Tuesday, November 26, 2024
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सवालों के घेरे में वीवीपैट, जानें क्या हैं इसकी खासियत और क्या सच में हो सकती है हैक

मंगलवार को 4 लोकसभा और 10 विधानसभा की सीटों पर चुनाव हुए। इस बीच उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान कई जगहों पर वोटर वेरीफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) में खराबी आ गई थी। जिसपर यूपी मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने सोमवार को कहा था कि ज्यादा गर्मी की वजह से वीवीपैट प्रभावित हुई है। इसके बाद एक बार फिर से वीवीपैट की बजाए बैलेट पेपर के जरिए चुनाव करवाने की मांग उठने लगीं। इसी क्रम से आज हम आपको बताते हैं कि वीवीपैट क्या है और इसकी क्या खासियत है जिसकी वजह से भारत में इससे चुनाव करवाए जाते हैं।
क्या है वीवीपैट

वीवीपैट एक तरह की मशीन होती है, जिसे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के साथ जोड़ा जाता है। इस व्यवस्था के तहत मतदाता द्वारा वोट डालने के तुरंत बाद कागज की एक पर्ची बनती है। इस पर जिस उम्मीदवार को वोट दिया गया है, उनका नाम और चुनाव चिह्न छपा होता है। यह व्यवस्था इसलिए है ताकि किसी तरह का विवाद होने पर ईवीएम में पड़े वोटों के साथ पर्ची का मिलान किया जा सके।

ईवीएम में लगे शीशे के एक स्क्रीन पर यह पर्ची सात सेकेंड तक दिखाई देती है। इसे डिजायन करने का श्रेय भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने को जाता है। जिन्होंने साल 2013 में इसे तैयार किया था। इसका पहली बार इस्तेमाल 2013 में नगालैंड में हुए विधानसभा चुनाव में हुआ था।

वीवीपैट की खासियत

यदि कोई शख्स चुनाव के दौरान वीवीपैट की पर्ची में अपने द्वारा किसी अलग उम्मीदवार का नाम आने की बात करता है, तो चुनाव अधिकारी उस मतादाता से पहले एक हलफनामा भरवाते हैं। इसके तहत मतदाता को बताया जाता है कि सूचना के गलत होने उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने का प्रावधान है। इसके बाद चुनाव अधिकारी सभी पोलिंग एजेंटों के सामने एक रेंडम टेस्ट वोट डालते हैं। जिसे बाद में मतगणना के वक्त घटा दिया जाएगा। इस वोट से वोटर के दावे की सच्चाई का पता लगाया जा सकेगा।

वीवीपैट में उम्दा क्वालिटी का एक प्रिंटर इस्तेमाल होता है। जिसकी वजह से उससे छपी पर्चियों पर से कई सालों तक स्याही नहीं मिटती है। प्रिंटर में एक खास सेंसर भी लगा रहता है जो खराब क्वालिटी की पर्ची आने पर प्रिंटिंग अपने आप बंद कर देता है।

क्या हैक और रीप्रोगामिंग हो सकती है ईवीएम

राजनीतिक दलों ने कई बार ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। उत्तररप्रदेश में मंगलवार को हुए चुनावों में भी एक बार फिर से वीवीपैट की बजाए बैलट पेपर के जरिए चुनाव करवाने की मांग उठी। हालांकि चुनाव आयोग का दावा है कि ईवीएम सुरक्षित और सही है।

आपको बता दें कि हर ईवीएम के दो हिस्से होते हैं। एक हिस्सा होता है बैलेटिंग यूनिट का होता है जो मतदाताओं के लिए होता है। वहीं दूसरा होता कंट्रोल यूनिट का होता है जो पोलिंग अफसरों के लिए होता है। ईवीएम के दोंनो हिस्से एक पांच मीटर लंबे तार से जुड़े रहते हैं। बैलेट यूनिट ऐसी जगह रखी होती जहां कोई एक मतदाता दूसरे मतादाता को वोट डालते समय देख ना सके।

ईवीएम पर एक बार में अधिकतम 64 प्रत्याशी तक दर्शाए जा सकते हैं। एक चुनाव अधिकारी कुणाल ने बताया, ‘ईवीएम चिप आधारित मशीन है, जिसे केवल एक बार प्रोग्राम किया जा सकता है। उसी प्रोग्राम से तमाम डेटा को स्टोर किया जा सकते है लेकिन इन डेटा की कहीं से किसी तरह की कनेक्टिविटी नहीं है लिहाजा, ईवीएम में किसी तरह की हैकिंग या रीप्रोग्रामिंग मुमकिन ही नहीं है। इसलिए यह पूरी तरह सुरक्षित है।’ भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड या इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड के इंजीनियर इन मशीनों की चेकिंग करते हैं। उनमें उम्मीदवारों के नाम, उनके चिह्न वगैरह फीड किए जाते हैं। मशीनों को जब मत डालने के लिए भेजा जाता है तो उससे पहले भी इसकी चेकिंग होता है।

थर्ड जनरेशन वीवीपैट

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान पहली बार थर्ड जनरेशन ईवीएम मशीनों का उपयोग किया गया था। इसपर आयोग का कहना था कि इसमें लगी चिप को सिर्फ एक बार प्रोग्राम किया जा सकता है। चिप के सॉफ्टवेयर कोड को ना तो पढ़ा जा सकता और ना ही इसे दोबारा लिखा जा सकता है। इसे किसी इंटरनेट या सॉफटवेयर के जरिए भी नियंत्रित नहीं किया जा सकता। आयोग ने दावा किया था कि इनके साथ किसी तरह की छेड़छाड़ होने पर यह अपने आप बंद हो जाती हैं।

साभार- https://www.amarujala.com/से

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