उज्जयिनी – उत्कर्ष के साथ जय करने वाली नगरी उज्जयिनी ! आज के उज्जैन को दूर से देखने जानने वाले बहुत कम लोग जानते होंगे कि उज्जयिनी संसार की सबसे प्राचीन नगरी है . दावा दिल्ली बनारस से लेकर भले ही रोम वेनिस भी करते रहें हो प्रमाण तो उज्जयिनी के पक्ष में ही हैं , आज जो राष्ट्र की राजधानी हैं दिल्ली, वह एक गाँवडा भी नहीं थी जब ईसा पूर्व ५७ में उज्जयिनी सम्राट विक्रमादित्य की राजधानी थी , जिनका शासन नेपाल अरब ईरान से ले कर अफ़ग़ानिस्तान तक था . मिस्र के तूतन खामन की खुदाई में स्वर्ण पत्र पर विक्रमादित्य की प्रशंसा में कविता प्राप्त हुई हैं !
दरअसल , इधर की पीढ़ी को यही पढ़ाया गया कि हम पाँच सो साल ग़ुलाम रहेॉ, मुग़लों, की दो सौ साल ग़ुलाम रहे अंग्रेजो के, तो तुम सदैव से पराजित पराभूत हारे थके लूटे पीटे जुआरी हो महाभारत के ! वर्ष १९४२ में “ विक्रम “ पत्र का प्रकाशन आरंभ कर प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सैनानी पत्रकार सम्पादक और ज्योतिष जगत के सूर्य पद्म भूषण पंडित सूर्य नारायण व्यास ने “ विक्रमादित्य “ पर पृथ्वी राज कपूर को ले कर एक फ़ीचर फ़िल्म बनायी और नयी पीढ़ी को बताया कि तुम सदैव पराजित पीढ़ी नहीं थी.
विक्रम के पराक्रम को स्थापित करने उन्होंने उज्जयिनी में विक्रम विश्वविद्यालय विक्रम कीर्ति मंदिर स्थापित किया , तीन हज़ार पृष्ठ का विक्रम स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित किया हिंदी मराठी अंग्रेज़ी में , विक्रम युग की सवर्ण मुद्रा खोज निकाली , और दुनिया को बताया कि नवरत्न तो विक्रम के दरबार में थे , जिसकी नक़ल कर सम्राट अकबर ने भी कालिदास वराह मिहिर वररुचि वैताल भट्ट शंकु की तर्ज़ पर तानसेन बीरबल टोडरमल रखे !
आज़ादी के पहले और बाद भी मानसिक ग़ुलामी से हम मुक्त नहीं हुए थे . हमारे सारे राजनेता विदेश से पढ़कर आये थे, क्या गांधी ,नेहरू ,पटेल ,सुभाष सभी ,क्या अंबेडकर, क्या जयप्रकाश सब शेक्सपियर तो जानते थे, कालिदास को नहीं . तब उज्जयिनी में १९२८ में अखिल भारतीय कालिदास समारोह आरंभ कर सारे संसार को बताया पंडित सूर्यनारायण व्यास ने की विश्व कवि तो हैं कालिदास , नाटक कार भी शेक्सपियर से बड़ा ! एक समय था उज्जयिनी को महाकाल और पंडित सूर्यनारायण व्यास के नाम से ही जाना जाता था ! आज फिर एक पीढ़ी धर्म और पाखंड में लिप्त उज्जयिनी के असली साहित्यिक सांस्कृतिक वैभव से परिचित नहीं हैं !ॉ
उज्जैन केवल महाकाल की नगरी ही नहीं, कृष्ण बलराम के गुरु महर्षि संदीपनीं की भी नगरी हैं. भास ,शुद्रक, भर्तृहरि,, राजशेखर उदयन वासवदत्ता की भी नगरी हैं . अकेले इस नगरी के बारह बार नाम बदले गये वेद पुराण और उपनिषद काल से .
कनक शृंगा कुश स्थली अवंतिका उज्जयिनी पद्मावती कुमुदवती विशाला प्रतिकल्पा अमरावती जैसे अनेक नाम से सुशोभित उज्जयिनी आज उज्जैन हैं. ज्योतिष की जन्मभूमि जिसका मेघदूत से ले कर कादम्बरी कथा सरित्सागर में खूब गुण गान किया हैं तब से अब के साहित्यकारों ने . पद्म भूषण पंडित सूर्य नारायण व्यास इसे राष्ट्र की राजधानी बनाना चाहते थे . तब तो हुआ नहीं ,आहट हैं की अब होगा ! वे विक्रम संवत् को राष्ट्रीय संवत् बनाना चाहते थे . हमने ईसाई सन् संवत् अपना कर ग्रेगरियन केलेनडर को अपना लिया, जिस से आज हम २०२४ में हैं . पर विक्रम सम्वत् अपनाया होता तो हम होते आज २०८१ में ,याने इक्कीस वी सदी में तो हम कितने साल पहले ही प्रवेश कर जाते !
उज्जैन के साहित्यिक सांस्कृतिक वैभव को सारी दुनिया तक पहुँचाने में व्यास जी जैसे महामना के बाद विगत पचास बरस से दूरदर्शन पर “ जयती जय उज्जयिनी “ काल और संसार के सारे देशों में प्रसारित अंग्रेज़ी में बनी फ़िल्म ‘द टाइम ‘ जिस से संसार को हमने बताया, कि सारे संसार को काल गणना भी हमने सिखायी ! ग्रीनविच मीन टाइम से पहले उज्जयिनी स्टेण्डर्ड टाइम होता था ! आज उज्जयिनी में महाकाल लोक हैं !उज्जयिनी अद्भुत नगरी हैl
उज्जयिनी का जो आलोक था साहित्यिक ,सांस्कृतिक ,पौराणिक ,ऐतिहासिक वह आलोक महाकाल लोक में नहीं दिखाई देता हैं . क्योंकि आस्था ,श्रद्धा ,विश्वास अब धार्मिक पर्यटन में बदल गया हैं . धर्म में धंधा आ जाय तो पवित्रता लुप्त होने लगती हैं . .
यहाँ शक्ति पीठ हरसिद्धि भी हैं तो सिद्धि विनायक से मशहूर बड़े गणपति भी , तांत्रिक पीठ में दक्षिण मुखी महाकाल के अलावा उनके गण काल भैरव भी .आठ हज़ार बरस पुराने राजा भद्र सेन निर्मित इस मंदिर में काल भैरव मदिरा पान करते हैं . जब अपनी फ़िल्म जयती जय उज्जयिनी में पहली बार इसे लाइव दिखाया था तो सारे देश में हलचल मची अनेक देश से वैज्ञानिक भी आये ,मगर वे भी यह खोज नहीं पायें की काल भैरव जो मदिरा पीते हैं वह जाती कहा हैं ?
यहाँ गोरखनाथ संप्रदाय के गुरु मच्छन्दर नाथ की समाधि भी हैं, और भर्तहरी की गुफा भी दर्शनीय स्थल हैं.
भारत भर में जो दिल्ली मथुरा जयपुर बनारस में वेधशाला हैं , उज्जयिनी में भी उन्ही सवाई राजा जयसिंह निर्मित वेध शाला हैं जो आज तक कार्य रत हैं. अपनी फ़िल्म ‘काल’ और’ द टाइम ‘ में काल गणना पर बेहद विस्तार से मैंने बेहद रोचक ढंग से समझाया हैं. यह फ़िल्म यू ट्यूब पर मेरा नाम टाइप करते ही मिल जायेगी. l
फिर समय-समय पर होने वाले अनेक पर्व एवं त्यौहार, मेले-ठेल भी इस नगरी को जीवन्त और जागृत बनाये रखते हैं। कार्तिक मेला, शनिश्चरी अमावस्या-सोमवती अमावस्या तो त्रिवेणी के मेले, कभी श्रावण की सवारी तो कभी चिंतामन की यात्रा, पंचक्रोशी यात्रा और इन सबसे बढ़कर ‘सिंहस्थ पर्व।’
उज्जयिनी का जन्मदिन होता हैं बारह साल में एक बार _ सिहस्थ पर्व के रूप में , कहानी हैं –
‘सिंहस्थ पर्व’ का उज्जयिनी से घनिष्ठ सम्बंध है। भारत की प्राचीन महानगरियों में उज्जयिनी को अत्यंत पवित्र नगरी माना गया है-प्रयाग, नासिक- हरिद्वार, उज्जयिनी इन स्थानों की पवित्रता और श्रेष्ठता यहां होने वाले कुंभ अथवा सिहंस्थ महापर्व के कारण भी मानी जाती हैं। कुंभ या सिंहस्थ पर्व इन्हीं स्थानों पर क्यों मनाया जाता है? इस सम्बंध में ‘स्कंदपुराण’ में एक अत्यंत रोचक कथा- उल्लखित है- देवताओं और दानवों ने समुद्र मन्थन किया, उसमें से अनेक रत्न प्राप्त हुए, उनमें एक ‘अमृत कुंभ कलश’ भी मन्थन से प्राप्त हुआ। उस कुंभ कलश के लिये देवता और दानवों में परस्पर संघर्ष होने लगा।
इंद्र का पुत्र जयन्त उस कलश को लेकर भागा, अमृत हेतु सभी उसके पीछे लग गये, कुंभ कलश भी एक हाथ से दूसरे हाथ पहुंचने लगा देवताओं में भी सूर्य, चन्द्र और गुरू का अमृत कलश संरक्षण मे विशेष सहयोग रहा था, चन्द्र ने कलश को गिरने से सूर्य ने फूटने से तथा बृहस्पति ने असुरों के हाथ में जाने से बचाया था। फिर भी इस संघर्ष में कुंभ में से अमृत की बून्दें छलकीं ये अमृत बून्दें-प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जयिनी नगरी में छलकी थी अतः ये स्थल कुम्भ पर्व के स्थल बन गये, ये ही वे चार तीर्थ हैं जो अमृतत्व बिन्दु के पतन से अमृत्तत्व पा गये। धार्मिक गणों की आस्था है कि कलश से छलकी बूँदों से न सिर्फ यह तीर्थ अपितु यहाँ की पवित्र नदियाँ, गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी एवं क्षिप्रा भी अमृतमयी हो गयी है।
इस कथा में धार्मिक पवित्रता के साथ-साथ खगोलीय एवं वैज्ञानिक महत्व भी समाहित है। ग्रहों और नक्षत्रों की विशिष्ट गतिविधि के कारण ही सिंहस्थ अथवा कुंभ पर्व 12 वर्षों में एक बार एक नगरी में मनाया जाता है ये विशिष्ट ग्रहयोग भी प्रत्येक पवित्र स्थल के लिये पृथक पृथक हैं। जैसे प्रयाग में होने वाले कुम्भ पर्व पर मकर राशि मे सूर्य, वृष राशि में गुरु तथा माघ मास होना आवश्यक है। उज्जयिनी के कुम्भ पर्व को अन्य पर्वो से अधिक महत्व प्राप्त हैं, क्योंकि इसमें ‘सिंहस्थ’ भी समाहित हैं। ‘सिंहस्थ-महात्म्य’ में उज्जयिनी में सिंहस्थ पर्व होने के लिये दस योगों का होना अत्यावश्यक माना गया हैं, वे योग हैं। वैशाख मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा, मेष राशि पर सूर्य, सिंह राशि पर बृहस्पति, तुलाराशि पर चन्द्र, स्वाति नक्षत्र, व्यतीपात योग, सोमवार एवं उज्जयिनी की भूमि।
हम जब छोटे थे युवा हुए तो आंदोलन चलाते थे की जब बॉम्बे मुंबई हो गया मद्रास चेन्नई तो उज्जैन का नाम भी उज्जयिनी हो मध्य प्रदेश के नये मुख्य मंत्री ने हमारी बात मानी हैं संभवत आप जब तक इन पंक्तियों को पढ़े उज्जैन फिर उज्जयिनी हो जाय.l
अब यह मेरी उज्जयिनी तो नहीं है चालिस साल पहले जिसे छोड कर , जिसका यश देश देश गाने मैं दिल्ली , मुम्बई , हॉलीवुड गया । जिस पर अनेक ग्रंथ रचे , अनेक फिल्में बनाई, मेरी यह उज्जयिनी तो नहीं । वर्ष अस्सी में तो जरूर था ये नन्हा सा ,छोटा सा ,प्यारा सा आत्मीयता से ओत प्रोत शहर उज्जैन पर उसमें उज्जयिनी धडकती थी , उसमें उज्जयिनी रहती थी । अब जब सारी दुनिया नाप कर आया तो यह धार्मिक टूरिज्म , होटल , दुकान , मंगते भिखारी, पण्डे पुजारी , धर्म का धंधा करने वाला शहर मिला , जहॉं से उज्जयिनी तो गायब है ही उज्जैन भी नहीं रहा । साहित्य, संस्कृति , कला , प्रकृति, कालिदास , विक्रम , भृर्तहरि की उज्जयिनी कहॉं खो गयी ।
अपने साथ उज्जयिनी ले गया था आया तो ऐसा उज्जैन मिला । माननीय मुख्य मंत्री ,
माननीय प्रधान मंत्री का ध्यान गया तब ‘ शिवलोक ‘ को ‘महाकाल लोक‘ कहने का नाम प्रधान मंत्री को सुझाया । उन्होंने मेरी पुस्तक ‘ जयती जय उज्जयिनी‘ पढी । महाकाल वन का ध्यान किया , यहॉं से भैरव , गणेश व हनुमान जी का स्मरण किया । उज्जैन का नाम उज्जयिनी करने की बात तो हुई ।
उज्जयिनी को देश की राजधानी बनाने का स्वप्न जो पं ़ सू़र्यनारायण व्यास छोड गये थे , विक्रम संवत को राष्टीय संवत बनाने का स्वप्न रच गये थे , वह स्वप्न सम्पूर्ण हो ।
राज शेखर व्यास
भारती भवन
गिरीराज हेरिटेज
माधव क्लब रोड , उज्जैन
विजयिनी,दिन अर्पाटमैन्ट
प्लॉट न 7, सैक्टर 4
द्वारका , नई दिल्ली