* जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र *
अनुभव से ही सही या गलत का सही निर्णय सटीक हो सकता है। प्रोपगंडो के बीच जब सही नजरिया मिलता ही नहीं है तो सही निर्णय हो भी नहीं सकता। केवल ‘आखों देखी-कानों सुनी’ में शक की गुंजाईश नहीं रह रहती। ‘सत्यमेव जयते’ वाले दर्शन के उद्गाता भारतीय प्रोपगंडो को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते। आखिर वो मानते हैं कि असत्य तो भंगुर होता है, नष्ट हो जायेगा।
जम्मू-कश्मीर राज्य को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैलाई गई हैं। भ्रांतियों का मूल उद्देश्य रहा है। सभी का एक ही। जम्मू-कश्मीर में भारत प्रेम कम है या नहीं है। जम्मू-कश्मीर के लोग भारत में रहना नहीं चाहते। वे भारत सम्बंधित किसी भी चीज को नकारतें हैं। प्रदेश के बारे में इस तरह की एक छवि प्रदेश के बाहर देश में और विदेशों में फैलाई जाती है। अब दो प्रश्न बड़े ही महत्वपूर्ण है। एक कि क्या इन प्रोपगंडो का असर होता है? दूसरा कि कितना? सीधा कोई मत थोपने के बजाये जम्मू-कश्मीर की एक घटना को दिखाना ठीक रहेगा। उपरोक्त दोनों प्रश्नों के उतर पाठक स्वत: ढूंढ लेगा।
अभी-अभी हमने 68वा स्वतंत्रता दिवस मनाया है। इसी दिन को हम एक केस स्टडी के तौर पर लेंगे। आमतौर पर अधिकतर भारतीओं को लगता है कि जम्मू-कश्मीर में भारत का झंडा फहराने में बड़ी दिक्कत आती है। और तो और वहां के लोग स्वतंत्रता दिवस भी नहीं मानना चाहते। वे अपना अलग स्वतंत्रता दिवस मनाना चाहते है। इस तरह कि मांगों की खबर हर जागरूक पढ़ या सुन ही लेता है। हमने यहाँ पर जागरूकता का पैमाना अख़बार पढ़ लेना या टीवी पर समाचार सुन लेना रखा है। ये वो लोग हैं जो एक तो जम्मू-कश्मीर के निवासी नहीं हैं और न ही वहां के लोगो से जुड़े हुए हैं (पर्यटन के अलावा)।
जम्मू-कश्मीर का एक महत्वपूर्ण जिला है लेह। ये प्रदेश के लदाख क्षेत्र में आता है और पूरे कश्मीर क्षेत्र से बड़ा है। स्पष्टता के लिहाज से बताना ठीक रहेगा कि जम्मू-कश्मीर प्रदेश के मामले में क्षेत्र और जिला दो अलग अलग चीजें हैं। प्रदेश में तीन हिस्सें हैं और हर हिस्से में कुछ जिले है। लदाख, जम्मू और कश्मीर (घाटी) जम्मू-कश्मीर के तीन क्षेत्र हैं। लदाख सबसे बड़ा और कश्मीर घाटी सबसे छोटा।
लेह जिले में एक पोलो ग्राउंड है। बहुत बड़ा। पूरे साल में यहाँ पर तरह-तरह के खेल-कूद समारोह और राजनैतिक रैलियां होती हैं। इसी ग्राउंड में स्वतंत्रता दिवस का आयोजन किया गया था। यहाँ के समाज ने ही किया था। ग्राउंड का हर कोना दर्शकों से भरा था। एकदम ठसमठस। लेह के आसपास के दुर्गम क्षेत्रों से लोग आये थे। स्वतंत्रता समारोह में हिस्सा लेने। वैसे पूरे लदाख क्षेत्र में जनसँख्या घनत्व बहुत कम है। तिरंगी पौशाकों से आस-पास का इलाका भरा हुआ था। लगभग हर बच्चे ने गाल पर तिरंगा बनवा रखा था। रह-रह कर जय हिन्द, वन्दे मातरम और भारत माता की जय से पूरा इलाका गूंज रहा था।
एक बात यहाँ बतानी बहुत जरूरी है। पूरे देश से हटकर यहाँ स्वतंत्रता दिवस का उल्लास कई दिनों तक रहता है। हफ्ते तक। दूर दराज के गावों में अपने निकटतम समारोह में आने-जाने को लेकर रणनीतियां बनती है। नए कपड़ों कि खरीददारी चलती है। लदाख क्षेत्र का ही एक और जिला है कारगिल। ये मुस्लिम बहुल जिला है। जिले के सुल्तान चाउ सपोर्ट स्टेडियम में भी ऐसा ही दृश्य था। देशभक्ति धुनों के बीच स्कूलों के बच्चो द्वारा भव्य प्रदर्शन, शहीदों श्रद्धांजलि, कलाबाजियां और पुरस्कार वितरण। इन दो बड़े समारोहों के अलावा सैकड़ों छोटे-छोटे कार्यक्रम पूरे लदाख में हुए।
प्रदेश के दुसरें बड़े हिस्से, जम्मू में हर विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, मोहल्ले, गली के नुक्कड़ों और यहाँ तक कि घरों में भी स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगे फहराए गए। मतलब कि इस दिन पूरे प्रदेश में कितने तिरंगे फहराएँ गए अंदाजा लगाना मुश्किल है।
गौतलब है कि ये सब ठीक उसी समय हो रहा था जब देश के सभी बड़े चेनल श्रीनगर के बंद मार्किट को दिखा कर अफवाह फैला रहे थे; प्रोपगंडा चला रहे थे। इसी श्रीनगर में, ठीक उसी समय जब टीवी की स्क्रीन पर बंद दुकाने दिख रही थी, बक्शी स्टेडियम स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम के के दौरान ठसमठस भरा रहा। जहाँ तक बंद दुकान और मार्किट की बात है वो स्वतंत्रता दिवस वाले दिन पूरे भारत में ही ऐसा माहौल रहता हैं। आखिर लोग जब स्वतंत्रता दिवस के समारोह में हिस्सा लेंगे तो खरीदारी कौन करेगा और कोई दुकान खोलेगा ही क्यूँ? दोपहर के बाद पूरे देश की तरह जम्मू-कश्मीर में भी दुकाने खुल गई थी। श्रीनगर में भी।
अब आतें हैं लेख के आरम्भ में उठे प्रश्नों पर, क्या प्रोपगंडों का असर होता है? अगर हाँ तो कितना? पाठक सोचे कि उसके दिमाग में जम्मू-कश्मीर की क्या छवि है। एक-आध आई.एस.आई.एस. या पाकिस्तान के झंडे की या अनगिनत भारत के तिरंगो वाली। पाठक सोचे कि उसके दिमाग पर क्या हावी है, श्रीनगर के बंद मार्किट की छवि या पूरे प्रदेश स्वतंत्रता दिवस वाला उल्लास। इसे सोचने के साथ ही पाठक को उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर खुद-ब-खुद मिल जायेंगे। और हाँ ये बात एकदम सच है कि इस लेख में जम्मू-कश्मीर के स्वतंत्रता दिवस के वास्तविक उल्लास का चित्रण करना असंभव है। यहाँ पढने पर जितने उल्लास की कल्पना हुई होगी उससे कहीं ज्यादा धरातल पर मौजूद रहता है। लेख की हद से आगे अनुभव करने के लिए फोटो को ध्यान से जरूर देखें।