1969 में कम्युनिस्ट प्रेस दिल्ली से इतिहासकार विपिन चन्द्र, रोमिला थापर और हरबंस मुखिया का एक संयुक्त पेम्पलेट छपा कि भारत में मंदिर तोड़ने की परंपरा बहुत पुरानी , मुस्लिम शासकों के आने से भी पहले की है। एक राजा जब दूसरे को जीतता था तो सबसे पहले पराजित राजा के मंदिरों को तोड़ दिया करता था। हिन्दू राजाओं ने हजारों बौद्ध-जैन मंदिर तोड़े और यह सामान्य बात थी। इसलिए जो मध्यकाल में #मुसलमानों_ने_हिन्दूमंदिर तोड़े वह कोई नई बात नहीं थी।
यही बात आज भी एनसीईआरटी की कक्षा 6, और 12 के इतिहास में पढ़ाई जा रही है। मात्र इस एक पेम्पलेट के आधार पर, बाद वाली इतिहास पुस्तकों में यही पढ़ाया जाता रहा। यही बात हुकुम नारायण सिंह ने लोकसभा में भी कही थी, “भारत के सभी बौद्ध जैन मंदिरों में हिन्दू राजाओं द्वारा खून की नदियां बहाई गईं।”
तब डॉ. सीताराम गोयल ने उन्हें यह पूछा भी कि “आप पार्लियामेंट में यह कह रहे हैं इसका प्रमाण क्या है?”
हुकुम नारायण सिंह ने “कहा मैंने कहीं सुना था।”
वे आज तक इसका जवाब नहीं दे पाए।
इसके बाद दिसंबर, वर्ष 2000 में हरबंस मुखिया ने ऐसा ही एक लेख टाइम्स ऑफ इंडिया में भी लिखा।
यह लेख आज भी इंटरनेट पर है।
यह अत्यंत आश्चर्यजनक बात थी क्योंकि भारत में मंदिर मस्जिद पॉलिटिक्स जोरों पर थी और सारे विश्व की मीडिया इस सम्बंध में सामग्री खोज रही थी।
उन्हीं दिनों
“स्टूडि टेस्टबुक्स ऑफ पाकिस्तान” नामक रिसर्च पुस्तक की एक विदेशी लेखिका पॉश्चर प्लेयर ने हरबंस मुखिया को पूछा कि आपकी जानकारी का स्रोत क्या है?
मुखिया ने बताया कि उन्होंने यह लेख रोमिला थापर की पुस्तक एर्ली इंडिया के आधार पर लिखा है। इस पर पॉश्चर रोमिला थापर के पास गई और उन्हें भी यही प्रश्न पूछा। आप वे प्राइमरी स्रोत उपलब्ध कराइये क्योंकि मेरे लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।
रोमिला थापर ने बताया “हमारे पास इस बारे में कोई स्रोत नहीं है। हाल ही में एक अमेरिकी लेखक रिचर्ड ईटन ने एक पुस्तक लिखी है जिसकी भूमिका में इस बात के संकेत हैं।”
रिचर्ड ईटन का लेख 29 नवम्बर 2000 को अमेरिकी जर्नलिज्म में छपा था। ईटन लिखते हैं ” मैंने रोमिला थापर की किताब से यह बात जानी कि भारत में हिन्दू भी परस्पर मंदिर तोड़ा करते थे लेकिन इसके कहीं भी कोई प्रमाण नहीं है, सिवाय रोमिला थापर के।”
इसके बाद ईटन लिखते हैं कि “लेकिन #मुस्लिम_आक्रांताओं द्वारा साउथ एशिया में निरन्तर हिन्दू मंदिर तोड़े जाने का रिकॉर्ड उपलब्ध है और इस मामले में एकमात्र व्यक्ति ने काम किया है, वह है सीताराम गोयल।”
यह आश्चर्य का विषय है कि भारत में विगत 6 दशक से निरन्तर एक झूठ बार बार दोहराया जा रहा है, वह भी एक फर्जी मार्क्सवादी इतिहास लेखिका के कहने पर।
जो स्वयं वहीँ से रेफरेंस दे रही है, जिसने उसका रेफरेंस दिया।
आप समझ सकते हैं कि हमारा इतिहास कैसे लिखा गया?