खबर गोवा की है, लेकिन आजकल यह घटना कहीं भी घट सकती है। एक ड्राइवर है, जो महामारी के पहले 700 रुपए रोज कमाता था। लॉक डाउन के चार महीनों में वह कुछ भी नहीं कमा सका। अब फिर काम पर जाने लगा है, पर अब उसे सिर्फ 500 रुपए मिलते हैं। उसके घर में उसकी मां है, पत्नी है और तीन बच्चे हैं। 18 साल की बेटी, 16 साल का बड़ा बेटा और 12 साल का छोटा बेटा। वह बच्चों की पढ़ाई को बहुत जरूरी मानता है, इसलिए गरीबी के बावजूद तीनों को पढ़ा रहा है। उसकी पीठ में तकलीफ है, लेकिन वह ड्राइवरी नहीं छोड़ सकता। बच्चे उसकी परेशानी समझते हैं, इसलिए बड़ा बेटा कहता है कि वह 12 वीं के बाद काम करने लगेगा और उसे काम नहीं करने देगा।
लेकिन बेटा स्कूल बंद होने के कारण ऑनलाइन पढ़ाई करता था। 11 अक्टूबर को उसके फोन की स्क्रीन टूट गई और उसने पिता से कहा कि फोन ठीक कराने के लिए 2000 रुपए चाहिए। पिता ने कहा कि फिलहाल उसके पास सिर्फ 500 रुपए हैं, चार दिन बाद ही वह 2000 का इंतजाम कर पायेगा। बेटा चार दिन की पढ़ाई के नुकसान की बात करने लगा तो पिता को गुस्सा आ गया। बेटे की पिटाई करने के लिए उसने उसका कॉलर पकड़ा तो बेटे ने कहा, ठहरो मेरे पास यही एक अच्छी कमीज़ है। उसने कमीज़ उतारी और पिता से कहा कि अब पीट लो। पिता ने उसे पीटा तो नहीं, पर डांटा। अगले दिन सुबह पिता काम पर जाने लगा तो बेटे ने कहा कि पीटना है तो पीट लो, शाम को मौका नहीं मिलेगा।
और शाम को पिता जब काम पर से लौट रहा था, उसे घर से सूचना मिली कि 16 साल के बड़े बेटे ने घर में फांसी लगाकर जान दे दी है।
पिता का कहना है कि सरकार ऑनलाइन पढ़ाई करने के लिए कहती है, लेकिन क्या गरीब लोग फोन का खर्च उठा सकते हैं।