भारत की स्वतंत्रता के लिए भारत माता के जिन सपूतों ने हंसते-हंसते बलिदान दिया, दुर्भाग्य से उनमें से कई को देश भूल गया है। ऐसे ही एक होनहार क्रांतिकारी थे विष्णु गणेश पिंगळे। आज उनका जन्मोत्सव है। वे 2 जनवरी 1888 को पुणे के पास तलेगांव ढमढेरे में चितपावन ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। हमें आज उन्हें याद कर सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहिए। विष्णु इतने मेधावी थे कि उन्होंने विपरीत स्थितियों में भी इंजीनियरिंग की अच्छी पढ़ाई की और उच्च अध्ययन के लिए अमेरिका के सिएटल शहर पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात क्रांतिकारी लाला हरदयाल जी से हुई। हरदयाल जी ने भारत की स्वतंत्रता के लिए ‘गदर पार्टी’ की स्थापना की थी।
विष्णु को वहां इस बात का गहरा भान हुआ कि वे पढ़-लिखकर इंजीनियर बन भी गए, तो अंग्रेजों के काम ही आएंगे। इससे बेहतर है कि वे गदर पार्टी में शामिल हों और भारत को स्वतंत्र करवाने में अपनी भूमिका निभाएं। वे शामिल हुए और प्रचार प्रमुख बन गए। गदर पार्टी के आह्वान पर विष्णु गणेश पिंगळे क्रांति की मशाल उठाए अमेरिका से कलकत्ता आ गए और बंगाल के क्रांतिकारियोंसे संपर्क बढ़ाना शुरू किया।
मेधा व योग्यता के चलते वे जल्द ही वरिष्ठ क्रांतिकारी रास बिहारी बोस और शचीन्द्रनाथ सान्याल के विश्वासपात्र हो गए। वहां से वे पंजाब गए और क्रांति की अलख वहां भी जगाई। बाद में उन्हें मेरठ की सैनिक छावनी में क्रांति की जिम्मेदारी दी गई। यहां एक जमादार नादिर खान ने उनसे गद्दारी कर दी। उसने विष्णु को फंसाने की योजना बनाई। नादिर ने उन्हें बताया कि बनारस में एक बंगाली क्रांतिकारी के पास बहुत से बम हैं।
विष्णु क्रांति के लिए बम लेने गद्दार नादिर खान के साथ बनारस चले गए। नादिर ने वहां से विष्णु को 10 बम देकर रवाना किया और अंग्रेजों को खबर कर दी। अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया। इसके बाद उन पर ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ के तहत मुकदमा चलाया गया और 16 नवम्बर 1915 को लाहौर में फांसी दे दी गई।
(अभय मराठे लिखित ‘ओ उठो क्रांतिवीरो’ से साभार)
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