मध्य प्रदेश के ग्वालियर भितरवार (गिर्द) विधानसभा क्षेत्र में चार गांव के लोग नावों में बैठकर वोट डालने जाएंगे। आजादी को ६६ साल बीतने के बाद भी इन गांवों में न तो सड़क पहुंच सकी है, न ही बिजली की रोशनी। लेकिन हर ५ साल बाद चाहे कांग्रेस हो या भाजपा सभी पार्टिंयों के नेता वोट मांगने जरूर पहुंच जाते हैं। घाटीगांव ब्लॉक में आने वाले बसई,समेड़ी, खतैरा, पैयखौं गांव में पगारा डेम की डूब प्रभावित क्षेत्र में बसे हुए हैं। गुर्जर, जाटव और आदिवासी बाहुल इन गांवों की कुल आबादी लगभग २००० है। जबकि कुल मतदाताओं की संख्या १४०० है।
आसन नदी के दूसरी ओर बसे इन गांवों में आवागमन मुरैना के जौरा क्षेत्रों से होता है। लेकिन ग्वालियर जिले के यह गांव घाटीगांव ब्लॉक का हिस्सा होने के कारण भितरवार विधानसभा क्षेत्र में आते हैं। इनके अलावा भी मुरैना जिले की दक्षिण-पूर्वी सीमा से पर बसे मिर्चा, सौंसा, राई समेत एक दर्जन से अधिक गांव हैं, जहां न तो पक्की सड़क है, न ही बिजली की लाइन अब तक पहुंच पाई है।
इन गांवों तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने में असफलता को छिपाने के लिए शासन और प्रशासन के पास एक आसान बहाना सोनचिरैया अभयारण्य का होना है, जब भी इन गांवों के लोग अपनी जरूरतों के लिए प्रशासन से मांग करते हैं, तब कहा जाता है कि इन गांवों का रास्ता सोन चिरैया अभयारय के बीच से जाता है, इसलिए यहां नवीन निर्माण नहीं किए जा सकते। लेकिन इन इलाकों में अवैध रूप से पत्थर की खुदाई के लिए पहाड़ों की खुदाई बदस्तूर जारी है। लेकिन इस ओर न सरकार का ध्यान है न ही प्रशासन का।
साभार -दैनिक नईदुनिया से