गुलाम कौमों की सबसे बड़ी विशेषता ये होती है कि वो अपनी खुद की विरासत, सभ्यता संस्कृति और इतिहास से शर्मिंदा रहती हैं। हीनभावना से ग्रस्त रहती हैं और अपने मालिक अपने आक्रांता की हर चीज़ से Impress होती हैं। उसे कॉपी करना चाहती हैं।
पिछले दिनों बंगलुरू जाना हुआ। वहां एक मित्र के घर रुका। उनकी छोटी बहन अमेरिका में रहती है। छुट्टियों में घर आई हुई थी। बातों-बातों में बताने लगी कि अमेरिका में बहुत गरीब मजदूर वर्ग मैकडोनाल्ड और पिजज्जाहट का बर्गर पिज़्ज़ा और चिकन खाता है।
अमेरिका और यूरोप के रईस धनाढ्य करोड़पति लोग ताज़ी सब्जियों को उबालकर खाते हैं, ताज़े गुंधे आटे की गर्मागर्म ब्रेड /रोटी उनके लिए बहुत बड़ी लक्ज़री है। ताज़े फलों और सब्जियों का सलाद वहां नसीब वालों को ही नसीब होता है। ताजी हरी पत्तेदार सब्जियां अमीर लोग ही Afford कर पाते हैं। गरीब लोग पैक फुड खाते हैं। हफ़्ते/महीने भर का राशन अपने तहखानों में रखे फ्रीज़र में रख लेते हैं और उसी को माईक्रोवेव ओवन में गर्म कर करके खाते रहते हैं।
आजकल भारतीय शहरों के नव धनाढ्य लोग अपने बच्चों का हैप्पी बड्डे मैकडोनल में मनाते हैं। उधर अमेरिका में कोई ठीक ठाक सा मिडल क्लास आदमी McDonalds में अपने बच्चे का हैप्पी बड्डे मनाने की सोच भी नहीं सकता.. लोग क्या सोचेंगे? इतने बुरे दिन आ गए? इतनी गरीबी आ गयी कि अब बच्चों का हैप्पी बड्डे मैकडोनल में मनाना पड़ रहा है?
भारत का गरीब से गरीब आदमी भी ताजी हरी सब्जी, ताजी दाल भात खाता है। ताजा खीरा ककड़ी खाता है। अब यहां गुलामी की मानसिकता हमारे दिलो-दिमाग़ पे किस कदर तारी है ये इससे समझा जा सकता है कि Europe अमेरिका हमारी तरह ताज़ा भोजन खाने को तरस रहा है और हम हैं कि फ्रिज में रखा बासी पैक फुड खाने को मरे जा रहे हैं। अमेरिकियों की लक्ज़री जो हमें सहज उपलब्ध है, हम उसे भूलकर उनकी दरिद्रता अपनाने के लिए मरे जाते हैं।
ताज़े फल सब्जी खाने हो तो फसल चक्र के हिसाब से दाम घटते बढ़ते रहते हैं। इसके विपरीत डिब्बाबंद पैक फुड के दाम साल भर स्थिर रहते हैं, बल्कि समय के साथ सस्ते होते जाते हैं। जैसे जैसे एक्स्पायरी डेट नज़दीक आती जाती है, डिब्बाबंद भोजन सस्ता होता जाता है और एक दिन वो भी आ जाता है कि Store के बाहर रख दिया जाता है, लो भाई ले जाओ, मुफ्त में। हर रात 11 बजे स्टोर के बाहर सैकड़ों लोग इंतज़ार करते हैं.. एक्स्पायरी डेट वाले भोजन का।
125 करोड़ लोगों की विशाल जनसंख्या का हमारा देश आज तक किसी तरह ताज़ा फल सब्जी वाला भोजन ही खाता आया है। ताज़े भोजन की एक तासीर, तमीज़ और तहज़ीब होती है। ताज़े भोजन की उपलब्धता का एक चक्र होता है। ताज़ा भोजन समय के साथ महंगा-सस्ता होता रहता है। आजकल समाचार माध्यमों में टमाटर और हरी सब्जियों के बढ़ते दामों को लेकर जो चिहाड़ मची हुई है वो एक गुलाम कौम का विलाप है, जो अपनी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विरासत को भूलकर अपनी गुलामी का विलाप कर रही है।
भारत बहुत तेज़ी से ताजे भोजन की समृद्धि को त्यागकर डिब्बेबन्द भोजन की दरिद्रता की ओर अग्रसर है।