पिछले 2 महीनों में शायद ही कोई ऐसा दिन गया हो जब गाँव से निकलती खबर में किसी किसान के खलिहान में रखी फसल में आग लगने का मामला न आया हो । लेकिन इस पर भी सिर्फ सियासी दांवपेंच खेले जा रहे हैं। चारों तरफ सियासत का माहौल गर्म है मगर उन गाँव का हाल जस का तस है जहाँ सन्नाटे को चीरती किसान परिवारों की चींखे सिसकियों के साथ हमदर्दी जताने वालों की होड़ में बार बार शर्मसार होती है । सूखे का आलम इतना विकराल है की अब यहाँ के किसान उसी छाते का प्रयोग अपने दो वक्त की रोजी रोटी के लिए कर रहे हैं जिसका प्रयोग प्रायः लोग पानी बरसने या धूप होने पर अपना शरीर ढंकने के लिए करते हैं । कुछ सालों पहले विश्वविख्यात जबांजों की इस धरती के लोग भी प्रचण्ड धूप व बरसात में अपने शरीर को ढंकने के लिए छाते का प्रयोग करते थे पर पिछले कई सालों से भगवान इंद्र जिस बेरुखी से रूठे हैं और सूर्य भगवान जिस कदर क्रोध में हैं उससे यहाँ के अधिकतर लोगो को अपना जीवनयापन इसी छाते को उल्टा करके करना पड रहा है । यहाँ का निवासी होना मेरे लिए गर्व की बात है पर इस वक्त यहाँ के किसान जिस प्रकार मौसम की मार झेल रहे हैं उसे देखकर बहुत दुःख होता है । ये नजारा जो आप चित्र में देख रहे है ये महज एक चित्र नही बल्कि बुंदेलियों का जिंदगी से जूझने का मौजूदा उपाय है ।
मैं इसे ‘अम्ब्रेला शॉप’ का नाम इसलिए दे रहा हूँ क्योकि इस अम्ब्रेला को उलटा करके इसी पे बिकवाली के लिए छोटी छोटी वस्तुएं रखी जाती है फिर इससे जो भी रूपये मिलता है उससे ये लोग अपना परिवार पालते हैं । कहते हैं कि भारत जुगाड़ का देश है यहाँ हर काम के लिए आदमी कोई न कोई जुगाड़ इजात कर ही लेता है और वो भी पूरे वैज्ञानिक ढंग से । जुगाड़ के मामले में बुन्देलखण्ड के लोग भी काफी ज्यादा संजीदा हैं क्योंकि उन्हें हर हाल में अपना काम करना होता है चाहे बात अपने पेट पालने की हो या किसी नए कार्य की ।
बुन्देलखन्ड के आम जनजीवन पर आई ताजा रिपोर्ट से सरकार को उलझन मससूस हो सकती है पर यहाँ के हालात बहुत चिंताजनक है,इस पर कोई दोराय नही । पूरा बुन्देलखण्ड पिछले तीन दशक से लगातार सूखे की मार झेल रहा है और इसके लिए पूर्णतया पर्यावरण असन्तुलन ही जिम्मेदार है । पीने के पानी का स्रोत (कुंओ,तालाबों) सूख गए हैं या ज्यादातर का भूजल स्तर 15 सालों में बुरी तरह नीचे गिरा है इसके कारण यहाँ के कई इलाकों के लगभग सभी कुएँ और हैण्डपम्प सूख गए हैं । इस भूजल स्तर के गिरने का प्रमुख कारण है विकास के नाम पर तालाबों का बलिदान। ऐसे में सवाल यह है की क्या हम वाकई में सम्रद्ध हो रहे हैं ?