्चात परामर्श प्रक्रिया आरंभ हुई जिसमें कुछ शीर्ष विशेषज्ञों तथा विभिन्न विषयों के विचारकों ने भाग लिया।
भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर के. विजयराघवन ने 23 जनवरी, 2021 वेबिनार के माध्यम से आयोजित परामर्श में कहा “पिछले कुछ वर्षों में प्रौद्योगिकी में बेशुमार बदलाव के साथ डिजिटल क्रांति हुई है। इस परिवर्तन का कारण बताते हुए, हमें संस्कृति की मजबूत जड़ों से जुड़े रहने की आवश्यकता है। इस दिशा में एक कदम भाषा प्रयोगशालाओं का सुदृढ़ीकरण है। इसके अतिरिक्त, बड़े स्तर पर अध्ययन के लिए एसटीआई हेतु व्यावहारिक कार्यान्वयन महत्वपूर्ण है। इस नीतिगत दस्तावेज का उद्देश्य देश के भविष्य को आकार देने के लिए प्रत्येक चीज पर ध्यान रखना है। उन्होंने अंतिम दस्तावेज़ में नीति प्रक्रिया संरचना दस्तावेज़ और कार्यान्वयन रणनीति सन्निहित करने की आवश्यकता पर बल दिया।
डीएसटी के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा, ‘भविष्य के लिए तैयार होने के लिए राज्यों को केन्द्र के साथ जुड़ने तथा विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवोन्मेषण का उपयोग करने की आवश्यकता है। इसी के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय जुड़ाव तथा वैज्ञानिक कूटनीति पर भी समान रूप से ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।‘ उन्होंने कहा कि भारत में “हम सृजित ज्ञान पर फोकस करते हैं, लेकिन हमें नवोन्मेषण लाने के लिए उन्हें समुचित रूप से काम में लाना-नवोन्मेषण को ज्ञान से जोड़ना आवश्यक है।’’
डीएसटी के सलाहकार तथा एसटीआईपी सचिवालय के प्रमुख डॉ. अखिलेश गुप्ता ने कहा कि “परामर्श के 300 दौर हो चुके हैं। पहली बार, हमने राज्यों, संबंधित मंत्रालयों और भारतीय प्रवासियों से परामर्श किया है। इस प्रकार के परामर्श दस्तावेज को और अधिक समावेशी बनाएंगे।‘’
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पूर्व सदस्य, महासागर विकास विभाग के सचिव और दुनिया के विख्यात भूकंप विज्ञानी डॉ. हर्ष गुप्ता ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी में निवेश बढ़ाने हेतु श्रमबल और वित्तीय योजना के लिए समयबद्धता के साथ एक रूपरेखा और कार्यान्वयन तंत्र की आवश्यकता पर बल दिया।
अमेरिका में हार्वर्ड केनेडी स्कूल में विज्ञान और प्रौद्योगिकी अध्ययन विशेषज्ञ प्रो शीला जैसनॉफ ने कहा कि किसी भी देश में सामाजिक विज्ञान, मानविकी तथा नीति शास्त्र की भूमिका समान रूप से महत्वपूर्ण है और नीति को इसे परिलक्षित करना चाहिए।
राज्यसभा के पूर्व महासचिव और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव श्री योगेंद्र नारायण ने पर्यवेक्षकों के प्रशिक्षण और संस्थागत सहयोग को सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।
भारतीय विज्ञान संस्थान के मानद प्रोफेसर अजय सूद ने देश में अकादमियों की भूमिका और विशेष रूप से, विज्ञान कूटनीति में उन्हें और अधिक प्रतिभागी तरीके से जोड़ने ताकि वे सक्रिय हो जाएं और अधिक सार्थक रूप से योगदान दें, पर विचार करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
अहमदाबाद के भारतीय प्रबंधन संस्थान के पूर्व प्रोफेसर तथा जमीनी स्तर के नवोन्मेषणों में दुनिया के विख्यात विशेषज्ञ प्रोफेसर अनिल गुप्ता ने कला को विज्ञान के समीप लाने के महत्व को रेखांकित किया और संस्थानों में संस्कृति की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने प्रत्येक ज्ञान प्रदाता को सम्मानित करने और दैनिक आधार पर कृषि विज्ञान केंद्र, भारतीय रेलवे और डाकघरों जैसे मौजूदा नेटवर्कों के माध्यम से आम लोगों तक पहुंचने पर जोर दिया।
विख्यात पर्यावरणविद् तथा विज्ञान और पर्यावरण केंद्र की महानिदेशक डॉ. सुनीता नारायण ने समाजगत विज्ञान की ओर बढ़ने की आवश्यकता को रेखांकित किया और कहा कि लोगों के साथ भारतीय विज्ञान की भागीदारी को और अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है जैसा कि बाढ़ के पूर्वानुमान और चक्रवात पूर्वानुमान के मामले में हुआ है।”
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज के निदेशक मकरंद आर परांजपे ने नीति में विषयों के समेकन को शामिल करने तथा देशभर में उत्कृष्टता की संस्कृति को बढ़ावा देने की आवश्यकता की चर्चा की।
सार्वजनिक नीति विज्ञान, प्रौद्योगिकी की प्रोफेसर और मिशिगन विश्वविद्यालय में पब्लिक पॉलिसी प्रोग्राम की निदेशक शोबिता पार्थसारथी ने समाज, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन बनाने की वकालत की। उन्होंने कहा “जमीनी स्तर पर नवोन्मेषण और पारंपरिक ज्ञान भारत की शक्ति है और अक्सर समस्याओं का समाधान करती है। महिलाओं ने जमीनी स्तर के अधिकांश नवोन्मेषणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और उनकी भूमिका का सम्मान किया जाना चाहिए।‘’
हिमालयी पर्यावरण अध्ययन और संरक्षण संगठन (एचईएससीओ) के संस्थापक डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने कहा कि भारत जैसे देश में, जहां बड़ी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, वहां निश्चित रूप से एक नीति को उनकी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि “पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक सत्यापन की आवश्यकता है।‘’
डिस्टिंगुइश्ड फैलो एवं ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) में परमाणु और अंतरिक्ष नीति पहल के प्रमुख डॉ. राजेश्वरी राजगोपालन ने कहा कि निवेश और लाभों की आवधिक लेखा परीक्षा के लिए प्रावधान होना चाहिए और नीति को प्रतिभाओं की देश वापसी तथा सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को बनाए रखने तथा देश में वापस लाने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (पीएसआई) के कार्यालय तथा भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) से प्राप्त दिशा-निर्देश के साथ डॉ. अखिलेश गुप्ता के नेतृत्व में एसटीआईपी सचिवालय द्वारा एसटीआईपी के मसौदा को एक साथ एकत्रित किया गया। एसटीआईपी के मसौदे को 31 दिसम्बर, 2020 को सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी किया गया था। तब से सुझाव एवं अनुशंसाएं आमंत्रित करने के लिए पहले ही कई प्रारूप-उपरांत परामर्शों की शुरूआत की जा चुकी है। अगले 2 सप्ताह के दौरान परामर्शों की एक श्रृंखला की योजना बनाई गई है। टिप्पणियां प्राप्त करने की अंतिम तिथि 31 जनवरी, 2021 तक बढ़ा दी गई है।