ओड़ीसा के गंजम जिले में अधिकांश आदिवासी ईसाई हैं.
मेरे एक स्थानीय मित्र ने बताया कि सन 1940 के आसपास यहाँ गेरुआ वस्त्र पहने एक पादरी आया था. उसने गाँव वालों को एकत्रित किया और पूछा – तुम्हारे भगवान कौन हैं?
आदिवासियों ने बताया कि हमारे भगवान जगन्नाथ जी हैं.
तब पादरी ने पूछा कि भगवान जगन्नाथ का असली नाम क्या है?
आदिवासियों को नहीं पता था.
इस पर पादरी ने बताया कि भगवान जगन्नाथ का असली नाम ईसा मसीह है.
ईसा मसीह का मंदिर बनाया गया. फिर धीरे धीरे उनको भगवान जगन्नाथ के असली रूप अर्थात ईसा मसीह की प्रार्थना करवाई जाने लगी.
ऐसी ही कुछ कहानी ओड़िसा के अन्य आदिवासी जिलों बौढ़, सोनपुर, मयूरभंज, कालाहांडी जिलों की है.
2011 की जनसँख्या के आंकड़ों के अनुसार बौढ़ जिले में ईसाई जनसँख्या 118.41 प्रतिशत बढ़ी, गंजम जिले में 70.06 प्रतिशत, मयुरभंज 64.56 प्रतिशत, कालाहांडी में 61.20 प्रतिशत की वृद्धि हुई. जबकि इन जिलों में हिन्दू जनसँख्या 11 से 14 प्रतिशत ही बढ़ी.
रायगढ़ जिले में ईसाई जनसँख्या 53.78 प्रतिशत बढ़ी जबकि वहां हिन्दू जनसँख्या मात्र 1.36 प्रतिशत ही बढ़ी.
(स्त्रोत – http://odishasuntimes.com/2015/08/31/christians-grew-fastest-among-communities-in-odisha-in-last-census/)
यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि इसाई जनसँख्या केवल वहीँ बढ़ी जहाँ अधिकतर जनसँख्या अनपढ़ या आदिवासी है. आंकड़ों से स्पष्ट है कि हिन्दुओं का बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुआ.
यह धर्मांतरण किसी बल प्रयोग, लोभ लालच से नहीं या हिन्दू धर्म की बुराइयों के कारण नहीं, बल्कि एक विशेष साजिश के तहत हुआ. जिसे धोखे या छल से धर्मांतरण कहना उचित होगा.
इस प्रकार का धर्मांतरण करने के लिए पादरियों द्वारा कई तरीके अपनाए जाते है, जिनका उद्देश्य अनपढ़ भोले भाले ग्रामवासियों या वनवासियों को गलत तरीके से ईसाई धर्म में लाना है.
ये तरीके इस प्रकार के हैं-
1. ईसा मसीह को हिन्दू देवता के रूप में दर्शाना- यह कोई सर्व धर्म समभाव या धार्मिक एकता नहीं बल्कि अशिक्षित भोले भाले दलित हिन्दुओं को गुमराह करने की साजिश है. इसमें चर्च के अन्दर ऐसी तस्वीरें लगाई जाती है जिनसे प्रथम दृष्टि में ईसा मसीह के हिन्दू देवता होने का भ्रम होता है. ईसा मसीह को भगवा वस्त्र में तपस्या करते दिखाया जाना, विष्णुजी के समान चार हाथ वाले भगवान के रूप में दिखाना आदि इनके तरीके हैं.
2. ईसा मसीह को भगवान विष्णु/ कृष्ण अवतार के रूप में दिखाना- कई चर्चों में इस तरह की प्रतिमा या चित्र लगाये जाते है जिससे उनको विष्णु का कल्कि अवतार बताया जाता है या कृष्ण का रूप होने की बेसिर पैर की कहानियां सुनाई जाती है.
महाराष्ट्र में अशिक्षितों को बताया जाता है कि माँ मरियम की गोद में बाल गणेश ही बड़े होकर प्रभु ईसा मसीह बने. इस तरह की एक मूर्ति चर्च में लगा दी जाती है.
केरल के कोवलम के पास चोवारा समुद्र तट पर एक ऐसी ही मूर्ति लगाई गयी है जिसमें ईसा मसीह गेरुए वस्त्र पहने हाथ जोड़े मुद्रा में विराजमान है. अशिक्षित उनको हिन्दू देवता या ऋषि मान कर पूजा करते हैं.
राजस्थान के नवलगढ़ के एक चर्च में ईसा मसीह की राजस्थानीय शैली में कलाकृति स्थानीय सती माता के साथ लगाई गई है. माता को प्रणाम कर हिन्दू ईसा मसीह को भी प्रणाम करते हैं.
मदुरै के एक चर्च (rural theological institute) में ईसा मसीह की मुख्य क्रूस मूर्ति हिन्दू देवी देवताओं की दक्षिण भारतीय शैली में लगायी गयी है, ताकि भोले भाले लोगों को ईसा मसीह के हिन्दू देवता होने का भ्रम हो.
3. ईसा मसीह को भगवान् कृष्ण के बाल सखा के रूप में बताना और बे-सिरपैर की कहानियां सुना कर लोगों को भ्रमित करना- इस तरह के चित्र भी चर्च में लगाये जाते हैं.
4. चर्च का नाम ‘आश्रम’ या ‘क्राइस्ट मंदिर’ रखना- इस तरह के नाम से भी अशिक्षित इनके झांसे में आ जाते है.
5. चर्च को मंदिर की आकृति का बनाना- ओड़िसा, तमिलनाडु व केरल में अनेक चर्च ऐसे बनाये गए है जिनको देखते ही मंदिर का भ्रम होता है.
चर्च की बाहरी दीवार पर स्वस्तिक, ॐ, कमल या दो उलटे त्रिभुज बना दिए जाते है जिससे लोग मंदिर समझ कर अन्दर चले जाते हैं. फिर पादरी उनका ब्रेनवाश कर देते हैं. सेंट जार्ज चर्च Puramboke केरल, मंदिर के रूप में भ्रमित करने वाला ऐसा ही चर्च है.
इस चर्च में ईसा मसीह का रथ और ध्वज देखिये.
6. ईसा मसीह को गौतम बुद्ध का अवतार या मैत्रेय बताना- बिहार के बौद्ध बहुल अशिक्षित इलाकों में ईसा मसीह को गौतम बुद्ध का अवतार या मैत्रेय बताये जाने का भ्रामक प्रचार किया जाता है.
पटना के एक चर्च में ईसा मसीह की मूर्ति है जिसमें ईसा मसीह को गौतम बुद्ध की मुद्रा में बैठे हैं।